राजनीति: परमाणु युद्ध का बढ़ता खतरा
मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग ने एक बार चेतावनी दी थी कि तकनीक के साथ तेजी से बढ़ रही इंसानों की आक्रामक प्रवृत्ति हमें नाभिकीय और जैविक युद्ध के खतरों की ओर धकेल रही है, जो दुनिया को तबाह कर सकते हैं और केवल एक ‘वैश्विक सरकार’ ही इस ‘नजदीकी विनाश’ को रोक सकती है। लेकिन सवाल है कि हम क्या परमाणु हथियारों की होड़ को खत्म करने की दिशा में अब तक कोई ठोस पहल कर पाए हैं।

कोरोना महामारी फैलाने को लेकर दुनिया के तमाम देशों का चीन के खिलाफ आक्रोश बढ़ता जा रहा है। अमेरिका तो अपने यहां हुई लाखों मौतों के लिए चीन को ही जिम्मेदार मानता है और इसका बदला लेने के लिए वह कुछ भी कर सकता है। उधर, ताइवान, हांगकांग और दक्षिणी चीन सागर को लेकर अमेरिका व चीन के बीच जिस तरह तनाव बढ़ रहा है, उससे लगता है कि दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की तरफ बढ़ रही है। दुनिया के तमाम अमीर-गरीब मुल्क कोरोना के प्रकोप से जिस भयावह त्रासदी झेलने को अभिशप्त हैं, उसकी जवाबदेही से चीन किसी भी तरह मुक्त नहीं हो सकता।
कोविड-19 के प्रसार पर पर्दा डालने और वक्त रहते विश्व को हकीकत से अवगत कराने में चीन ने जो आपराधिक लापरवाही बरती, विश्व जनमत अब उसे सबक सिखाने का मन बना रहा है। लंबे समय से चीन के खिलाफ मुखर रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अब खुल कर सामने आ गए हैं। यों तो अमेरिका व चीन के बीच कारोबारी व सामरिक चौधराहट को लेकर लंबे समय से टकराव चला आ ही रहा था, मगर कोविड-19 के प्रकोप के बाद यह चरम पर जा पहुंचा है।
अमेरिका और चीन के बीच अब एक तरह से तलवारें खिंच गई हैं। दोनों देशों के झंडे तले दुनिया दो खेमों में बंटने लगी है। चीन ने विश्व बैंक को तीन सौ करोड़ डॉलर का अनुदान देकर अपनी धन-शक्ति की धौंस जमाई है। इसके अलावा सैन्य ताकत का प्रदर्शन करते हुए वह दक्षिण चीन सागर में अड्डा बनाए हुए है। हांगकांग की स्वायतता पर वह लगातार हमले बोल रहा है। इन सब घटनाक्रमों से बौखलाए अमेरिका ने कहा है कि अब वह चुप नहीं बैठेगा और हर चीज का हिसाब लेगा। ट्रंप के लिए यह मजबूरी इसलिए भी है कि इस साल अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हैं और वे किसी भी कीमत पर चीन के आगे कमजोर नहीं दिखना चाहते। ऐसे में आशंकाए लाजिमी हैं कि कोरोना से जंग के बीच कहीं असली युद्ध भी तो नहीं छिड़ने वाला!
लद्दाख की गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद से भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने हैं। वहीं, चीन अब पूर्वी चीन सागर में द्वीपों के मुद्दे पर जापान के साथ तनाव बढ़ा रहा है। हाल में जापानी वायु सेना ने चीन के एक बम वर्षक को अपनी सीमा से बाहर भगाया है। कुछ दिन पहले जापानी नौसेना ने एक चीनी पनडुब्बी को भी ऐसे खदेड़ा था। हाल में ट्रंप ने चीन को खुलेआम चुनौती दी थी कि अगर ये (कोरोना विषाणु का फैलना) गलती थी, तो गलती तो गलती होती है। लेकिन अगर ये जानबूझ कर किया गया तो निश्चित तौर पर चीन को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। ट्रंप के इस बयान से साफ है कि अब अमेरिका और चीन के बीच कोरोना विषाणु को लेकर आर-पार की जंग शुरू हो सकती है।
फ्रांस के वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. लुक मोंटाग्नियर ने तो स्पष्ट रूप से यह कहा है कि कोविड-19 महामारी फैलाने वाले विषाणु की उत्पति तो चीन की प्रयोगशाला बुहान इंस्टीच्यूट आफ वायरोलाजी में ही हुई है। यह एक मानव निर्मित विषाणु है। यही बात ट्रंप सहित कई अन्य देशों के वैज्ञानिक और राष्ट्राध्यक्ष भी कह रहे हैं। ऐसे में अगर ट्रंप चीन के साथ सख्ती करते हैं और या कोई कड़ा कदम उठाते हैं तो तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। इस विश्वयुद्ध में एक तरफ अमेरिका के साथ नाटों देशों की सेनाओं सहित तमाम देश होगें, तो दूसरी तरफ चीन होगा और उसके साथ उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, ईरान सहित कुछ गिने-चुने देश होगें। रूस की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है।
उधर, इजराइल और सीरिया के बीच जंग जारी है। उसने सीरिया के कुछ इलाकों पर मिसाइलों से हमले किए। इजराइल के साथ तुर्की और अमेरिका है। खाड़ी देशों के साथ रूस है। इस क्षेत्र में भी स्थिति तनावपूर्ण है।
अब यदि कहीं भी परमाणु युद्ध हुआ तो इसमें न कोई विजेता होगा और न कोई पराजित देश होगा। परमाणु बमों का इस्तेमाल करने वाले देश तो मिट ही जाएंगे, आसपास के देशों में भी भारी तबाही होगी। परमाणु युद्ध मानव जाति के विनाश का युद्ध होगा। इस वक्त दुनिया के नौ देशों के पास सोलह हजार तीन सौ परमाणु और हाइड्रोजन बम हैं, जो पूरी दुनिया को कई बार नष्ट करने की क्षमता रखते हैं। हालांकि परमाणु बमों के इस्तेमाल से पृथ्वी को बचाने के प्रयत्न हमेशा से होते रहे हैं, फिर भी इन दिनों इन बमों के फटने का संकट फिर से मंडराने लगा है। यदि अमेरिका और चीन के बीच युद्ध हुआ तो परमाणु बमों का इस्तेमाल हो सकता है। इससे होने वाली तबाही की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
परमाणु बमों की होड़ में रूस सबसे आगे है। उसने परमाणु बम बनाने की तकनीक 1949 में विकसित कर ली थी। रूस के पास इस समय आठ हजार परमाणु बम तैयार हैं, जिन्हें उसने विभिन्न ठिकानों पर सुरक्षित रखा है। इसके अलावा कितनी संख्या में छोटे बम उसके जखीरे में मौजूद हैं, यह किसी को नहीं मालूम। जबकि अमेरिका ने परमाणु बम विकसित करने की क्षमता रूस से चार साल पहले यानी 1945 में ही विकसित कर ली थी। उसके जखीरे में सात बजार तीन सौ परमाणु बम जमा हैं। चीन तीसरे नंबर पर है। उसके पास केवल ढाई सौ परमाणु बम हैं। चीन ने यह तकनीक 1964 में हासिल की थी।
ब्रिटेन ने 1952 में ही परमाणु बम बनाने में सफलता हासिल कर ली थी, लेकिन उसने दो सौ पच्चीस बम तैयार करके फिर इस भंडार को आगे नहीं बढ़ाया। भारत से होड़ में आगे निकलने की गरज से पाकिस्तान सौ परमाणु बम बना चुका है। कुछ एजेंसियां मानती हैं कि उसके परमाणु बमों की संख्या एक सौ बीस तक भी हो सकती है। इजरायल के पास अस्सी परमाणु बम हैं और उसने 1973 में इसकी तकनीक हासिल कर ली थी। उत्तर कोरिया के पास छह परमाणु बम हैं और यह ऐसा देश है जो इस प्रकार के हथियारों का और बड़ा जखीरा तेजी से बढ़ा रहा है।
सबसे खतरनाक बात यह है कि एक ओर जहां संसार में इन विशाल बमों का बड़ा जखीरा मौजूद है, वहीं छोटे स्तर के परमाणु बम तैयार करने का नया सिलसिला रक्षा विज्ञानियों की पहल पर प्रारंभ हो चुका है। इस बात को दुनिया के बडे़ देश अब तक छिपाते आए हैं। लेकिन अब यह सच्चाई सामने आ चुकी है कि कम क्षेत्रफल में भयावह विनाश करने वाले छोटे परमाणु बम भी काफी संख्या में कुछ देशों के पास बन कर तैयार हैं। परमाणु बमों के अलावा रासायनिक और बैक्टीरिया फैलाने वाले बम भी वर्चस्व की जंग के कारण बन चुके हैं। उत्तर कोरिया और पाकिस्तान ऐसे देश बन चुके हैं जो विश्व शांति के लिए कभी भी खतरा बन सकते हैं।
मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग ने एक बार चेतावनी दी थी कि तकनीक के साथ तेजी से बढ़ रही इंसानों की आक्रामक प्रवृत्ति हमें नाभिकीय और जैविक युद्ध के खतरों की ओर धकेल रही है, जो दुनिया को तबाह कर सकते हैं और केवल एक ‘वैश्विक सरकार’ ही इस ‘नजदीकी विनाश’ को रोक सकती है। लेकिन सवाल है कि हम क्या परमाणु हथियारों की होड़ को खत्म करने की दिशा में अब तक कोई ठोस पहल कर पाए हैं।