माना जा रहा था कि इससे दहशतगर्दों की कमर टूट जाएगी और जल्दी ही वहां अमन कायम होगा। मगर अब भी आए दिन आतंकी अपनी साजिशों को अंजाम देने में कामयाब हो जाते हैं। उनकी सक्रियता अपेक्षा के अनुरूप कम नहीं हुई है। वे अपना तरीका बदल कर निरपराध लोगों की हत्या कर देते हैं।
पिछले कुछ समय से उनकी लक्षित हिंसा चिंता का विषय बनी हुई है। अब वे कुछ ऐसे तरीके आजमाते देखे जा रहे हैं, जो अब तक इस्तेमाल नहीं किए गए थे। जम्मू पुलिस द्वारा लश्कर से जुड़े एक आतंकी के पास से परफ्यूम की बोतल में भरे ताकतवर विस्फोटक (आइईडी) बरामद किया जाना इसी का ताजा उदाहरण है। सुरक्षाकर्मियों का कहना है कि इस तरह का विस्फोटक ज्यादा घातक और ताकतवर होता है।
गिरफ्तार आतंकी ने पिछले महीने नरवाल में ऐसे ही विस्फोटक लगाए थे, जिसमें नौ लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। इसके पहले भी वह कई ऐसी घटनाओं को अंजाम दे चुका है। इससे एक दिन पहले तीन आतंकियों को गिरफ्तार किया गया, जो किसी बड़ी साजिश को अंजाम देने की फिराक में थे। ऐसे में फिर सवाल उठता है कि आखिर कैसे घाटी में आतंकियों की मौजूदगी बनी हुई है और उन्हें कहां से साजो-सामान उपलब्ध हो पा रहे हैं।
हालांकि पिछले आठ-नौ सालों में आतंकवादी संगठनों की गतिविधियों पर काफी लगाम कसी है। घर-घर तलाशी अभियान चलाने, आतंकियों को वित्तपोषण करने वाले संगठनों और व्यक्तियों की पहचान कर उन्हें सलाखों के पीछे डालने और लगातार निगरानी बनाए रखने की वजह से उन्हें पकड़ना, उनकी साजिशों का पता लगाना काफी आसान हुआ है।
मगर हैरानी का विषय है कि आतंकी संगठनों की गतिविधियों को पूरी तरह रोक पाना कठिन बना हुआ है। आतंकी संगठनों का समर्थन और वित्तपोषण करने वाले संगठनों और व्यक्ति की पहचान कर उनके बैंक खाते आदि बंद किए जा चुके हैं। सीमा पार से तिजारत बंद होने की वजह से उन्हें सड़क मार्ग से हथियार और गोला-बारूद वगैरह पहुंचाना मुश्किल हो गया है।
लगातार उन पर नजर रखी और अत्याधुनिक सूचना उपकरणों से उनकी साजिशों का पर्दाफाश करने की कोशिश की जाती है। बुरहान वानी को मारे जाने के बाद इलेक्ट्रानिक माध्यमों से सूचनाओं के प्रसार पर भी कड़ाई से रोक लगा दी गई थी। फिर भी ये आतंकी अपनी साजिशों को अंजाम देने में कामयाब हो पा रहे हैं, तो चिंता स्वाभाविक है।
विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद लंबे समय तक घाटी में कर्फ्यू का माहौल रहा। सुरक्षा कर्मियों की तादाद पहले से कहीं अधिक बढ़ा दी गई थी। पिछले साल सरकार ने माना था कि इसके चलते घाटी में आतंकी संगठनों में युवाओं की नई भर्ती पर लगाम लगी है। मगर हकीकत यह है कि घाटी के नौजवान लगातार सीमा पार सक्रिय आतंकी संगठनों के संपर्क में बने रहते हैं और उनके इशारे पर साजिशों को अंजाम देते हैं।
ताजा घटनाओं में गिरफ्तार आतंकी भी स्थानीय थे, घुसपैठ कर सीमा पार से नहीं आए थे। यानी जाहिर है कि घाटी में युवाओं को गुमराह कर हाथ में हथियार उठाने को तैयार करने में आतंकवादी संगठन अब भी कामयाब हो रहे हैं। जब तक स्थानीय लोगों में दहशतगर्दों के प्रति असहयोग का भाव पैदा नहीं होगा, ऐसी घटनाओं पर विराम लगाना कठिन बना रहेगा। इसलिए इस दिशा में नए सिरे से रणनीति बनाने की जरूरत है।