संपादकीय: सुरक्षा का सवाल
देश में चार दिन पहले शुरू हुए कोरोना टीकाकरण अभियान के दौरान कोवैक्सीन टीका लगवाने को लेकर स्वास्थ्यकर्मियों के बीच जिस तरह का भय और संशय देखने को मिला, वह चिंता की बात है।

स्वास्थ्यकर्मियों का ऐसा डर कहीं न कहीं टीके के प्रभाव और उसके सुरक्षित होने को लेकर सवाल खड़े करता है। टीकाकरण के पहले ही दिन दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के रेजीडेंट डॉक्टरों ने कोवैक्सीन लगवाने से इनकार कर दिया। इसके अलावा, टीका लगवाने के बाद दो लोगों (एक उत्तर प्रदेश में और एक कर्नाटक में) की मौत से भी अफवाहों का बाजार गर्म हुआ।
हालांकि बाद में पता चला कि दोनों मौतों का कारण टीका नहीं था। कुछ लोगों में टीका लगवाने के बाद जिस तरह के प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिले, उससे भी लोगों को लगा कि यह टीका सुरक्षित नहीं है। इसीलिए मंगलवार को स्वास्थ्य मंत्रालय को स्पष्टीकरण देना पड़ा कि कोरोना के दोनों ही टीके- कोविशील्ड और कोवैक्सीन पूरी तरह से कारगर और सुरक्षित हैं।
अगर स्वास्थ्यकर्मी ही इसे लगवाने में हिचक दिखाएंगे तो आम जनता टीका लगवाने के लिए कैसे प्रेरित होगी? हालांकि नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया और नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ वीके पॉल ने पहले ही दिन स्वयं टीका लगवा कर इसके सुरक्षित होने का प्रमाण दिया। इसलिए इसमें लेशमात्र भी संशय नहीं होना चाहिए कि भारत में लगाए जा रहे टीके सुरक्षित नहीं हैं।
देश के लिए यह कम बड़ी उपलब्धि नहीं है कि एक साल से भी कम समय के भीतर टीके विकसित कर लिए गए, बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हो गया और महामारी से निपटने का रास्ता निकला। भारत में इस वक्त दो टीके- कोविशील्ड और कोवैक्सीन लगाए जा रहे हैं। इन दोनों ही टीकों को भारत के औषधि महानियंत्रक ने विशेषज्ञों की समिति की सिफारिश के बाद आपात इस्तेमाल की मंजूरी दी है।
कोविशील्ड को आॅक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका ने विकसित किया है, जिसका उत्पादन भारत की सीरम इंस्टीय्टूट आॅफ इंडिया कर रही है, जबकि कोवैक्सीन पूरी तरह से देश में तैयार किया पहला स्वदेशी टीका है, जिसे भारत बायोटैक ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के साथ मिल कर बनाया है। अगर टीकों को लेकर कोई डर या संशय पैदा होता है और सवाल उठाए जाते हैं तो यह निश्चित रूप से चिंताजनक है। ऐसे में लोगों में टीकाकरण प्रति जागरूकता पैदा करने के साथ ही यह भी जरूरी है कि उनके भीतर टीके को लेकर बैठा डर निकाला जाए।
लोगों में डर भारत बायोटेक के कोवैक्सीन को लेकर है। इसका बड़ा कारण यह है कि अभी इस टीके के तीसरे चरण के परीक्षण चल रहे हैं। ऐसे में मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब परीक्षण ही पूरे नहीं हुए तो टीके को जल्दबाजी में मंजूरी क्यों दे दी गई! दरअसल, कोवैक्सीन को मंजूरी देने को लेकर जिस तरह की राजनीति हुई और विपक्ष ने जो सवाल उठाए, उससे भी इस टीके को लेकर लोगों में डर पनपा है।
लोग टीकाकरण के लिए प्रेरित हों और टीकों को लेकर किसी के मन में कोई भय न पैदा हो, इसके लिए बेहतर होगा कि देशभर में हमारे जनप्रतिनिधि और नौकरशाह स्वयं टीका लगवाने की पहले करें। इससे लोगों में भरोसा पैदा होगा और लोग आगे चल कर टीका लगवाएंगे। कोरोना से मुकाबले की जिम्मेदारी तो सबकी है, चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, टीके को लेकर राजनीतिक बयानबाजी और आरोपों से तो ऐसे अभियान को धक्का ही पहुंचेगा।