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निजता पर जोखिम, दूसरों की मनमर्जी से बिक रहीं हमारी संवेदनशील सूचनाएं

ताजा मामला सोशल मीडिया के मंच फेसबुक और वाट्सऐप का परिचालन करने वाली कंपनी मेटा से जुड़ा है, जिसमें उस पर निजता के नियमों के उल्लंघन का आरोप है। यूरोपीय संघ ने इस आरोप की पूरी पड़ताल के बाद मेटा को दोषी पाया और इस मामले में उस पर 1.3 अरब डालर का जुर्माना लगाया है।

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प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर।( फोटो-इंडियन एक्‍सप्रेस)।

आधुनिक तकनीकी के विस्तार के साथ-साथ सूचना और संवाद के क्षेत्र में सोशल मीडिया की भूमिका जगजाहिर है। आज हालत यह है कि दुनिया की ज्यादातर आबादी इसके दायरे में है और किसी न किसी रूप में लोग ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, वाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया के मंचों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया मंचों पर बेफिक्र होकर वक्त गुजारने वाले लोगों की निजता बुरी तरह प्रभावित हो रही है और इन मंचों के संचालक ऐसी लापरवाहियों के खिलाफ कार्रवाई के बावजूद खुद में सुधार को लेकर गंभीर नहीं हैं।

ताजा मामला सोशल मीडिया के मंच फेसबुक और वाट्सऐप का परिचालन करने वाली कंपनी मेटा से जुड़ा है, जिसमें उस पर निजता के नियमों के उल्लंघन का आरोप है। यूरोपीय संघ ने इस आरोप की पूरी पड़ताल के बाद मेटा को दोषी पाया और इस मामले में उस पर 1.3 अरब डालर का जुर्माना लगाया है। साथ ही यूरोपीय संघ ने उपयोगकर्ताओं से संबंधित किसी जानकारी को अमेरिका भेजे जाने पर भी रोक लगा दी। दरअसल, फेसबुक पर ऐसे आरोप लगाए गए थे कि वह उपयोगकर्ताओं की निजी जानकारी या डेटा आंग्ल-अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के साथ साझा करती है और इसी की मदद से बड़े पैमाने पर लोगों की निगरानी की जाती है।

लगभग पांच साल पहले यूरोपीय संघ में निजता के उल्लंघन से संबंधित सख्त कानून लागू होने के बाद किसी सोशल मीडिया मंच पर लगाया गया यह सबसे बड़ा जुर्माना है। इसी साल की शुरुआत में यूरोपीय संघ के डेटा से जुड़े नियमों का उल्लंघन करने की वजह से आयरलैंड ने मेटा पर 5.5 मिलियन यूरो का जुर्माना लगाया था। इससे पहले भी मेटा को निजता के नियमों का अनुपालन नहीं करने पर भारी जुर्माना देना पड़ा है। लेकिन इस तरह की सख्त कार्रवाइयों के बावजूद आम लोगों की निजता को भंग करने वाली जानकारी को मनमाने तरीके से किसी और को बेचे या भेजे जाने की प्रवृत्ति पर रोक नहीं लग पा रही है।

समय-समय पर हो रही इस तरह की कार्रवाइयों से यह साफ है कि सोशल मीडिया पर अलग-अलग मंचों का परिचालन करने वाली कंपनियां अपने उपयोगकर्ताओं की निजता की न केवल सुरक्षा नहीं कर पा रही हैं, बल्कि अपनी मनमर्जी से और लोगों को जानकारी दिए बिना उनसे संबंधित संवेदनशील सूचनाएं किसी तीसरे पक्ष को बेच देती हैं या किसी परोक्ष समझौते तहत भेजती हैं। इस तरह का तालमेल सिर्फ कारोबारी मुनाफा कमाना भी हो सकता है और इसके पीछे व्यापक पैमाने पर लोगों की निजता पर निगरानी करने की मंशा भी संभव है।

यह सब जानते हैं कि लोगों के आम व्यवहार में इंटरनेट के शामिल होने का दायरा जैसे-जैसे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे साइबर दुनिया में कई तरह के खतरे भी बढ़ रहे हैं। लेकिन आधुनिकी तकनीकी के विकास के इस चरम दौर में भी निजता और अन्य इंटरनेट उपयोग को लेकर जोखिम भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं। कायदे से सोशल मीडिया के मंचों का संचालन करने वाले समूहों से लेकर इस तरह के अन्य संस्थानों की जिम्मेदारी थी कि वे आम लोगों की संवेदनशील जानकारियों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करें।

मगर इसके बजाय वे खुद ही निजता के उल्लंघन में संकोच नहीं कर रही हैं और ऐसे करने को सही भी ठहराती हैं। सवाल है कि क्या मेटा या सोशल मीडिया के अन्य मंचों का संचालन करने वाली कंपनियां उपयोगकर्ताओं से संबंधित निजी जानकारियों को किसी तीसरे पक्ष को बेचना या भेजना ही अपने मुनाफे का जरिया मानती हैं या फिर क्या वे आम लोगों की निजता पर निगरानी के किसी व्यापक तंत्र का हिस्सा हैं?

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First published on: 24-05-2023 at 03:55 IST
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