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साझेदारी का संकल्प: जापान के प्रधानमंत्री के ताजा भारत दौरे में एक बार फिर दोनों देशों के बीच सहयोग का सफर और आगे बढ़ा

अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक जगत में भारत की जैसी जगह बनी है, उस पर दुनिया के तमाम देशों की निगाह टिकी हुई है। इस लिहाज से देखें तो जापान के साथ प्रौद्योगिकी और व्यापार सहित अन्य संबंधों की जमीन को और मजबूत करने के साथ-साथ रणनीतिक साझेदारी पर आगे बढ़ना भारत के लिए वक्त का तकाजा भी है।

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जापान के पीएम किशिदा फुमियो की भारत यात्रा (Photo- ANI)

जापान के प्रधानमंत्री के ताजा भारत दौरे में एक बार फिर दोनों देशों के बीच सहयोग का सफर और आगे बढ़ा है। हालांकि जापान के साथ भारत के संबंध पहले भी आपसी सहयोग पर आधारित और सहज रहे हैं, लेकिन समय-समय पर होने वाले शिखर सम्मेलनों में इसे और मजबूती मिलती रही है। सोमवार को दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच हुई बातचीत में सबसे अहम पहलू वैश्विक रणनीतिक साझेदारी के विस्तार का संकल्प है, जिसे शांतिपूर्ण, स्थिर और समृद्ध हिंद-प्रशांत के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है।

व्यापार, स्वास्थ्य और डिजिटल साझेदारी पर विचारों का आदान-प्रदान वक्त की जरूरत

साथ ही, हाल के वर्षों में द्विपक्षीय संबंधों में हुई प्रगति की समीक्षा और रक्षा उपकरण सहित प्रौद्योगिकी सहयोग, व्यापार, स्वास्थ्य और डिजिटल साझेदारी पर विचारों का आदान-प्रदान दरअसल वक्त की जरूरत है। यह छिपा नहीं है कि बीते कुछ समय से विभिन्न स्तर पर चीन की ओर से जारी गतिविधियों की वजह से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कैसी चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। भारत के सामने वक्त रहते इस जटिलता को समझना और उसी मुताबिक अपने हित में कदम उठाना कई वजहों से जरूरी है। जापान के प्रधानमंत्री ने भी यह स्वीकार किया कि इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए भारत अपरिहार्य है।

रणनीतिक मोर्चे पर भी जापान के साथ सहयोग में मजबूती लाने की कोशिश

आधुनिक तकनीकी और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जापान का दखल जगजाहिर रहा है। हालांकि अपनी क्षमता होने के बावजूद भारत को इसका अतिरिक्त लाभ मिलता रहा है, लेकिन रणनीतिक मोर्चे पर भी जापान के साथ सहयोग में मजबूती लाने की कोशिशों के संकेत समझे जा सकते हैं। यों भारत की ओर से यह स्पष्ट किया गया है कि दोनों देशों के बीच विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और अंतरराष्ट्रीय पटल पर कानून के सम्मान पर आधारित है। पिछले कुछ सालों से वैश्विक परिदृश्य जिस तरह बदल रहा है, उसमें अलग-अलग देशों के बीच खड़े होने वाले नए समीकरणों का सिरा भविष्य में बनने वाली दुनिया से जुड़ा हुआ है।

साफ देखा जा सकता है कि महाशक्ति माने जाने वाले से लेकर विकासशील देशों के बीच बहुस्तरीय सहयोग के नए ध्रुव बन रहे हैं और इस दिशा में अमूमन सभी देश सक्रिय हैं। इस बीच अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक जगत में भारत की जैसी जगह बनी है, उस पर दुनिया के तमाम देशों की निगाह टिकी हुई है। इस लिहाज से देखें तो जापान के साथ प्रौद्योगिकी और व्यापार सहित अन्य संबंधों की जमीन को और मजबूत करने के साथ-साथ रणनीतिक साझेदारी पर आगे बढ़ना भारत के लिए वक्त का तकाजा भी है।

इसके अलावा, दुनिया तेजी से जिस तकनीक आधारित व्यवस्था की ओर बढ़ रही है, उसमें नई या आधुनिक प्रौद्योगिकी की अहमियत का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। खासतौर पर तकनीक आधारित व्यवस्था में माइक्रोचिप पर निर्भरता जिस कदर बढ़ने वाली है, उसके मद्देनजर सेमीकंडक्टर और अन्य अहम प्रौद्योगिकियों में विश्वस्त आपूर्ति शृंखला के महत्त्व पर भारत और जापान के बीच हुई बातचीत की उपयोगिता समझी जा सकती है।

इस संदर्भ में देखें तो तकनीक और निवेश के लिहाज से जापान की एक खास जगह है, लेकिन सेमीकंडक्टर के मामले में भारत की कोशिश अब पूरी तरह आत्मनिर्भर होने की है। यह बेवजह नहीं है कि जापानी प्रधानमंत्री ने नई दिल्ली के साथ सहयोग तेजी से बढ़ने के साथ-साथ जापान के लिए भी महत्त्वपूर्ण आर्थिक अवसर पैदा होने की उम्मीद जताई। फिलहाल जापान जी-7 और भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है। वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और आर्थिक मोर्चों पर इन दोनों समूहों की जो भूमिका है, उसमें स्वाभाविक ही यह विचार का केंद्रीय बिंदु है कि आने वाले वक्त में अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत और जापान को क्या भूमिका निभानी चाहिए।

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First published on: 22-03-2023 at 07:13 IST