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संदिग्ध सजा माफी

कानून के मुताबिक सजायाफ्ता लोगों को उनके आचरण के मद्देनजर समय से पहले रिहा करने का प्रावधान है।

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

सर्वोच्च न्यायालय ने बिलकिस बानो मामले में ग्यारह दोषियों को समय से पहले रिहा किए जाने के फैसले पर कड़ा रुख दिखाया है। अदालत ने केंद्र और गुजरात सरकार की तरफ से पेश वकीलों से कुछ असहज करने वाले सवाल पूछे और उन्हें इस रिहाई के फैसले से संबंधित सभी दस्तावेज अगली तारीख पर उपलब्ध कराने को कहा। इससे स्वाभाविक ही इस मामले में कोई नया मोड़ आने की संभावना देखी जा रही है।

गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसकी आंखों के सामने ही उसकी तीन साल की बच्ची समेत परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी गई थी। इसमें मुकदमा चला और ग्यारह लोगों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। मगर इन सभी दोषियों को केंद्र सरकार की मंजूरी से गुजरात सरकार ने पिछले साल पंद्रह अगस्त को समय से पहले ही सजा माफी दे दी थी।

इसमें तर्क दिया गया कि चूंकि जेल में दोषियों का आचरण अच्छा था, इसलिए नियम के मुताबिक उन्हें समय से पहले रिहा कर दिया गया। मगर गुजरात सरकार के इस फैसले को लेकर चौतरफा सवाल उठने शुरू हो गए। बिलकिस बानो ने इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। उसी को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में यह प्रक्रिया शुरू हुई है।

कानून के मुताबिक सजायाफ्ता लोगों को उनके आचरण के मद्देनजर समय से पहले रिहा करने का प्रावधान है, मगर यह नियम हर मामले में एक समान लागू नहीं होता। खासकर हिंसा और बलात्कार जैसे मामलों में इस नियम का उपयोग करते समय खासी सावधानी बरतने की अपेक्षा की जाती है। यही सवाल बिलकिस बानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भी केंद्र और गुजरात सरकार से पूछा कि क्या इस मामले में उचित नियमों का पालन किया गया। सर्वोच्च न्यायालय ने बिलकिस मामले को भयावह कृत्य बताया।

दरअसल, गुजरात दंगों को लेकर शुरू से तत्कालीन सरकार पर सवाल उठते रहे हैं, बिलकिस मामले में दोषियों को समय से पहले जेल से बाहर निकाल कर एक नया विवाद मोल ले लिया। विपक्षी दलों को तो इस पर हमला बोलने का मौका मिला ही, अदालत ने भी इसमें कई प्रक्रियागत खामियां देखी हैं। सवाल यह भी है कि क्या गुजरात सरकार को इन दोषियों को रिहा करने का अधिकार था।

फिर यह भी कि किन नियमों के तहत उन्हें रिहा किया गया। वादी पक्ष का कहना है कि इससे संबंधित नए और पुराने दोनों नियम सरकार को ऐसा करने की इजाजत नहीं देते। फिर इन ग्यारह दोषियों के जिस अच्छे आचरण का तर्क दिया गया, वह भी संदिग्ध है। पैरोल के दौरान उनमें से कुछ पर छेड़छाड़ के आरोप लगे। उनके आपराधिक पृष्ठभूमि को भी रेखांकित किया जा रहा है।

किसी भी कल्याणकारी सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह जघन्य अपराध करने वालों को कठोर दंड दिलाने में सहयोग करेगी। किसी महिला के साथ सामूहिक बलात्कार, उसकी बच्ची और उसके पूरे परिवार की हत्या कर देना जघन्य अपराध की श्रेणी में ही आता है। जिस समय बिलकिस का बलात्कार हुआ, वह गर्भवती थी।

इसलिए गुजरात सरकार के फैसले और केंद्र की उस पर सहमति लोगों को खटक रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने उसी बिंदु को रेखांकित किया और पूछा है कि क्या सरकार हिंसा और बलात्कार के अन्य मामलों में भी यही रुख रखती है। अदालत इस मामले को अगले दो-तीन महीनों में ही निपटाने के पक्ष में है, इसलिए स्वाभाविक ही लोगों की नजर उसके फैसले पर अटकी हुई है।

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First published on: 28-03-2023 at 23:21 IST
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