इस बीच कई उपराज्यपाल बदले, मगर सरकार का किसी के साथ भी तालमेल ठीक नहीं रहा। दोनों के बीच एक अविश्वास का माहौल सदा बना रहता है। हालांकि ऐसे माहौल में काम कर पाना न तो सरकार के लिए सुविधाजनक होता है और न उपराज्यपाल के लिए। मगर इस वातावरण को खत्म करने का प्रयास भी नहीं दिखाई देता।
यही वजह है कि नगर निगम चुनाव में मिले बहुमत के बावजूद आम आदमी पार्टी को लगता है कि महापौर के चुनाव में उपराज्यपाल कोई गड़बड़ी करने की रणनीति बना रहे हैं। इसके चलते पिछले महीने दो बार यह चुनाव टल चुका है। इसके लिए अदालत तक का दरवाजा खटखटाया जा चुका है। अब उपराज्यपाल ने अगले हफ्ते तीसरी बार चुनाव की तारीख तय की है। मगर भाजपा नेताओं का कहना है कि आम आदमी पार्टी उस दिन भी कोई न कोई बहाना बना कर हंगामा करने का प्रयास करेगी। अगर ऐसा होता है, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का मजाक उड़ाने जैसा ही होगा।
इसलिए अपेक्षा की जाती है कि इस बार महापौर का चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराने का प्रयास होगा, ताकि आगे के कामकाज सुचारू रूप से चल सकें। निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी को स्पष्ट बहुमत हासिल है। महापौर के चुनाव में उसे दूसरे दलों से किसी तरह की मदद लेने की जरूरत भी नहीं है। इसीलिए भाजपा ने एलान कर दिया कि वह महापौर के पद पर अपना प्रत्याशी खड़ा नहीं करेगी।
मगर आम आदमी पार्टी के अपने उम्मीदवारों की घोषणा करने के बाद अचानक भाजपा ने भी अपने उम्मीदवार मैदान में उतार दिए। उसके बाद उपराज्यपाल ने सरकार से परामर्श किए बिना अपनी पसंद से ‘वरिष्ठ’ सदस्यों का चुनाव कर दिया। इसी को लेकर आम आदमी पार्टी ने हंगामा कर दिया। फिर अगली तारीख को उन वरिष्ठ सदस्यों को शपथ भी दिला दी गई, जबकि सरकार का कहना था कि पहले निर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाई जाती है, उसके बाद उपराज्यपाल द्वारा चयनित सदस्यों को।
इसे लेकर नियम-कायदों पर बहसें होती रहीं और आखिरकार महापौर का चुनाव नहीं हो पाया। हालांकि चुनावी गणित से आम आदमी के पास महापौर चुनने के लिए पर्याप्त बहुमत है, मगर उसे शायद भय सता रहा है कि कहीं यहां भी भाजपा उसी तरह पांसा न पलट दे, जैसे चंडीगढ़ में किया था। वहां बहुमत न होने के बावजूद उसने अपना महापौर जिता लिया था।
महापौर का चुनाव टलते जाने का अर्थ है, निगम की योजनाओं का खिसकते जाना। इसका असर आखिरकार नागरिकों पर ही पड़ेगा। दोनों पार्टियां बढ़-चढ़ कर नागरिकों की हितैषी होने का दावा करती हैं। फिर वे इस तकाजे को क्यों नहीं समझ पातीं कि उनकी मूंछ की लड़ाई में दिल्ली के लोगों के हित प्रभावित हो रहे हैं। आम आदमी पार्टी के पास स्पष्ट बहुमत है, इसलिए उसे किसी तरह की आशंका से ग्रसित होकर इस चुनाव में बाधा डालने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
उपराज्यपाल से भी अपेक्षा की जाती है कि वे अपने पद की मर्यादा का पालन करते हुए लोकतांत्रिक प्रक्रिया को निर्बाध चलने दें। राजनीतिक वैमनस्यताएं चुनाव के समय तक ही अच्छी होती हैं, चुनाव के बाद खीज निकालने या फिर बेवजह अड़ंगा डालने के मकसद से नियम-कायदों को तोड़ने-मरोड़ने का प्रयास ठीक नहीं। उम्मीद की जाती है कि अब महापौर के चुनाव में कोई अड़चन नहीं आएगी।