खेल मंत्रालय ने एक समिति गठित करने का वचन दिया है, जो पहलवानों के तमाम आरोपों की जांच करेगी और उसकी रिपोर्ट के मुताबिक उचित कार्रवाई की जाएगी। तब तक कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष संघ के कामकाज से अलग रहेंगे और जांच में पूरा सहयोग करेंगे। अगर कोई आरोप गलत साबित होता है, तो यह भी पता लगाया जाएगा कि उसके पीछे क्या वजहें थीं। दरअसल, अब यह मामला राजनीतिक रंग भी लेने लगा था। हालांकि खिलाड़ियों ने किसी राजनेता को अपने मंच का इस्तेमाल नहीं करने दिया, मगर धरना स्थल से बाहर विपक्षी दल खुल कर सत्तापक्ष पर हमलावर थे।
करीब तीस अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पहलवान कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पर यह आरोप लगाते हुए धरने पर बैठ गए थे कि खिलाड़ियों के साथ उनका व्यवहार अशोभन है और उन्होंने कई महिला खिलाड़ियों का यौन शोषण किया है। कई प्रशिक्षक भी ऐसी गतिविधियों में शामिल हैं। पहलवानों की मांग थी कि अध्यक्ष को उनके पद से हटाया और कुश्ती महासंघ का पुनर्गठन किया जाए। पहलवानों के समर्थन में देश भर से दूसरे खेलों से जुड़े खिलाड़ी भी जुटने शुरू हो गए थे।
खेल संघों के पदाधिकारियों और प्रशिक्षकों के आचरण को लेकर लगातार शिकायतें मिलती रही हैं। उनमें अनियमितताओं के भी गंभीर आरोप लगते रहे हैं। खासकर महिला खिलाड़ियों के यौन शोषण को लेकर सख्त कार्रवाई की मांगें उठती रही हैं। कई मामलों में यह भी देखा जा चुका है कि प्रशिक्षक या किसी पदाधिकारी की यौन प्रताड़ना की शिकार खिलाड़ी ने खुदकुशी कर ली। इसलिए खेल संघों को साफ-सुथरा और सुरक्षित बनाने की मांग उठती रही है।
ऐसे में जब कुश्ती महासंघ के खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर खिलाड़ी उठ खड़े हुए और सभी ने एक स्वर में कहा कि उनके साथ उचित व्यवहार नहीं किया जा रहा, तो स्वाभाविक ही उससे गंभीर संदेश गया। हालांकि कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष खिलाड़ियों के इस विरोध के पीछे राजनीतिक शह बताने में जुटे हुए हैं, पर यह सवाल सबके मन में बना हुआ है कि आखिर इतने सारे खिलाड़ी अपना भविष्य दांव पर लगा कर क्यों किसी राजनीतिक दल के दबाव में विरोध पर उतरेंगे। यह साल उनके लिए काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ओलंपिक के लिए चयन की प्रक्रिया शुरू होनी है। इस तरह खेल मंत्रालय के हस्तक्षेप से न केवल इस मामले को राजनीतिक रंग देने पर विराम लगा, बल्कि खिलाड़ियों का समय भी नष्ट होने से रह गया।
अब दिल्ली में पहलवानों के धरने और उत्पीड़न के आरोपों के बाद फिलहाल खेल मंत्रालय ने कुश्ती संघ के सहायक सचिव विनोद तोमर को निलंबित कर दिया है। दरअसल, ऐसे आरोपों में अक्सर देखा जाता है कि जांच समितियों की सिफारिशें खिलाड़ियों के खिलाफ ही आती हैं। मगर इसमें चूंकि यौन शोषण का गंभीर आरोप शामिल है, इसलिए अगर उसकी जांच में किसी तरह का पक्षपात किया गया, तो खिलाड़ियों का मनोबल टूटेगा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गलत संदेश जाएगा।
पिछले कुछ सालों में पहलवानों ने अपने जज्बे से दुनिया में भारत का नाम ऊंचा किया है। ओलंपिक, राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में सबसे अधिक पदक कुश्ती में ही आए हैं। ऐसे में अगर इसके खिलाड़ियों को उचित मानसिक वातावरण में खेलने की व्यवस्था नहीं हो पा रही है, तो यह सरकार के लिए गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। जिस तरह खिलाड़ियों ने सरकार पर भरोसा जताया है, उसी प्रकार उनके भरोसे को बनाए रखने का प्रयास होना चाहिए।