संपादकीय: पटाखों पर पाबंदी
एनजीटी के ताजा आदेश को पिछले दिनों उसकी ओर से अठारह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी किए गए नोटिस के संदर्भ में देखा जा सकता है, जिसमें अगले कुछ दिनों तक के लिए पटाखों पर पाबंदी लगाने की बात कही गई थी। अब एनजीटी ने देश के उन सभी राज्यों में तीस नवंबर तक पटाखों के इस्तेमाल और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है, जहां की वायु गुणवत्ता ‘खराब’ की श्रेणी में बनी हुई है।

दिल्ली सहित देश के कई शहर पहले ही वायु की गुणवत्ता बेहद खराब होने की समस्या से जूझ रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से वायमंडल के घनीभूत होने और दबाव की वजह से नीचे रह गए धुएं या धूल के चलते न केवल प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया है, बल्कि दृश्यता कम होने की हालत भी साफ देखी जा सकती है।
ऐसे में चंद रोज बाद दीपावली के मद्देनजर पटाखे जलाए जाने से प्रदूषण का स्तर और कितना बढ़ सकता है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। वायु प्रदूषण की समस्या और गहराती देख कर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण यानी एनजीटी ने दिल्ली सहित समूचे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अगले तीस नवंबर तक के लिए पटाखों की बिक्री पर पूरी तरह रोक लगा दी है।
हालांकि एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि जिन शहरों में वायु की गुणवत्ता कुछ ठीक है या नियंत्रण में है, वहां सिर्फ हरित पटाखे बेचे जा सकते हैं। इस आदेश के बाद पिछले कुछ दिनों से कायम यह भ्रम भी दूर हो गया है कि हरियाणा सरकार ने अगर पटाखे जलाने के लिए दो घंटे की छूट दी है तो एनसीआर में आने वाले हरियाणा के शहरों में क्या स्थिति रहेगी। यानी अब एनसीआर के बाकी इलाकों सहित गुरुग्राम और फरीदाबाद में भी पटाखों पर पाबंदी लागू होगी।
एनजीटी के ताजा आदेश को पिछले दिनों उसकी ओर से अठारह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी किए गए नोटिस के संदर्भ में देखा जा सकता है, जिसमें अगले कुछ दिनों तक के लिए पटाखों पर पाबंदी लगाने की बात कही गई थी। अब एनजीटी ने देश के उन सभी राज्यों में तीस नवंबर तक पटाखों के इस्तेमाल और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है, जहां की वायु गुणवत्ता ‘खराब’ की श्रेणी में बनी हुई है।
हालांकि एनजीटी के इस आदेश के पहले दिल्ली, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, ओड़ीशा, राजस्थान, सिक्किम और कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर पटाखों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था, लेकिन कुछ राज्यों में इसमें आंशिक छूट दी गई थी। दीपावली के मौके पर पटाखे जलाना अब एक परंपरा के हिस्से के तौर पर देखा जाता है। लेकिन अगर हमारे आसपास की हवा इस हालत में पहुंच गई हो कि सांस लेना तक दूभर हो जाए, तो क्या हमें खुद ही अपनी सेहत को लेकर सचेत नहीं हो जाना चाहिए?
यह जगजाहिर है कि महामारी संक्रमण के मौजूदा दौर में पहले ही सांस लेने के मामले में सावधानी बरतने के लिए मास्क लगाने के निर्देश दिए गए हैं। प्रदूषण से सांस और फेफड़ों से संबंधित बीमारियां आम होती हैं। दूसरी ओर, कोरोना के संक्रमण से पीड़ित का गला और फेफड़ा बुरी तरह प्रभावित होत्ो हैं। ऐसी स्थिति में प्रदूषण से बचाव के साथ-साथ कोरोना के संक्रमण से होने वाली बीमारियों के प्रति सावधान रहना जरूरी है।
हर साल यह देखा गया है कि दीपावली के मौके पर जलाए जाने वाले पटाखों की वजह से हवा में जहरीले कणों की मौजूदगी बढ़ जाती है और कई बार सांस लेने में भी कुछ लोगों को घुटन महसूस होने लगती है। पहले से सांस की तकलीफ से गुजर रहे लोगों के लिए पटाखों के धुएं से भरी हवा एक तरह से जानलेवा साबित होती है।
आम लोगों के साथ समस्या यह है कि वे पटाखों से होने वाले प्रदूषण के बारे में कोई ब्योरा पढ़ तो लेते हैं, लेकिन जागरूकता की कमी के चलते उसका सामना करने के लिए अपने स्तर पर पहल नहीं करते। ऐसे में एनजीटी या खुद कई राज्यों की ओर से पटाखों पर लगाई गई पाबंदी एक स्वागतयोग्य पहल है।
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