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जनजातीय लोगों में भरोसे का अभाव मणिपुर में हिंसा की बड़ी वजह, राज्य सरकार को करनी होगी पहल

राज्य के जनजातीय लोगों में यह भरोसा पैदा नहीं हो पा रहा कि सरकार उनके हितों की रक्षा को प्रतिबद्ध है। ऐसे में केंद्रीय गृहमंत्री की अपील का उन पर कितना असर पड़ेगा, कहना मुश्किल है।

Manipur
मणिपुर के इंफाल में हिंसा प्रभावित इलाके में ध्वस्त मकान। (पीटीआई फोटो)

मणिपुर में एक बार फिर हिंसा भड़क उठी है। कुछ दिनों पहले इंफाल में कुछ दुकानें जला दी गईं। अब सीमावर्ती जिलों विष्णुपुर और चुराचांदपुर में हिंसा भड़की है, जिसमें एक व्यक्ति मारा गया। केंद्रीय गृहमंत्री को शांति की अपील करनी पड़ी है। करीब पखवाड़ा भर पहले वहां हिंसा भड़की थी तो भारी पैमाने पर सेना तैनात करनी पड़ी थी। दस हजार के आसपास लोगों को हिंसाग्रस्त इलाकों से बाहर निकाल कर सुरक्षित जगहों पर पहुंचाना पड़ा था। उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने का आदेश दे दिया गया। उसके बाद लगभग दस दिन तक वहां हिंसा रुकी रही। मगर इस हफ्ते फिर से उपद्रव शुरू हो गया।

कुकी और नगा समुदाय को लग रहा है कि सरकार हक छीन रही है

दरअसल, वहां के जनजातीय लोगों में यह भरोसा पैदा नहीं हो पा रहा कि सरकार उनके हितों की रक्षा को प्रतिबद्ध है। ऐसे में केंद्रीय गृहमंत्री की अपील का उन पर कितना असर पड़ेगा, कहना मुश्किल है। जबसे वहां नई सरकार आई है, तभी से कुकी और नगा समुदाय के लोगों को लगने लगा है कि वह उनके हक छीनना चाहती है। फरवरी में वहां के पहाड़ी इलाकों से तथाकथित बाहरी लोगों को हटाने का अभियान शुरू किया गया, तभी इन समुदायों के लोगों में रोष पैदा हो गया था।

जनजातीय लोगों की नाराजगी तब और बढ़ गई जब वहां के उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि उसे मैतेई समुदाय के लोगों को जनजाति का दर्जा देने की दस साल पुरानी मांग पर विचार करना चाहिए। इससे नगा और कुकी समुदाय के लोगों को लगने लगा है कि राज्य सरकार मैतेई समुदाय के लोगों को जनजाति का दर्जा देकर उनके हकों पर डाका डालने का षड्यंत्र कर रही है। उनकी इस धारणा को बदलने की जैसी कोशिश होनी चाहिए, वैसी दिख भी नहीं रही, इसलिए भी उनमें भरोसा नहीं पैदा हो पा रहा है कि उनके अधिकार सुरक्षित रहेंगे।

मणिपुर में मुख्य रूप से तीन समुदाय के लोग रहते हैं। उनमें से कुकी और नगा को जनजाति का दर्जा प्राप्त है और राज्य के पहाड़ी भूभाग को उनके लिए संरक्षित रखा गया है। यानी उन इलाकों में गैर-जनजातीय लोग जमीन-जायदाद नहीं खरीद सकते। इस तरह मैतेई समुदाय लोग केवल इंफल घाटी तक सिमटे हुए हैं। जबकि जनसंख्या के आधार पर इस समुदाय के लोग कुल आबादी के पचास फीसद से अधिक हैं। अगर उन्हें जनजाति का दर्जा मिल जाता है, तो कुकी और नगा समुदाय के लिए संरक्षित भूभाग में भी उनका प्रवेश संभव हो सकेगा।

मणिपुर में मैतेई समुदाय का राजनीतिक वर्चस्व है। वहां की साठ में से चालीस विधानसभा सीटों पर इसी समुदाय के लोग काबिज हैं। कारोबार और दूसरे क्षेत्रों में भी उन्हीं का दबदबा है। इसलिए नगा और कुकी समुदाय को हमेशा यह आशंका बनी रहती है कि अगर इन लोगों को पहाड़ी क्षेत्रों में भी प्रवेश का हक मिल गया, तो ये उनको विस्थापित कर देंगे। राज्य सरकार ने उनकी इस आशंका को दूर करने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया।

जब फरवरी में उनमें रोष देखा गया था, तभी कोई व्यावहारिक कदम उठाया जाता तो शायद आज यह नौबत न आने पाती कि मणिपुर में शांति बहाली के लिए बंदूक का सहारा लेना पड़ता। केंद्रीय गृहमंत्री ने पहले वहां के लोगों से शांति बनाने की अपील की है, फिर वहां जाकर उनकी समस्या का निराकरण करने का भरोसा दिलाया है। मगर यह भरोसा राज्य सरकार के इरादे में भी दिखना चाहिए।

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First published on: 27-05-2023 at 04:49 IST
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