पिछले कुछ सालों में अनेक कंपनियों पर शिकंजा कसा गया, उनकी धोखाधड़ी सबके सामने उजागर की गई, उनसे जुड़े कई नामचीन लोगों को जेल की सलाखों के पीछे भेजा गया। रिजर्व बैंक भी लगातार अपने विज्ञापनों के जरिए लोगों को सतर्क करता रहता है कि जल्दी से धन दोगुना करने का झांसा देने वालों के दुष्चक्र में न फंसें, क्योंकि रिजर्व बैंक ऐसी किसी योजना को मान्यता नहीं देता। फिर भी हैरानी की बात है कि चिटफंड चलाने वालों का जाल टूट नहीं रहा, लोग उनमें फंस भी जाते हैं।
इसका ताजा उदाहरण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से सटे विभिन्न जिलों में चिटफंड चलाने वाली एक कंपनी की ठगी है। वह अठारह महीनों में पैसा दोगुना करने का लालच देकर बहुत सारे लोगों को अपने चंगुल में फंसा चुकी थी। इस तरह उसने करोड़ों रुपए की ठगी की। जब लोगों को उस पर शक हुआ, तो शिकायत दर्ज करानी शुरू की। उन शिकायतों के आधार पर प्रशासन ने कार्रवाई की और कंपनी से जुड़े लोगों की परिसंपत्तियां कुर्क कर ठगे गए लोगों का पैसा वापस दिलाने का प्रयास किया है। मगर इस घटना से भी कितने लोग सबक लेंगे, कहना मुश्किल है।
अब ठगों ने ठगी के इतने तरीके ईजाद कर लिए हैं कि अच्छे-खासे पढ़े-लिखे और समझदार कहे जाने वाले लोग भी उनमें फंसते पाए जाते हैं। कुछ साल पहले चंडीगढ़ के एक पुलिस अधिकारी की पत्नी भी आनलाइन ठगी का शिकार हुई थी। इसी तरह मेल, फोन पर संदेश आदि भेज कर भी लोगों को फंसाए जाने की घटनाएं अक्सर देखी-सुनी जाती हैं।
कई कंपनियां सीधे धन दोगुना, ढाई गुना करने के दावे के बजाय ऐसे उत्पाद या योजनाओं में निवेश का लोभ देती हैं, जिसमें बहुत तेजी से बढ़ोतरी की संभावना जताई जाती है। ये तमाम योजनाएं होती काल्पनिक हैं, मगर उनकी रूपरेखा कुछ इस तरह तैयार की गई होती है कि बहुत आकर्षक और वास्तविक लगती हैं। मसलन, कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश में एक गिरोह ने बकरी पालन योजना में निवेश करा कर धन दोगुना करने की योजना चलाई थी और बहुत सारे लोगों को फंसा कर कुछ समय बाद भारी रकम लेकर वे चंपत हो गए। ऐसी योजनाओं में समझदार कहे जाने वाले लोगों को भी बड़ी संख्या में फंसते देखा जाता है।
चिटफंड चलाने वाली कंपनियों का तो लक्ष्य ही कम पढ़े-लिखे और दिहाड़ी, मजदूरी, रेहड़ी-पटरी पर रोजगार करने वाले लोग होते हैं। वे कुछ महीनों के तय समय में पैसा दोगुना करने का वादा करके उनसे रोज कुछ मामूली रकम जमा कराती हैं। ये कंपनियां कुछ ऐसे लोगों का तंत्र बनाती हैं, जो अपने आसपास के लोगों को इन योजनाओं से जोड़ सकें। वे उन्हें तो भरोसे में रखती हैं, पर बाकी निवेशकों का पैसा लेकर लापता हो जाती हैं।
जमाना इतना आगे बढ़ चुका है, ऐसे धोखाधड़ी करने वालों के बारे में अक्सर अखबारों, टीवी समाचारों, मोबाइल संदेशों आदि के जरिए सूचनाएं लोगों तक पहुंचती रहती हैं, फिर भी लोग सतर्क नहीं हो पाते, तो इसे विडंबना ही कह सकते हैं। हालांकि इस तरह के गिरोह बिल्कुल अंधेरे में भी अपना जाल नहीं फैलाते। कुछ जगहों पर अपने दफ्तर वगैरह तो खोलते ही हैं। इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि प्रशासन को उसकी भनक नहीं मिलती होगी। जब कानून ऐसी गतिविधियों की इजाजत नहीं देता, तो प्रशासन को उनके खिलाफ शिकायत का इंतजार ही क्यों करना चाहिए।