संपादकीय: संकट और साख
अदालत को उन लोगों को चेताने को मजबूर होना पड़ा है जो सर्वोच्च न्यायपालिका को बदनाम करने का षड्यंत्र कर रहे हैं। पिछले हफ्ते देश के प्रधान न्यायाधीश पर सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व कर्मचारी ने अमर्यादित आचरण करने का आरोप लगा कर सबको सकते में डाल दिया था।

भारत की न्यायपालिका गंभीर संकट में है। यह संकट उसकी साख और विश्वसनीयता को लेकर उठा है। मामला ज्यादा चिंताजनक इसलिए है कि देश के आम नागरिक से लेकर खास, अमीर-गरीब और सत्ता प्रतिष्ठान, सबके लिए न्याय की अंतिम आस सुप्रीम कोर्ट से रहती है। यहां से जो विधि-सम्मत न्याय मिलता है, वही अंतिम माना जाता है और संदेह से परे होता है। इसलिए अगर न्याय के इस मंदिर के बारे में ऐसी बातें सुनाई देने लगें जो आमजन के भीतर इसकी विश्वसनीयता को लेकर संदेह पैदा करने वाली हों, छवि को धूमिल करने वाली हों और न्याय करने वाले माननीय न्यायाधीश गंभीर आरोपों में घिरने में लगें, तो लोकतंत्र के इस महत्त्वपूर्ण स्तंभ के लिए इससे ज्यादा बुरा कुछ नहीं हो सकता। चिंता की यही ध्वनियां माननीय न्यायाधीशों की ओर से आ रही हैं। इसीलिए अदालत को उन लोगों को चेताने को मजबूर होना पड़ा है जो सर्वोच्च न्यायपालिका को बदनाम करने का षड्यंत्र कर रहे हैं। पिछले हफ्ते देश के प्रधान न्यायाधीश पर सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व कर्मचारी ने अमर्यादित आचरण करने का आरोप लगा कर सबको सकते में डाल दिया था। इस आरोप की जांच तीन जजों की एक कमेटी कर रही है।
लेकिन प्रधान न्यायाधीश पर ऐसे आरोप के बाद जिस तरह के घटनाक्रम बने और बातें सामने आर्इं, वे कहीं ज्यादा चिंताजनक और हैरान करने वाली हैं। एक वकील के इस दावे से कि प्रधान न्यायाधीश पर लगे आरोप के पीछे बड़ी साजिश और फिक्सर कॉरपोरेट लॉबी काम कर रही है, सब सन्न रह गए। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने इस वकील के आरोपों और दावों की जांच के लिए तत्काल सुप्रीम कोर्ट के ही पूर्व न्यायाधीश एके पटनायक को इसकी जांच सौंप दी। साथ ही सर्वोच्च अदालत ने सीबीआइ, खुफिया ब्यूरो (आइबी) और दिल्ली पुलिस के प्रमुख को इस जांच में न्यायमूर्ति पटनायक के साथ मदद करने को कहा गया है। साख को बचाने के लिए न्यायपालिका को आरोपों की तह तक जाना जरूरी है ताकि सच्चाई सामने आ सके और साजिश करने वालों का पर्दाफाश हो सके। प्रधान न्यायाधीश पर लगे आरोपों से ज्यादा कहीं गंभीर बात तो यह है कि न्याय के इस पवित्र और सर्वोच्च संस्थान को बाहर से नियंत्रित करने के प्रयासों की बातें सामने आ रही हैं। जांच में भले ऐसे आरोप बेबुनियाद निकलें, लेकिन तत्काल देश की जनता के भीतर न्यायपालिका को लेकर जो संदेह पैदा हुए होंगे, उन्हें आसानी से दूर नहीं किया जा सकता।
अपने ऊपर आरोप लगने के बाद प्रधान न्यायाधीश ने साफ कहा था कि वे कुछ महत्त्वपूर्ण मामलों की सुनवाई करने वाले हैं और इस तरह के आरोप उन पर दबाव बनाने के लिए लगाए गए हैं। न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाले ऐसे मामले पहले भी सामने आए हैं जब न्यायाधीशों को भारी दबाव का सामना करना पड़ा है, लेकिन वे इन दबावों के आगे झुके नहीं। पिछले साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने सार्वजनिक रूप से प्रधान न्यायाधीश पर जो आरोप लगाए थे, उनमें एक बड़ा आरोप रोस्टर को लेकर था। तब प्रधान न्यायाधीश पर कुछ खास मुकदमों को अपने पास रखने और परंपरा के विपरीत काम करने का आरोप लगा था। हालांकि अभी तक इन आरोपों की सच्चाई सामने नहीं आई है। इसलिए अगर अब फिर से ऐसे आरोप लग रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट में फिक्सरों की भूमिका है, तो इससे न्यायपालिका के प्रति अविश्वास पैदा होगा। कुछ महीनों पहले सीबीआइ में जिस तरह का घमासान मचा, उससे जांच एजेंसी की साख को भारी बट्टा लगा। अगर न्यायपालिका और जांच एजेंसियों की आजादी पर इस तरह से हमले होंगे और इनकी विश्वसनीयता को लेकर लोगों के मन में शक पैदा किया जाएगा तो ये संस्थान कैसे बचेंगे और लोकतंत्र में अपनी भूमिका निभाएंगे!