शादी समारोहों या जश्न के दौरान खुशी का इजहार करने के लिए हथियारों का प्रदर्शन और गोली चलाने की बढ़ती मानसिकता न केवल सामाजिक स्तर पर भय का वातावरण बना रही है, बल्कि इससे अपराध का एक नया रूप भी उभर कर सामने आ रहा है। खुशी की इस तथाकथित अभिव्यक्ति से आए दिन निर्दोष लोगों की जान जा रही है।

उत्तर प्रदेश के एटा जिले में हाल ही में विवाह समारोह के दौरान ऐसी ही एक घटना में दो नाबालिग लड़कों की मौत हो गई और जश्न का माहौल अचानक मातम में बदल गया। सवाल है कि इस तरह की गैर-कानूनी गतिविधियों पर आखिर रोक क्यों नहीं लग पा रही है? पुलिस भी तभी कार्रवाई करती नजर आती है, जब जश्न में गोली चलने से किसी की मौत हो जाती है।

अगर कोई अनहोनी न हो, तो समारोह में उत्साह और प्रसन्नता दिखाने के लिए गोली चलाने को आमतौर पर सामान्य माना जाता है। इसी लापरवाही का नतीजा है कि इस तरह की घटनाओं में जान जाने का जोखिम हमेशा बना रहता है।

दरअसल, विवाह समारोहों और अन्य निजी कार्यक्रमों में हथियारों का प्रदर्शन तथा हवा में गोली चलाने का चलन अपनी शान दिखाने का जरिया बन गया है।

सामाजिक और मानवीय पहलू से इस बात पर भी विचार करना जरूरी है कि समारोह के आयोजकों की ओर से अपने रिश्तेदारों और संबंधियों को अपने साथ हथियार लाने की अनुमति देना क्या उचित है। जबकि खुशी में गोली चलाने से किसी की मौत हो जाने की खबरें आए दिन आती रहती हैं।

शस्त्र (संशोधन) अधिनियम 2019 के मुताबिक, सार्वजनिक समारोहों, धार्मिक स्थलों, शादियों या किसी अन्य कार्यक्रम में गोला-बारूद और आग्नेयास्त्रों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध है।

इसके बावजूद अगर इनका बेरोकटोक इस्तेमाल हो रहा है, तो इससे पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठना भी स्वाभाविक है। यह सुनिश्चित करना पुलिस का कर्तव्य है कि लाइसेंसी हथियार का कहीं बेजा इस्तेमाल तो नहीं हो रहा है। अब समय आ गया है कि हथियार लाइसेंस की प्रक्रिया को भी कड़ा किया जाए और इसका दुरुपयोग रोकने के लिए एक मजबूत तंत्र विकसित किया जाए।

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