scorecardresearch

हिंसा की जड़ें, रामनवमी पर गुजरात, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में असहिष्णुता

दिल्ली के जिस इलाके में पिछले साल हिंसा हुई थी, उसी इलाके में इस साल रामनवमी के दिन भी शोभायात्रा निकालने का प्रयास किया गया, हालांकि पुलिस ने इसकी इजाजत नहीं दी थी।

Ramnavmi news| Ramnavmi Hinsa| RamNavami News Hindi|
गुजरात के वडोदरा में भी दो स्थानों पर पथराव की घटनाएं हुईं (वीडियोग्रैब- सोशल मीडिया)।

रामनवमी से एक दिन पहले ही सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए पीड़ा व्यक्त की थी कि देश के लोग यह संकल्प क्यों नहीं ले पाते कि वे दूसरे समुदायों के प्रति सहिष्णुतापूर्ण व्यवहार करेंगे। मगर यह बात शायद लोगों को सुनाई नहीं पड़ी। रामनवमी के दिन तीन राज्यों की कम से कम पांच जगहों पर भीषण हिंसा भड़क उठी, आगजनी हुई और कई लोग घायल हो गए।

शोभायात्रा पर पत्थरबाजी, कई लोग घायल

गुजरात, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में यह हिंसा उस वक्त हुई जब रामनवमी की शोभायात्रा निकाली जा रही थी और उस पर पत्थर बरसाए गए। पिछले साल हनुमान जयंती के मौके पर भी इसी तरह शोभायात्रा के दौरान छह राज्यों में हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें कई लोग मारे और कई घायल हो गए थे।

दिल्ली के जिस इलाके में पिछले साल हिंसा हुई थी, उसी इलाके में इस साल रामनवमी के दिन भी शोभायात्रा निकालने का प्रयास किया गया, हालांकि पुलिस ने इसकी इजाजत नहीं दी थी। रामनवमी पर जिन जगहों पर हिंसा भड़की, वहां कुछ लोगों को छतों से पत्थर बरसाते हुए भी देखा गया। इन सभी इलाकों में मुसलिम आबादी रहती है और वहां मस्जिदें भी हैं।

Also Read
Mohan Bhagwat: भारत से अलग होने के बाद भी पाकिस्तानी नाखुश, विभाजन को मान रहे गलती- मोहन भागवत

स्वाभाविक ही इस हिंसा के चलते समुदाय विशेष फिर से निशाने पर आ गया है। हालांकि पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा के पीछे वहां की मुख्यमंत्री भाजपा का हाथ बता रही हैं। इस पर राजनीति तो होनी ही थी और वह कई दिनों तक होगी। फिर उन इलाकों में दोनों समुदायों के बीच वर्षों तनावपूर्ण रिश्ते बने रहेंगे। ऐसी सांप्रदायिक हिंसा के नतीजे आखिरकार समाज को ही भुगतने पड़ते हैं।

ऐसी घटनाओं के पीछे किसी एक समुदाय को दोषी करार नहीं दिया जा सकता। मर्यादाएं दोनों तरफ से टूटती देखी जाती हैं। इन दिनों रमजान भी चल रहा है और इस बीच में रामनवमी का त्योहार आ गया, इसलिए शोभायात्रा जैसे आयोजनों में प्रशासन से खासी सतर्कता की अपेक्षा की जाती थी, जो दिल्ली में देखी भी गई। मगर गुजरात, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में इसकी जरूरत क्यों नहीं समझी गई या कैसे वहां के प्रशासन से चूक हुई कि वे इन्हें रोकने में नाकाम साबित हुए।

ऐसी शोभायात्राएं बिना पुलिस की जानकारी के नहीं निकाली जातीं और उनका मार्ग भी पहले से तय होता है। ऐसे में पुलिस को जानकारी रहती है कि किन इलाकों से शोभायात्रा के गुजरने पर हिंसा भड़कने की आशंका हो सकती है। फिर इस पहलू पर गंभीरता से विचार क्यों नहीं किया गया।

हालांकि उपद्रवी तत्त्व कब नियम-कायदों की परवाह करते हैं। उनकी तो कोशिश होती है कि वे कुछ ऐसा करें, जिससे समाज में विद्वेष और तनाव का वातावरण बने। औरंगाबाद में भीड़ ने पुलिस पर ही हमला कर दिया। अब यह भी छिपी बात नहीं है कि ऐसे उपद्रवी तत्त्व किनके इशारे पर यह सब करते हैं।

अनेक जांच नतीजों से प्रकट है कि सबके पीछे राजनीतिक मंशा होती है। इसलिए जिन्होंने पत्थर फेंके या पुलिस पर हमला किया, वे कोई धार्मिक लोग नहीं कहे जा सकते, क्योंकि कोई धर्म निजी और सामुदायिक आस्था का विषय होता है, न कि उन्माद प्रदर्शन का। जो लोग इस तरह सड़कों पर धर्म का प्रदर्शन करते निकलते हैं या धर्म के नाम पर हाथ में पत्थर उठा लेते हैं, उनकी मंशा धार्मिक होती भी नहीं। जब तक इन्हें रोकने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई जाती, तब तक ऐसे उपद्रवों और हिंसा पर रोक लगाना मुश्किल ही रहेगा।

पढें संपादकीय (Editorial News) खबरें, ताजा हिंदी समाचार (Latest Hindi News)के लिए डाउनलोड करें Hindi News App.

First published on: 01-04-2023 at 05:27 IST
अपडेट