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शिकंजे से बाहर खालिस्तान समर्थक अमृतपाल, पुलिस घेरे से निकल भागना खड़े करता है कई सवाल

आम आदमी पार्टी पर खालिस्तान समर्थकों के प्रति हमदर्दी रखने के आरोप लगते रहे हैं। यह आरोप विधानसभा चुनाव के समय ही लग गया था। ऐसे में अगर अमृतपाल जैसे लोगों की गिरफ्तारी में किसी तरह की चूक होती है, तो सवाल उस पर भी उठेंगे ही। उसे इस मामले में अपनी पक्षधरता स्पष्ट करनी होगी।

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तस्वीर का इस्तेमाल प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है (Source- Representational Image/ Financial Express)

खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह का पुलिस घेरे से निकल भागना कई सवाल खड़े करता है। पुलिस ने उसे पकड़ने का बहुत चुस्त बंदोबस्त कर रख था, उसमें वह उसके पास तक पहुंचने में कामयाब भी रही। अमृतपाल के कुछ सहयोगी तो पकड़े गए, मगर वह खुद फरार होने में कामयाब हो गया। बताया जा रहा है कि जब पुलिस उस तक पहुंचने ही वाली थी कि वह अपनी गाड़ी से निकल कर दूसरी गाड़ी में बैठा और पुलिस घेरे से निकल भागा।

हालांकि पंजाब पुलिस के इस खोज अभियान की तारीफ की जानी चाहिए कि उसमें किसी तरह की हिंसा नहीं हुई और वह अमृतपाल के सहयोगियों को सहज ढंग से पकड़ पाई। मगर इस अभियान में जिस मुख्य व्यक्ति की तलाश थी, वह कैसे भाग निकला, इसका जवाब तो उसे देना होगा। अमृतपाल खुलेआम ‘वारिस पंजाब दे’ नाम का संगठन बना कर अलग खालिस्तान के लिए लोगों को उकसा रहा था।

पंजाब में उसके बढ़ते प्रभाव का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पिछले महीने जब उसके एक समर्थक को पुलिस ने गिरफ्तार किया तो हथियारों से लैस बड़ी संख्या में उसके समर्थकों ने अजनाला थाने पर हमला कर दिया और उस गिरफ्तार व्यक्ति को बाहर निकाल लिया।

अजनाला की घटना के बाद से ही पंजाब पुलिस अमृतपाल को गिरफ्तार करने की योजना बना रही थी, मगर उसे कामयाबी नहीं मिल पा रही थी। आखिरकार केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसमें दखल दी और उसकी गिरफ्तारी की योजना बनी। आशंका थी कि अमृतपाल की गिरफ्तारी के बाद लोग सड़कों पर उतर कर उपद्रव शुरू कर देंगे, जिसे संभालना मुश्किल होगा। दरअसल, अमृतपाल गुरु ग्रंथ साहिब की आड़ लेकर अपने आंदोलन को आगे बढ़ा रहा है, इस वजह से सिख समुदाय के लोगों को भावनात्मक रूप से अपने साथ जोड़ने में कामयाब हो पाया है।

मगर पंजाब की बड़ी आबादी किसी भी रूप में फिर से अलगाववादी गतिविधियों को सिर उठाते नहीं देखना चाहती। अमृतपाल की गतिविधियों को किसी भी रूप में आंदोलन नहीं कहा जा सकता, वह अलगाववाद को उकसा रहा है। पंजाब पहले ही इस आग में बुरी तरह झुलस चुका है।

मगर अमृतपाल जैसे लोग इसलिए पंजाब में इस चिनगारी को हवा देने में कामयाब होते रहे हैं कि उन पर ठीक से शिकंजा नहीं कसा जा सका। जबसे पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार आई है, अलगाववादी ताकतों ने खुल कर अपनी गतिविधियों को तेज कर दिया है। इसलिए स्वाभाविक ही पंजाब की नई सरकार पर अंगुलियां उठ रही हैं।

अच्छी बात है कि अमृतपाल के पचहत्तर से अधिक समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया गया है और कुछ खतरनाक माने जाने वाले समर्थकों को असम की जेल में भेज दिया गया है। पुलिस अभी और लोगों की तलाश में जुटी है। इससे ‘वारिस पंजाब दे’ के जरिए खालिस्तान समर्थक गतिविधियों पर कुछ लगाम लग सकेगी।

मगर जिस तरह अमृतपाल पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर या किसी भीतरी आदमी की मदद से निकल भागने में कामयाब हुआ है, उससे पंजाब पुलिस की मुस्तैदी और खालिस्तान समर्थकों पर शिकंजा कसने के इरादे पर सवाल बना रहेगा। आम आदमी पार्टी पर खालिस्तान समर्थकों के प्रति हमदर्दी रखने के आरोप लगते रहे हैं। यह आरोप विधानसभा चुनाव के समय ही लग गया था। ऐसे में अगर अमृतपाल जैसे लोगों की गिरफ्तारी में किसी तरह की चूक होती है, तो सवाल उस पर भी उठेंगे ही। उसे इस मामले में अपनी पक्षधरता स्पष्ट करनी होगी।

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First published on: 20-03-2023 at 05:53 IST
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