यह उजागर तथ्य है कि भ्रष्टाचार की जड़ें अफसरशाही में ही पनपती हैं। इसीलिए अधिकारियों की आय और संपत्ति आदि का नियमित मूल्यांकन करने की व्यवस्था है। इसके लिए बकायदा कानून और दंड के प्रावधान हैं। उन्हें हर साल अपनी आय और संपत्ति का ब्योरा देना होता है। मगर हकीकत यह है कि बहुत सारे अधिकारी इन नियम-कायदों को धता बताने से बाज नहीं आते। इस मामले से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने बताया है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के करीब चौदह सौ अधिकारियों ने पिछले ग्यारह सालों से अपनी आय और संपत्ति से संबंधित ब्योरा पेश नहीं किया है।
सरकार ने शेयर बाजार में निवेश का विवरण मांगा है
अब सरकार ने अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारियों से शेयर बाजार में निवेश और उससे होने वाली आय का विवरण भी जमा कराने का आदेश दिया है। अगर किसी अधिकारी की शेयर बाजार में निवेश से आय उसके छह माह के मूल वेतन से अधिक है, तो उसके लिए उसका विवरण जमा कराना अनिवार्य होगा। यह नया नियम भी उन्हीं पुराने नियमों में जुड़ गया है, जो ब्रिटिश जमाने से चले आ रहे आय और संपत्ति से जुड़े कानून हैं। इसलिए भ्रष्ट अधिकारियों पर इस नए नियम का कितना मानसिक दबाव बन पाएगा, दावा नहीं किया जा सकता।
आय और संपत्ति के ब्योरों की जांच करने वाले तंत्र का विकास करें
प्रशासनिक अधिकारियों के भ्रष्टाचार करने के तरीके उजागर हैं। हर सरकार भ्रष्टाचार समाप्त करने का दम भरती है, मगर अधिकारियों के आचरण पर उसका कोई असर पड़ता नजर नहीं आता। वे गलत तरीके से धन और संपत्ति जमा करने के रास्ते निकाल ही लेते हैं, यहां तक कि उन्हें छिपाने की जगहें भी। तबादले वगैरह का भी उन पर बहुत असर नहीं पड़ता। ऐसे में संसद की स्थायी समिति ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को सुझाव दिया है कि एक ऐसे तंत्र का गठन किया जाना चाहिए, जो अधिकारियों द्वारा पेश किए गए आय और संपत्ति के ब्योरों की जांच करे और उनकी वास्तविक कमाई का खुलासा करे।
सुझाव अच्छा है, अगर ऐसा कोई तंत्र बनता है, तो शायद प्रशासनिक अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण पर कुछ लगाम लगे। मगर उस नियामक तंत्र में भी जो अधिकारी-कर्मचारी होंगे, उनका आचरण कितना पारदर्शी होगा, कैसे दावा किया जा सकता है। फिर, ऐसा नहीं कि अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण पर नजर रखने के लिए पहले से तंत्र नहीं है। आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग आदि उनके भ्रष्ट आचरण पर नजर रखते ही हैं। कुछ जगहों पर खुद प्रशासनिक अधिकारियों ने भी भ्रष्ट अफसरों पर नजर रखने के लिए अलग से तंत्र तैयार कर रखा है, जैसे उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक अधिकारियों का संघ हर साल भ्रष्ट अफसरों की सूची जारी करता है। मगर इन सबके बावजूद उनके आचरण में कोई बदलाव नजर नहीं आता।
फिर यह भी एक प्रकट तथ्य है कि प्रशासनिक अधिकारियों को भ्रष्टाचार की शह राजनीतिक नेतृत्व से मिलती है। जब भी आय से अधिक संपत्ति जमा करने के किसी मामले में जांच होती है, तो उसके तार सत्तापक्ष के लोगों से भी जुड़े नजर आते हैं। मौजूदा केंद्र सरकार पिछली सरकारों के समय हुए भ्रष्टाचारों की पोल खोलने के इरादे से जांचों का सिलसिला चला रही है। उससे जाहिर है कि किस तरह नौकरशाही और राजनेताओं की मिलीभगत से भ्रष्टाचार फैलता है। इसलिए अगर सचमुच भ्रष्टाचार खत्म करना है, जिससे संबंधित संयुक्त राष्ट्र संधि पर भारत ने हस्ताक्षर भी किए हैं, तो एक ऐसे तंत्र का गठन करने पर विचार करना चाहिए, जो भ्रष्टाचार के पूरे संजाल को छिन्न-भिन्न कर सके।