आपदा और प्रबंधन
इंडोनेशिया दुनिया के उन कुछ चंद देशों में है जिन्हें बार-बार सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदा झेलनी पड़ती है। समुद्र तटों से घिरे देश और उनके तटीय इलाके कुदरत की इस मार को झेलने के लिए विवश हैं। इससे बचाव का कोई रास्ता इसलिए नहीं दिखता है कि वैज्ञानिक आज भी भूकम्प और ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सही-सही अनुमान लगाने का तरीका नहीं खोज पाए हैं।

इंडोनेशिया दुनिया के उन कुछ चंद देशों में है जिन्हें बार-बार सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदा झेलनी पड़ती है। समुद्र तटों से घिरे देश और उनके तटीय इलाके कुदरत की इस मार को झेलने के लिए विवश हैं। इससे बचाव का कोई रास्ता इसलिए नहीं दिखता है कि वैज्ञानिक आज भी भूकम्प और ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सही-सही अनुमान लगाने का तरीका नहीं खोज पाए हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया के इस छोटे देश पर जब-जब ऐसी आपदा आई है, उसने दिसंबर 2004 की सुनामी की याद दिला दी। तीन दिन पहले फिर सुनामी ने इंडोनेशिया को हिलाया। इस बार तीन सौ से ज्यादा लोगों के मारे जाने की खबर है, सैकड़ों लोग घायल हुए, मलबे में दबे हैं। कितने लहरों में बह गए, इसका फिलहाल कोई हिसाब नहीं लग पाया है। वैज्ञानिक तथ्य यही है कि सुनामी तब आती है जब समुद्र में भूकम्प आता है या ज्वालामुखी फूटता है या फिर बहुत ज्यादा शक्ति वाले परमाणु परीक्षण किए जाते हैं। लेकिन भूकम्प और ज्वालामुखी से जो सुनामी उठती है, उसके खतरे का अनुमान लगा पाना आज भी मनुष्य के बूते के बाहर की बात है। भले सुनामी की चेतावनी देने वाले तंत्र विकसित हो गए हैं, लेकिन इस कुदरती कहर के सामने ये बौने ही साबित ही हुए हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि इंडोनेशिया के समक्ष यह बड़ा और गंभीर संकट है। दुनिया के तमाम देशों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया है। लेकिन पिछले चौदह साल में इस देश ने छह से ज्यादा बार सुनामी की मार झेली है। 2004 में आई सुनामी को अब तक की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा माना जाता है। तब सुमात्रा के समुद्र को 9.1 तीव्रता वाले भूकम्प ने हिला दिया था और इसका असर न केवल भारत, बल्कि पूर्वी अफ्रीका के तटीय इलाकों तक हुआ था। करीब ढाई लाख लोगों की मौत का कारण बनी इस सुनामी ने भारत के पूर्वी तट, खासतौर से तमिलनाडु के बड़े हिस्से में भारी तबाही मचाई थी। तब दुनिया के देशों को पहली बार सुनामी की चेतावनी देने वाले तंत्र की जरूरत महसूस हुई, ताकि सुनामी के बारे में पूर्व संकेत मिल जाएं तो तटीय इलाकों में होने वाली तबाही को कम किया जा सके। दरअसल, इंडोनेशिया की भौगोलिक स्थिति ही कुछ ऐसी है कि उसे प्रकृति की इस मार को झेलना पड़ता है। इंडोनेशिया प्रशांत महासागर के उस इलाके में पड़ता है, जहां ज्वालामुखी फटते रहते हैं और इस इलाके का दायरा चालीस हजार किलोमाटर का है। दुनिया के पचहत्तर फीसद ज्वालामुखी भी इसी दायरे में पड़ते हैं।
सुनामी की चेतावनी वाला जो तंत्र फिलहाल दुनिया में मौजूद है, वह समुद्र के भीतर आने वाले भूकम्प का संकेत तो दे सकता है, लेकिन उसके भीतर ज्वालामुखियों के फटने की जानकारी नहीं दे सकता। ऐसे में इंडोनेशिया जैसे देश के सामने इस समस्या से निपटने का रास्ता सिर्फ आपदा प्रबंधन का ही है। हालांकि इंडोनेशिया ने ऐसे संकटों से निपटने के लिए अपने को काफी हद तक तैयार करने में सफलता हासिल की है। ऐसी आपदाओं के बाद महामारी का खतरा सबसे ज्यादा होता है। लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने, उनके लिए दवाइयां, भोजन, राहत शिविर तैयार करने जैसी चुनौतियां ज्यादा बड़ी होती हैं। कुछ साल पहले जापान ने भी बड़ी सुनामी का सामना किया था। लेकिन जापान का आपदा प्रबंधन इतना जबर्दस्त था कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को बचा लिया गया और सुरक्षित ठिकानों पर पहुंचा दिया गया था। कुछ महीनों में ही पूरा शहर फिर से खड़ा हो गया। कुदरत की ताकत के आगे हम भले बौने हों, लेकिन आपदाओं से निपटने का सलीका जापान से सीखा जा सकता है।