मानवता के रक्षक
भारत और पाकिस्तान के मछुआरे अक्सर गफलत में एक-दूसरे की समुद्री सीमा में प्रवेश कर जाते हैं। यही हुआ जब करीब साठ भारतीय मछुआरे पाकिस्तान की समुद्री सीमा में प्रवेश कर गए।

ऐसे समय जब जासूसी के आरोप में कुलभूषण जाधव नामक भारतीय नागरिक को पाकिस्तान ने मौत की सजा सुनाई है, भारतीय मछुआरों ने पाकिस्तानी तटरक्षक बल के कर्मियों को डूबने से बचा कर आपसी भाईचारे की मिसाल कायम की। भारत और पाकिस्तान के मछुआरे अक्सर गफलत में एक-दूसरे की समुद्री सीमा में प्रवेश कर जाते हैं। यही हुआ जब करीब साठ भारतीय मछुआरे पाकिस्तान की समुद्री सीमा में प्रवेश कर गए। वहां की मैरीटाइम सिक्यूरिटी एजंसी यानी पीएमएसए के अधिकारी उन्हें गिरफ्तार कर कराची ले जा रहे थे कि उनकी नौका भारतीय मछुआरों की एक नौका से टकरा कर पलट गई और कई कर्मचारी समंदर में डूबने लगे। तब उनकी जान बचाने में भारतीय मछुआरों ने मदद की। हालांकि चार पाकिस्तानी तटरक्षक सैनिक डूब गए। उनके शव तलाश कर भारतीय मछुआरों ने पाकिस्तानी सेना को सौंप दिए। इस घटना से एक बार फिर यही जाहिर हुआ कि दोनों देशों के बीच राजनीतिक रूप से चाहे जितना तनाव हो, पर सामान्य नागरिक मानवीय तकाजों को कभी नहीं भूलते।
ऐसा ही उस वक्त हुआ, जब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भारी भूकंप आया था। तब भारतीय सेना ने सारी कटुता भुला कर सीमा पार की और उधर के लोगों को राहत सामग्री उपलब्ध कराई थी। संकट के समय भी जो दुश्मनी निभाए उसे मनुष्य नहीं कहा जा सकता। सीमा पर तनाव की वजहें कुछ और हैं, जिनका समाधान दोनों तरफ के हुक्मरानों को तलाशना है। नागरिकों के बीच भेदभाव करके मसले हल नहीं किए जा सकते। इसी के मद्देनजर अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने दोनों देशों के बीच रेल और बस सेवाएं शुरू की थी। व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आदान-प्रदान पर जोर दिया गया था। बंटवारे के बाद बहुत सारे लोग पाकिस्तान छोड़ कर भारत आए थे, तो बहुत सारे लोग इधर से उधर गए थे। ऐसे में बहुत से लोगों की रिश्तेदारियां सीमा पार हैं। कइयों के परिवार के सदस्य दो देशों में बंट गए। मगर उनका उनसे मिलना-जुलना, अपने छोड़े हुए घर-बार की यादों को टटोलना बना रहता है। इस तरह दोनों देशों के नागरिकों के बीच भाई-चारे की भावना क्षीण नहीं होने पाई है।
ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जब पाकिस्तान के लोगों ने भारतीय नागरिकों की खुले दिल से मेहमाननवाजी की। भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी उन लम्हों को अक्सर याद करते हैं, जब वे पाकिस्तान में क्रिकेट खेलने गए थे और वहां के दुकानदारों, सामान्य नागरिकों ने खुले दिल से उनका स्वागत किया था। अगर किसी ने कुछ खरीदना चाहा तो उन्होंने उसका पैसा तक नहीं लिया। मगर विचित्र है कि वहां के हुक्मरान आम लोगों के बीच की इस मुहब्बत की भाषा पढ़ नहीं पाते। नफरत बोकर अपनी सियासत चमकाने की फिराक में रहते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय जो रेल और बस सेवाएं शुरू की गई थीं, वे पाकिस्तान सरकार ने रंजिश के चलते बंद करा दीं। दोनों देशों के नागरिक आपस में मिलें-जुलें, एक-दूसरे को समझने की कोशिश करें तो नफरत की आग शायद कुछ कम हो। मगर पाकिस्तान अलगाववादी ताकतों को उकसा कर, सारी फसाद की जड़ भारत को बता कर हकीकत पर परदा डाले रखने और अपनी हुकूमत चलाने की कोशिश करता रहता है। अगर वहां के हुक्मरान भारतीय मछुआरों की मदद के बहाने मानवीय तकाजे को पढ़ने का प्रयास करें, तो शायद उन्हें बेवजह तनातनी के मौके तलाशने से परहेज में कुछ मदद मिले।
Hindi News के लिए हमारे साथ फेसबुक, ट्विटर, लिंक्डइन, टेलीग्राम पर जुड़ें और डाउनलोड करें Hindi News App। Online game में रुचि है तो यहां क्लिक कर सकते हैं।