अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में भारत कितना बड़ा मुद्दा बन सकता है और वहां रह रहे भारतीय चुनाव में कितनी निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं, इसका संकेत पिछले साल ही मिल गया था। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान ह्यूस्टन में आयोजित कार्यक्रम- हाउडी मोदी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदगी इस बात का प्रमाण थी कि ट्रंप को दोबारा से सत्ता में आने के लिए भारतीय समुदाय के लोगों का समर्थन कितना जरूरी है। इसीलिए तब ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ का नारा सुनने को मिला था।
इसमें कोई संदेह नहीं अमेरिका में बड़ी संख्या में भारतीय हैं जो हर तरह से अमेरिका के विकास में योगदान दे रहे हैं। चाहे वह शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में शोध और अनुसंधान हो, चिकित्सा क्षेत्र हो, या फिर आइटी क्षेत्र या दोनों देशों के बीच कारोबारी संबंध, हर मामले में अमेरिका भारतीयों की अहमियत से इंकार नहीं कर सकता। हालांकि अब से पहले भारत और भारतीय अमेरिकी चुनाव का मुद्दा कभी नहीं बने। लेकिन इस बार जिस वैश्विक माहौल में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव हो रहे हैं, उसमें भारत और अमेरिका में रह रहे भारतीयों के हितों पर भी काफी असर पड़ा है। ऐसे में भारत और भारतीय चुनाव में मुद्दा क्यों नहीं बनें?
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में एक और बड़ा मुद्दा चीन और कोरोना रहा है। इस मुद्दे पर विपक्ष ने ट्रंप को जम कर घेरा है। कोरोना संकट से अमेरिकी अर्थव्यवस्था हिल गई है। करोड़ों अमेरिकी बेरोजगार हो गए। जाहिर है, भविष्य में इसका असर अमेरिका में रह रहे दूसरे देशों के नागरिकों पर पड़े बिना नहीं रहने वाला। पिछले कुछ महीनों में एच-1बी वीजा को लेकर ट्रंप जिस तरह के फरमान जारी करते रहे, उससे विदेशियों के मन में भय तो पैदा हो ही गया। ट्रंप की वीजा नीति का सबसे ज्यादा नुकसान भारत की आइटी कंपनियों और पेशेवरों को होगा। भारतीयों का मसला गंभीर इसलिए भी है कि अमेरिका साल में जितने एच-1बी वीजा जारी करता है, उनमें सत्तर से पचहत्तर प्रतिशत वीजा भारतीयों को दिए जाते हैं।
ऐसे में इस वीजा नीति की मार सबसे ज्यादा भारतीयों पर ही पड़ेगी और भारतीयों के लिए अमेरिका के दरवाजे बंद होने लगेंगे। इसलिए डेमोक्रेट इस मसले को हाथ से नहीं जा दे रहे हैं। उपराष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस भारत के साथ मजबूत रिश्तों की प्रबल समर्थक हैं, साथ ही वे तमिल मूल की हैं, इसलिए भारतीय समुदाय के लोगों पर उनका खासा असर साफ नजर आ रहा है।
दरअसल, ट्रंप भारत के साथ रिश्तों को लेकर जिस तरह से चलते आए हैं, उससे यह तो साफ हो चुका है कि वे अमेरिकी हितों के लिए भारत का इस्तेमाल बखूबी कर रहे हैं। चीन से मोर्चा लेने के लिए भारत अमेरिका का सबसे बड़ा मददगार साबित हो सकता है, इसीलिए अमेरिका का जोर जापान-आॅस्ट्रेलिया-अमेरिका-भारत (क्वाड) गठजोड़ को मजबूत बनाने पर रहा है। भारत और अमेरिका के बीच रक्षा समझौते भी हैं।
अमेरिका के लिए भारत बड़ा बाजार भी है। लेकिन आयात शुल्क के मुद्दे पर ट्रंप प्रशासन ने जिस तरह से आंखें तरेरी थी, उससे साफ था कि अमेरिकी हितों के आगे ट्रंप कोई समझौता नहीं करेंगे। हालांकि भारत को अमेरिका की उतनी ही जरूरत है। हाल में ट्रंप ने भारत की आबोहवा को ‘गंदा’ कह डाला और इसे डेमोक्रेट ने बड़ा मुद्दा बना डाला। इस वक्त ट्रंप हों या बाइडेन, भारत के साथ संबंधों और हितों के लंबे चौड़े वादे और दावे कर रहे हैं। अमेरिका में चालीस लाख के करीब भारतवशी मतदाता हैं। ऐसे में भारतीयों का रुख निर्णायक भूमिका तो निभाएगा।