हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है जब भारत ने रूस और यूक्रेन के बीच वार्ता की वकालत की हो। युद्ध शुरू होने के बाद से ही भारत इस बात पर जोर देता आया है कि दोनों देशों को बातचीत करनी चाहिए और कूटनीतिक समाधान के जरिए मामला सुलझाना चाहिए। लेकिन विडंबना यह है कि जंग के मैदान में कोई किसी की सुनता दिख नहीं रहा।
जहां रूस पूरी ताकत के साथ यूक्रेन को सबक सिखाने पर तुला है, वहीं अमेरिका और यूरोपीय देश यूक्रेन के साथ खड़े हैं और उसे हर तरह की मदद मुहैया करवा रहे हैं। इससे यूक्रेन का भी मनोबल बढ़ा हुआ है। हालांकि बीच-बीच में ऐसे संकेत भी मिलते दिखे कि दोनों देशों के बीच बातचीत का रास्ता बन सकता है। लेकिन परमाणु हमलों के इस्तेमाल की रूस की धमकियों और पश्चिमी देशों की राजनीति से ऐसी उम्मीदों पर पानी फिरता रहा। दोनों देशों के बीच जंग चलते नौ महीने हो चुके हैं। इसलिए यह सवाल हर क्षण महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है कि जंग को रुकवाया कैसे जाए।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मास्को में अपने समकक्ष सर्गेई लावरोव के साथ मुलाकात में एक बार फिर यही बात दोहराई कि यह वक्त युद्ध का नहीं है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस-यूक्रेन जंग रोकने की अपील करते हुए यही बात कही थी। इसमें तो कोई संदेह नहीं कि युद्ध की वजह से यूक्रेन तो तबाह हो ही चुका है, रूस की हालत भी खराब होती जा रही है। लेकिन इससे भी बड़ा संकट यह है कि इस युद्ध की वजह से दुनिया के कई देश आर्थिक संकट में फंस गए हैं। रूस यूरोप के ज्यादातर देशों को तेल और प्राकृतिक गैस देता है। इसके अलावा यूक्रेन और रूस दोनों ही गेहूं के बड़े निर्यातक हैं। इसलिए हर कोई अब इस कोशिश में है कि जंग को रुकवाया जाए। लेकिन रास्ता इतना आसान लग नहीं रहा।
रूस के साथ भारत के रिश्ते दुनिया से छिपे नहीं हैं। दशकों से रूस भारत के हर मामले में संबंधों का निर्वाह करता आया है और भारत ने भी उसे वही मान-सम्मान दिया है। रूस-यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद अमेरिका ने रूस की आलोचना करने, उसके खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में मतदान करने और उससे तेल नहीं खरीदने जैसी बातों को लेकर भारत पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था। लेकिन भारत ने इस मुद्दे पर तटस्थता की नीति अपनाई।
अभी भी मास्को में अपने समकक्ष सर्गेई लावरोव के साथ बातचीत के बाद विदेश मंत्री ने यही दोहराया कि अपने नागरिकों को किफायती दरों पर तेल मुहैया करवाना सरकार का मौलिक कर्तव्य है और इसके लिए भारत रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा। भारत का यह रुख अमेरिका के लिए किसी कड़े संदेश से कम नहीं है। भारत चाहता है कि किसी भी तरह से रूस और यूक्रेन बातचीत की मेज पर आएं और उन आशंकाओं को दूर करें जिनसे लग रहा है कि यह जंग कहीं तीसरे विश्वयुद्ध का रूप धारण न कर ले। इसीलिए उसने रूस को वार्ता का सुझाव दिया है। अब देखना यह है कि रूस का क्या रुख रहता है।