इसमें दो राय नहीं कि भारतीय सिनेमा की दुनिया में जितनी फिल्में भी बनी हैं, उनमें से कई को देश-विदेश में अलग-अलग मानकों पर बेहतरीन रचना होने का गौरव मिला। जहां तक वैश्विक स्तर पर सिनेमा के सबसे ऊंचा माने जाने वाले आस्कर पुरस्कारों का सवाल है, बहुत कम भारतीय फिल्मों को उसमें कुछ महत्त्वपूर्ण हासिल करने का मौका मिला। लेकिन पंचानबेवें अकादमी पुरस्कारों यानी आस्कर में भारत में बनी दो मुख्य कृतियों को जो उपलब्धि मिली है, वह निश्चित रूप से यहां के सिनेमा प्रेमियों के लिए खुश होने वाली बात है।
‘द एलिफेंट विस्पर्स’ को सबसे अच्छे लघु वृत्तचित्र का तमगा मिला
गौरतलब है कि इस साल आस्कर के लिए भारत की ओर से तीन फिल्मों ने मजबूत दावा पेश किया था। लेकिन इनमें दक्षिण भारत में बनी फिल्म ‘आरआरआर’ के एक गीत ‘नाटु-नाटु’ ने चयनकर्ताओं के सामने ऐसी स्थिति बनाई कि उसे सबसे अच्छे मौलिक गीत की कसौटी पर इस श्रेणी के पुरस्कारों के लिए नामांकित बाकी सभी प्रविष्टियों पर भारी माना गया। स्वाभाविक ही पहले ही काफी मशहूर हो चुके गीत ‘नाटू-नाटू’ को सबसे अच्छी मौलिक प्रस्तुति का पुरस्कार दिया गया। इस बार भारत को दूसरी बड़ी कामयाबी के तहत ‘द एलिफेंट विस्पर्स’ को सबसे अच्छे लघु वृत्तचित्र का तमगा मिला। हालांकि इसी श्रेणी में नामांकित ‘आल दैट ब्रीद्स’ को अपेक्षित उपलब्धि नहीं मिल सकी।
दरअसल, ‘आरआरआर’ फिल्म के गीत ‘नाटू-नाटू’ को मिली कामयाबी के पीछे छिपी अहमियत का अंदाजा इसे देखते-सुनते हुए हो जाता है। नृत्य निर्देशन और गीत के शब्दों का संयोजन ऐसा प्रभाव पैदा करता है, जिसे देखते हुए आम दर्शक भी मंत्रमुग्ध हो जाता है। इस बार खुश होने वाली दूसरी वजह ‘द एलिफेंट विस्पर्स’ का चुना जाना है, जिसे बेहतरीन लघु वृत्तचित्र की श्रेणी में दाखिल तमाम नामांकित फिल्मों से अच्छा माना गया। खासतौर पर ‘स्ट्रेंजर ऐट द गेट’ और ‘हाउ डू यू मेजर अ ईयर’ जैसी प्रविष्टियों के बजाय अगर इसे सर्वश्रेष्ठ माना गया तो इसके आधार हैं।
‘द एलिफेंट विस्पर्स’ तमिलनाडु के मुदुमलाई बाघ अभयारण्य में हाथी की देखभाल करने वाले एक भारतीय दंपति बोम्मन और बेल्ली के जीवन पर आधारित है, जिसमें कट्टूनायकन समुदाय की जीवन शैली से जुड़े अलग-अलग पहलुओं को बेहतरीन तरीके से फिल्माया गया है। जाहिर है, इन दोनों कृतियों के असर को आस्कर के लिए पात्र मानने वाले चयनकर्ताओं ने भी महसूस किया हो और उसे इन श्रेणियों में दाखिल अन्य प्रविष्टियों में सबसे बेहतर माना होगा।
सच यह है कि आस्कर 2023 में भारत ने बेहतरीन सिनेमा के मामले में अपने स्तर पर एक अहम इतिहास दर्ज किया है। फिर भी यह अपने आप में एक सवाल है कि हर साल भारत में संख्या के लिहाज से करीब डेढ़ हजार फिल्में बनने के बावजूद उनमें से गिनती की कुछ फिल्मों को ही स्थायी महत्त्व की और वैश्विक स्तर पर प्रशंसा हासिल कर पाने वाली कृतियों के रूप में दर्ज किया जाता है। इससे पहले भारतीय संदर्भों के साथ बनी ‘स्लमडाग मिलियनेयर’, ‘गांधी’ और ‘लाइफ आफ पाइ’ जैसी फिल्मों को आस्कर में अच्छी उपलब्धियां मिलीं थीं।
खासतौर पर ‘स्लमडाग मिलियनेयर’ में ‘जय हो’ गाने के लिए एआर रहमान को पुरस्कार मिला था, लेकिन यह भी तथ्य है कि इन फिल्मों को भारतीय निर्देशकों ने नहीं बनाया था। हो सकता है कि आस्कर में भारत के हिस्से कम उपलब्धियां आई हों, लेकिन दुनिया भर में इन पुरस्कारों को जिस स्तर का माना जाता है, उसमें कुछ हासिल करना बहुत बड़ी चुनौती होती है। अब इस बार की कामयाबी के बाद उम्मीद की जानी चाहिए वैश्विक स्तर पर टक्कर देने वाली कुछ बेहतरीन फिल्में भी बनेंगी।