गर्मी का मौसम आते ही आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। हालांकि अब हर मौसम में ऐसी घटनाएं देखी जाती हैं। खासकर बहुमंजिला इमारतों में आग लगने से लोगों को बचाना कठिन हो जाता है। आजकल जिस तरह भवन निर्माण में वातानुकूलन का चलन बढ़ने की वजह से कई ऐसी सामग्री का उपयोग बढ़ा है, जो अतिज्वलनशील मानी जाती हैं, उसमें आग लगने की घटनाएं अधिक खतरनाक साबित हो रही हैं।
सिकंदराबाद की आठ मंजिला एक इमारत में लगी आग में छह की गई जान
हैदराबाद के सिकंदराबाद की एक आठ मंजिला इमारत में लगी आग के देखते-देखते सभी मंजिलों तक फैल जाने और उसमें छह लोगों के जान गंवा बैठने की घटना इसकी ताजा मिसाल है।हालांकि दमकल की गाड़ियां और बचाव दल घटनास्थल पर पहुंच गया था, मगर समय रहते उसमें से सबको निकालना संभव नहीं हो पाया। ज्यादातर मामलों में देखा जाता है कि बिजली उपकरणों में गड़बड़ी आने या तारों के आपस में जुड़ कर जल उठने की वजह से आग की घटनाएं अधिक होती हैं। पिछले कुछ सालों में ऐसी बहुमंजिला इमारतों में लगी आग और बड़ी संख्या में मारे गए लोगों को देखते हुए बार-बार कड़ाई से नियम-कायदों के पालन के संकल्प दोहराए गए, मगर हर बार वे संकल्प खोखले साबित हुए। अगर सचमुच अग्निशमन विभाग सतर्क और ऐसी घटनाएं रोकने को लेकर संजीदा होता, तो कोई कारण समझ में नहीं आता कि ऐसी घटनाएं फिर हो पातीं।
ज्यादातर भवनों में अग्निशमन, निकास, बिजली उपकरणों की गुणवत्ता खराब
यह छिपा तथ्य नहीं है कि ज्यादातर भवनों में अग्निशमन, निकास, बिजली उपकरणों आदि की स्थिति और गुणवत्ता आदि पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। विचित्र है कि भवन निर्माता खुद कुछ पैसे बचाने के इरादे से इन नियमों को ताक पर रखते और फिर संबंधित महकमों के कर्मचारियों-अधिकारियों से साठ-गांठ कर उन भवनों में कारोबार चलाते रहते हैं। दिल्ली के करोलबाग इलाके के एक होटल में लगी आग की घटना ने पूरे प्रशासन की कलई खोल कर रख दी थी, जिसमें कई विदेशी सैलानियों ने दम घुटने से जान गंवा दी थी।
आग लगने की ज्यादातर घटनाओं में जांच से एक तथ्य जरूर हाथ लगता है कि अग्निशमन विभाग ने उस भवन की नियमित जांच नहीं की होती है। उनमें न तो आग बुझाने के उपकरण सही तरीके से काम करते पाए जाते हैं और न ऐसी स्थिति में सहज ढंग से निकास की कोई माकूल व्यवस्था होती है। ज्यादातर बहुमंजिला इमारतों में चूंकि लिफ्ट का प्रयोग होता है, इसलिए उनमें प्राय: सीढ़ियों की चौड़ाई कम रखी जाती है। इन जरूरी पहलुओं पर भी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जाता, तो इसे विडंबना के सिवा क्या कहा जा सकता है।
बहुमंजिला और व्यावसायिक भवनों में सबसे जरूरी पहलू होता है, आग की स्थिति में लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने का बंदोबस्त। फिर उनमें बिजली के उपकरणों की गुणवत्ता का ध्यान रखा जाना जरूरी होता है। मगर पैसे की बचत करने की नीयत से या फिर कर्मचारियों की लापरवाही की वजह से प्राय: खराब गुणवत्ता की तारें, उपकरण आदि लगा दिए जाते हैं। उनकी मरम्मत में प्राय: लापरवाही बरती जाती है, जिसका नतीजा होता है उनमें आग लगना।
सिकंदराबाद की जिस इमारत में आग लगी, उसमें भी यही कारण होंगे। मगर अफसोस कि इन उजागर तथ्यों के बावजूद न तो भवनों में सुरक्षा संबंधी मानकों की जांच करने वाले कर्मचारी-अधिकारी इस मामले में गंभीरता दिखाते हैं और न खुद भवनों के मालिक संजीदा देखे जाते हैं। आखिर लोगों की जान की कीमत पर ऐसी लापरवाहियां कब तक बर्दाश्त की जाती रहेंगी।