इन दिनों एक बार फिर खालिस्तान के समर्थन में उग्र माहौल बनाने की कोशिशें तेज हो गई हैं। चूंकि इस आंदोलन की अगुआई करने और शह देने वाले कनाडा आदि देशों में हैं, इसलिए वहां कुछ अधिक तेजी देखी जा रही है। पिछले दिनों ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग के बाहर लगा तिरंगा उतार कर खालिस्तान समर्थकों ने वहां अपना निशान फहरा दिया।
उसके बाद ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में एक आयोजन को इसलिए रद्द करना पड़ा कि उसमें भारतीय उच्चायुक्त शरीक होने वाले थे और खालिस्तान समर्थक उसका विरोध कर रहे थे। इसी तरह अमेरिका में भारतीय दूतावास के बाहर खालिस्तान समर्थक जमा हो गए थे, हालांकि वहां के सुरक्षा कर्मियों की सतर्कता के चलते वे किसी प्रकार का उपद्रव करने में कामयाब नहीं हो पाए।
खालिस्तान समर्थकों का सबसे अधिक उग्र तेवर कनाडा में दिखाई दे रहा है। ऐसे में भारत सरकार की चिंता स्वाभाविक है। विदेश मंत्रालय ने कनाडा के उच्चायुक्त को तलब कर वहां के भारतीय वाणिज्य दूतावास परिसरों और भारतीय राजनयिकों की कड़ी सुरक्षा सुनिश्चित करने की हिदायत दी है। पहले भी तिरंगा उतारने की घटना के बाद जब भारत सरकार ने दिल्ली में ब्रिटिश उच्चायोग के बाहर की सुरक्षा वापस कर ली थी, तब ब्रिटिश सरकार को अपनी चूक समझ में आई थी।
खालिस्तान को लेकर चल रही अलगाववादी गतिविधियों पर काबू पाना सरकार के लिए इसलिए जटिल है कि इसके नेता कनाडा में हैं और बताया जाता है कि उनके तार पाकिस्तान के अलगाववादी संगठनों से जुड़े हुए हैं। वे वहां से पंजाब में युवाओं को गुमराह कर खालिस्तान के लिए आंदोलन को हवा दे रहे हैं। अमृतपाल सिंह भी उन्हीं के उकसावे पर काम कर रहा था।
उसने गुरुग्रंथ साहब और सिख पंथ की आड़ लेकर बहुत सारे लोगों को अपने पक्ष में भी कर लिया था। जब उसके एक समर्थक को पुलिस ने गिरफ्तार कर अजनाला के थाने में बंद किया तो अमृतपाल बड़ी भीड़ के साथ हथियार के बल पर उसे छुड़ाने में कामयाब हुआ था। फिर उसकी गिरफ्तारी के लिए दबिश दी गई, तो वह पुलिस को चकमा देकर भाग निकला और अभी तक पकड़ा नहीं जा सका है।
हालांकि केंद्रीय गृह मंत्रालय और पंजाब पुलिस अलगाववादी ताकतों को काबू में करने का प्रयास कर रहे हैं। अमृतपाल के प्रमुख साथियों और सहयोगियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इससे काफी हद तक पंजाब में अलगाववाद की धार भोथरी हो चुकी है।
मगर अभी चुनौती यह है कि विदेशी जमीन से जो लोग खालिस्तान की मांग उठाने में कामयाब हो पा रहे हैं, उन पर अंकुश कैसे लगाया जाए। इसके लिए वहां की सरकारों पर दबाव बनाना ही कारगर उपाय हो सकता है और भारत सरकार इस मामले में कामयाब नजर आ रही है। रही बात अमृतपाल जैसे कुछ दिग्भ्रमित युवाओं की, तो उन पर लगातार नजर रख कर ही काबू में किया जा सकता है।
अच्छी बात है कि खालिस्तान के समर्थन में पंजाब के आम लोग नहीं हैं। वे किसी भी रूप में इस आग को फिर से दहकती देखना नहीं चाहते। इसलिए सरकार को इस पर काबू पाने में कोई मुश्किल नहीं है। मगर अभी तक अमृतपाल क्यों पुलिस की पकड़ से बाहर है, यह सवाल स्वाभाविक ही लोगों के मन में बना हुआ है। इससे पुलिस की गंभीरता पर भी सवाल उठ रहे हैं। अमृतपाल के मामले में किसी भी प्रकार की शिथिलता अलगाववाद की आग को रोकने में चुनौतियां ही बढ़ाएगी।