आमतौर पर हर व्यक्ति अपने समाज और उसकी परंपराओं को इसलिए महान बताता है कि उसका मूल संदेश प्रेम है। लेकिन इसी समाज में ऐसी खबरें आए दिन आती रहती हैं, जिसमें अगर कोई युवक या युवती प्रेम संबंध में होते हैं तो वे खुद अपने परिवारों तक के लिए न केवल नफरत का पात्र बन जाते हैं, बल्कि कई बार उनकी हत्या भी कर दी जाती है।
नांदेड़ की लड़की थोड़े दिनों में डाक्टर बनने वाली थी। लेकिन उसके माता-पिता, चचेरे भाइयों और मामा ने बेहद क्रूरता से करंट लगा कर उसकी हत्या कर दी और शव को जला कर राख नाले में बहा दी। कारण बस यह था कि लड़की एक युवक से प्रेम करती थी। इस प्रेम को उसके अपने ही परिवार वालों ने अपने सम्मान पर चोट माना और इस कदर क्रूर हो गए।
यह कैसी परंपरा है, जो युवक-युवती के बीच प्रेम के बदले उनके अपने परिवार से लेकर समाज तक के भीतर नफरत पैदा कर देती है। इस तरह का प्रेम परिस्थितियों के प्रवाह में उपजी सहज मानवीय भावनाएं होती हैं और प्राकृतिक होने के नाते उसका सम्मान किया जाना चाहिए। मगर इसके उलट इस तरह के पिछड़े और अमानवीय सामाजिक मूल्य आज भी पाए जाते हैं, जिनमें कोई लड़की किसी लड़के से प्रेम करती है तो उसका परिवार और समाज उसे अपने सम्मान के खिलाफ मान लेता है।
प्रेम किसी भी तरह के सम्मान के विरुद्ध नहीं होता, बल्कि ऐसा मानने वाले लोगों की चेतना पारंपरिक सामंती और जड़ मूल्यों से संचालित होती रहती है। यह विकृति भारत के हर हिस्से में पाई जाती है, जिसमें कितनी ही लड़कियों और कई बार उनके प्रेमी की भी हत्या कर दी जाती है।
दरअसल, इस तरह की धारणाओं के मूल में स्त्रियों के जीवन और अस्तित्व पर पितृसत्ता का कब्जा मुख्य वजह होती है, जो सामाजिक मूल्यों के रूप में लोगों के मानस पर थोपी जाती हैं। ऐसे पितृसत्तात्मक और सामंती मूल्यों के बीच पला-बढ़ा कोई भी व्यक्ति अपनी बेटियों को यह अधिकार नहीं देना चाहता कि वे अपने जीवन साथी का चुनाव खुद कर सकें।
अगर किन्हीं स्थितियों में ऐसा होता है तो परिवार इसे अपने झूठे सम्मान पर चोट मानता है और कई बार इसकी प्रतिक्रिया में बेहद संवेदनहीन और क्रूर हो जाता है। जबकि न केवल व्यक्ति के रूप में कोई बालिग और परिपक्व समझ वाली लड़की अपने जीवन के बारे में फैसला लेने की सलाहियत रख सकती है, बल्कि देश के संविधान से भी उन्हें इसका अधिकार मिला हुआ है।
अगर उसके परिवार और समाज को कुछ ठीक नहीं लगता, तो वह सिर्फ उचित सलाह दे सकता है। मगर विडंबना है कि लड़की को एक व्यक्ति मानने के बजाय उसे वस्तु या संपत्ति मानने की प्रवृत्ति ने समाज में न केवल सामंती दुराग्रह पैदा किया है, बल्कि इसके शिकार लोग बेटी या फिर उसके साथी की हत्या जैसे बर्बर अपराध करने तक चले जाते हैं। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि झूठी इज्जत के नाम पर हत्या कर देने की मानसिकता को किसी भी पैमाने से सभ्य और आधुनिक चेतना वाले समाज की पहचान नहीं माना जा सकता।