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अनावश्यक आयात पर सरकार के अंकुश से मजबूती की ओर अर्थव्यवस्था, कम हो रहा है देश का व्यापार घाटा

आज के दौर में कोई भी देश पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं हो सकता, उसे दूसरे देशों से कुछ न कुछ चीजें आयात करनी ही पड़ती हैं। खासकर विकासशील देशों को कुछ अधिक ही आयात पर निर्भर रहना पड़ता है।

India fifth Largest economy
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर।( फोटो-डेक्कन हेराल्ड )।

अर्थव्यवस्था के लिए यह अच्छा संकेत है कि देश का व्यापार घाटा काफी कम हो गया है। व्यापार घाटा उस अंतर को कहते हैं जो आयात और निर्यात के बीच होता है। जब कोई देश आयात अधिक और निर्यात कम करता है, तो उसका व्यापार घाटा अधिक होता है। अच्छी अर्थव्यवस्था के लिए आयात और निर्यात में संतुलन जरूरी माना जाता है।

पिछले कुछ समय में व्यापार घाटा काफी बढ़ गया था

इस दृष्टि से पिछले कुछ वर्षों में भारत का व्यापार घाटा काफी बढ़ गया था। इसलिए इसे पाटने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा था। अब व्यापार घाटा घट कर 17.43 अरब डालर तक पहुंच गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगले कुछ महीनों में इस व्यापार घाटे में कमी या बढ़ोतरी आयात संबंधी जरूरतों पर निर्भर करेगी। दरअसल, फिलहाल व्यापार घाटे में आई कमी की बड़ी वजह आयात में की गई कमी है।

हालांकि अच्छी स्थिति यह मानी जाती है कि देश का निर्यात बढ़ाया जाए। मगर आयात के साथ-साथ निर्यात में भी कमी आई है। बल्कि निर्यात में कमी की दर आयात से अधिक है। आयात में 8.2 फीसद की कमी आई है, तो निर्यात में 8.8 फीसद की। इस लिहाज से इसे बहुत सुखद स्थिति नहीं माना जा सकता।

दरअसल, सरकार ने व्यापार घाटा पाटने के लिए रणनीति बनाई कि अनावश्यक आयात पर अंकुश लगाया जाए। जिन वस्तुओं का अपने देश में पर्याप्त उत्पादन होता है, उन्हें बाहर से मंगाने पर रोक लगाई जाए। यही आत्मनिर्भर भारत का उद्घोष भी है। इस लिहाज से आयात किए जाने वाले तीस प्रमुख उत्पादों में से सोलह के आयात में कमी आई है। उनमें सोना, उर्वरक, कच्चा तेल, वनस्पति तेल, रसायन, मोती, मशीनरी तथा इलेक्ट्रानिक वस्तुओं के आयात में कमी आई है।

मगर कोयला, प्लास्टिक की वस्तुओं, लोहा, इस्पात तथा परिवहन उपकरणों का आयात बढ़ा है। मगर इनमें से कितनी वस्तुओं के मामले में लंबे समय तक आत्मनिर्भर रहा जा सकता है, देखने की बात है। निर्यात घटने के पीछे कारण बताया जा रहा है कि चूंकि दुनिया भर में वस्तुओं की मांग घटी है, इसलिए स्वाभाविक रूप से निर्यात भी घटा है। मगर हमारे यहां निर्यात के संतोषजनक स्तर पर न पहुंच पाने को लेकर चिंता वैश्विक अर्थव्यवस्था के लड़खड़ाने से पहले से की जा रही है। फिर जिन स्थितियों का हवाला दिया जा रहा है, उनके जल्दी सुधरने की कोई सूरत भी नजर नहीं आती।

इसलिए व्यापार घाटे के रुख में कितना स्थायित्व रह पाएगा, दावा नहीं किया जा सकता। आज के दौर में कोई भी देश पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं हो सकता, उसे दूसरे देशों से कुछ न कुछ चीजें आयात करनी ही पड़ती हैं। खासकर विकासशील देशों को कुछ अधिक ही आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे में रसायनों, कच्चे तेल, वनस्पति तेल, इलेक्ट्रानिक उपकरणों आदि के मामले में भारत लंबे समय तक आयात पर अंकुश नहीं लगा सकता। दवा निर्माण और इलेक्ट्रानिक उपकरणों आदि के मामले में वह दूसरे देशों पर निर्भर है।

इसके बरक्स वह जिन वस्तुओं का उत्पादन अधिक और गुणवत्तापूर्ण करता है, उनका बाजार उसे तलाशना होगा। कोयला, लोहा और इस्पात के मामले में वह उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे सकता है, मगर इनका आयात बढ़ रहा है। निर्यात बढ़ाने के लिए दुनिया में जिस तरह नए बाजार तलाशने और अपनी जगह बढ़ाने के लिए रणनीति बनाने की जरूरत होती है, वह शायद नहीं हो पा रहा, जिसकी वजह से निर्यात नहीं बढ़ पा रहा। अगर निर्यात बढ़ेगा, तभी व्यापार घाटे में स्थायी कमी का वातावरण बनेगा।

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First published on: 17-03-2023 at 06:15 IST
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