इसमें चालीस देशों के शेरपा हिस्सा ले रहे हैं। पूरे साल देश के पचपन स्थानों पर ऐसी कुल दो सौ बैठकें होनी तय हैं। पहली बैठक में साल भर होने वाली बैठकों और फिर शिखर सम्मेलन के मुद्दे स्पष्ट हो चुके हैं।
सभी सदस्य देशों ने आजीविका के संकट से उबरने के लिए समावेशी व्यवस्था की ओर आगे बढ़ने का संकल्प लिया है। इन बैठकों में मुख्य रूप से वैश्विक विकास, महिला विकास, व्यापार, भ्रष्टाचार, आर्थिक-वित्तीय, रोजगार, संस्कृति, चिकित्सा, शिक्षा आदि विषयों को शामिल किया गया है। इन्हीं विषयों पर लिए गए निर्णयों के आधार पर शिखर सम्मेलन के दौरान सम्मिलित रूप से अंतिम फैसले पर पहुंचा जा सकेगा।
पहली बैठक में स्वीकार किया गया कि कोरोना महामारी के बाद दुनिया गंभीर संकट के दौर से गुजर रही है। इस दौरान वैश्विक ऋण में वृद्धि हुई है, विकास दर कमजोर हुई, मुद्रास्फीति बढ़ी और रोजगार में कमी आई है। इन स्थितियों से पार पाने के लिए नए संकल्प के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है। इस कठिन दौर में इस संकल्प से स्वाभाविक ही बेहतरी की उम्मीद जगी है।
जी-20 की सदारत भारत को मिलना इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि आर्थिक विकास को लेकर तमाम देश इसकी तरफ नजरें उठाए देख रहे हैं। दुनिया के कई बड़े उभरते बाजार जी-20 संगठन में हैं और यह समूह दुनिया की दो तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। दुनिया की पचासी फीसद जीडीपी, अठहत्तर फीसद वैश्विक व्यापार और नब्बे फीसद पेटेंट जी-20 देशों के पास है।
निस्संदेह इतने क्षमतावान देश अगर मिल कर काम करें तो आर्थिक संकट से उबरना कठिन काम नहीं माना जा सकता। मगर रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन की एकाधिकारवादी नीतियों के चलते व्यापार-वाणिज्य संबंधी प्रयासों में बाधा उत्पन्न हुई है। सबसे चिंता की बात है कि विश्व की आपूर्ति शृंखला बाधित हुई है।
चूंकि रूस से भारत की गहरी मित्रता है और वह भारत की सलाह पर अमल भी करता रहा है, इसलिए तमाम देशों को उम्मीद है कि भारत अगर गंभीरता से प्रयास करे, तो यूक्रेन के साथ उसकी तनातनी पर विराम लगाना आसान होगा। भारत खुद भी ऐसा प्रयास करता रहा है। जी-20 की अध्यक्षता मिलने के बाद भारत की यह जिम्मेदारी और बढ़ गई है कि वह आर्थिक विकास की राह में आने वाली मुश्किलों को दूर करने का प्रयास करे।
पहली बैठक में भारत के शेरपा ने फिर से दोहराया कि आपदा को अवसर में बदलने की दिशा में सोचने से इस संकट से जल्दी उबरा जा सकता है। जी-20 देशों के साथ परस्पर व्यापार-वाणिज्य के रिश्ते मजबूत होंगे, तो स्वाभाविक ही भारत की आर्थिक विकास दर पर भी उसका सकारात्मक असर पड़ेगा। अभी भारत खुद भी महंगाई, बेरोजगारी, स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा, लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
इस दिशा में बेहतर नतीजे तभी आ सकते हैं, जब प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और निर्यात को बढ़ावा मिले। जी-20 देशों के साथ तालमेल करके इस दिशा में बेहतर नतीजे हासिल करना बड़ी चुनौती नहीं कही जा सकती। जी-20 के सदस्य देशों में खपत और उत्पादन की सबसे अधिक क्षमता भारत के पास है, इसलिए इस जिम्मेदारी को वह सदस्य देशों के साथ मिल कर निस्संदेह एक बेहतर अवसर के रूप में बदल सकता है।