खासतौर पर तब जब ऐसे सवाल लगातार उठ रहे हैं कि किसी भी व्यक्ति से संबंधित डेटा या आंकड़े बेहद महत्त्वपूर्ण होते हैं, इसलिए उन्हें चोरी होने से बचाना सरकार की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए।
गौरतलब है कि करीब एक सप्ताह पहले एम्स के सर्वर में सेंधमारी की सूचना मिली थी। तब से तकनीकी विशेषज्ञों की लगातार कोशिशों के बावजूद उसे पहले की तरह ठीक करने में कामयाबी नहीं मिल सकी। आशंका जताई जा रही है कि सर्वर में मौजूद करीब तीन से चार करोड़ लोगों के तमाम आंकड़े, पूर्व प्रधानमंत्रियों, मंत्रियों, नौकरशाहों जैसे खास और नामचीन हस्तियों और उनकी सेहत के बारे में दर्ज ब्योरों या डेटा को चुराया गया है। सवाल यह है कि क्या उनका बेजा इस्तेमाल भी हो सकता है? फिलहाल संबंधित महकमों की ओर से यही कहा जा रहा है कि इसे ठीक करने में कुछ दिन और लग सकते हैं, लेकिन इस घटना के साथ ही इससे जुड़े खतरों को लेकर एक बार फिर बहस शुरू हो गई है।
इस बीच यह खबर भी आई कि सेंधमारी करने वालों ने दो सौ करोड़ रुपए फिरौती की मांग की है। मगर मंगलवार को दिल्ली पुलिस इस बात का खंडन किया। इसके बावजूद यह सच है कि बीते एक हफ्ते से एम्स का सर्वर अगर किसी सामान्य तकनीकी खराबी की वजह से ठप नहीं है तो किसी साइबर अपराधी के नियंत्रण में है और इस घटना में यही बात अपने आप में सबसे ज्यादा गंभीर है।
यह केवल कामकाज में असुविधा का मसला नहीं है। एम्स के सभी तरह के कामकाज के लिए तो समांतर वैकल्पिक व्यवस्था खड़ी की जा सकती है। तात्कालिक तौर पर सामान्य या पुराने तरीके से भी काम चलाया जा सकता है। लेकिन मरीजों से जुड़े तमाम ब्योरों से लेकर सभी तरह की व्यवस्थाओं का जिस तरह डिजिटलीकरण हो गया है, उनका चोरी हो जाना शायद दूरगामी स्तर पर घातक स्थितियां पैदा कर सकता है। यही वजह है कि एम्स के सर्वर में सेंध लगाने के बाद सबसे गहरे सवाल साइबर सुरक्षा को लेकर उठ रहे हैं।
यों इससे पहले भी अलग-अलग मौकों पर किसी संस्थान या कंपनी की वेबसाइट हैक होने की खबरें आती रही हैं और उसी के मद्देनजर इसके खतरों की भी पहचान की गई है। लेकिन हालत यह है कि देश के नागरिकों के बारे में सबसे संवेदनशील जानकारी जुटा कर उन्हें डिजिटल रूप में रखने की सुविधाएं तो बताई जाती हैं, मगर उनके पूरी तरह सुरक्षित होने को लेकर अब तक कोई आश्वासन नहीं है।
अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं कि हजारों लोगों का डेटा चुरा लिया या बेच दिया गया। सवाल है कि इस तरह डेटा खरीदने या फिर चुराने वाले लोग या गिरोह क्या बेवजह ऐसा करते होंगे? डिजिटल निर्भरता के दौर में डेटा हासिल करके मनमाने तरीके से लोगों पर नियंत्रण की बढ़ती प्रवृत्ति के दौर में इसकी क्या गारंटी है कि किसी व्यक्ति या समूह से संबंधित आंकड़ों या ब्योरों को हथियार बना कर किसी बड़े नुकसान को अंजाम नहीं दिया जाएगा? आम नागरिकों से संबंधित निजी जानकारियों के डिजिटलीकरण या डेटा के सुरक्षित होने को लेकर सरकार अक्सर दावे करती रहती है, लेकिन हकीकत किसी से छिपी नहीं है।