देश भर में आबादी बढ़ने के साथ खाने-पीने की चीजों की मांग में बढ़ोतरी स्वाभाविक है। लेकिन यह समस्या तब बढ़ने लगती है जब मांग के अनुपात में जरूरत की किसी चीज के उत्पादन में कमी होने लगे या उसकी आपूर्ति करने में मुश्किल पेश आने लगे। ज्यादातर लोगों के लिए रोजमर्रा के खाने-पीने की चीजों में दूध जरूरी हिस्सा है। निजी विक्रेताओं से लेकर संगठित रूप से सहकारी डेयरियों तक के माध्यम से होने वाली दूध की बिक्री के पीछे एक समूचा तंत्र काम करता है। लेकिन यह पक्ष भी है कि जैसे-जैसे दूध की मांग बढ़ती गई है, उसकी आपूर्ति के लिए नए स्रोतों की तलाश होने लगी है।
इसी क्रम में ‘अमूल’ ने भी अलग-अलग राज्यों में अपनी खरीद-बिक्री के तंत्र का विस्तार करना शुरू किया है। पर इसके साथ ही देश भर में दूध के बाजार में खड़े होते नए समीकरणों के समांतर स्थानीय जरूरतों को पूरा करने का सवाल अब एक तरह के विवाद की शक्ल लेता जा रहा है। पहले दूध की खरीद-बिक्री में खड़ी होने वाली नई परिस्थितियां कर्नाटक चुनाव में एक मुद्दा बनीं और अब तमिलनाडु में भी इस मसले पर खींचतान शुरू हो गई है।
गौरतलब है कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्रीय गृहमंत्री को पत्र लिख कर मांग की है कि अमूल को राज्य में दूध खरीदने से रोका जाए। इसके पीछे उनकी दलील है कि तमिलनाडु सहकारी दुग्ध कंपनी ‘आविन’ का क्षेत्र है और यहां अमूल की ओर से बड़े पैमाने पर दूध की खरीद करना सही नहीं है; अगर अमूल को रोका नहीं गया तो इससे राज्य की सहकारी संस्था आविन को नुकसान होगा, जो यहां 1981 से काम कर रही है।
हालांकि अमूल अब भी अपने अलग-अलग उत्पाद तमिलनाडु में कई दुकानों के जरिए बेच रहा था, लेकिन उसकी एक सहायक संस्था ने कृष्णगिरी जिले में एक प्रसंस्करण संयंत्र लगाया है और इसके लिए बड़े पैमाने पर कई इलाकों से दूध की खरीद की जाने की खबरें हैं। इस मसले पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री का कहना है कि भारत में यह नियम रहा है कि एक-दूसरे के क्षेत्र में दखल दिए बिना सहकारी समितियां काम करें।
अगर ऐसा नहीं होता है तो यह ‘आपरेशन वाइट फ्लड’ की भावना के खिलाफ है, जिसकी शुरुआत ही दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए की गई थी।
इसमें कोई संदेह नहीं कि देश भर में क्षेत्रीय सहकारी संस्थाएं सभी राज्यों में डेयरी विकास के लिए महत्त्वपूर्ण रही हैं। लेकिन अमूल के विस्तार को इस रूप में देखा जा रहा है कि इससे इस क्षेत्र में गैरजरूरी प्रतियोगिता शुरू हो जाएगी और इसके असर से दूध की कमी जैसे हालात भी पैदा हो सकते हैं।
कुछ समय पहले कर्नाटक में भी विवाद की स्थिति शुरू हो गई थी, जब अमूल ने वहां अपने प्रवेश का संकेत दिया था। वहां भी स्थानीय स्तर पर दुग्ध उत्पादन करने वाली कंपनी ‘नंदिनी’ की स्थिति पर इसका असर पड़ने की आशंका के मद्देनजर खींचतान चली थी। अमूल के विस्तार के विरोध के बीच यह तर्क भी दिया जा रहा है कि स्थानीय दुग्ध उत्पादन समितियों की वजह से लोगों को उचित और नियंत्रित कीमत पर दूध मिल रहा है। यह छिपा नहीं है कि दूध की बढ़ती कीमतें अब बहुत सारे लोगों की पहुंच से दूर होने लगी हैं। इस लिहाज से देखें तो दूध को लेकर बढ़ते विवाद के बीच यह देखने की बात होगी कि इसका असर आने वाले दिनों में दूध की कीमतों पर क्या पड़ेगा।