लेकिन चीन के मामले में यही बात पक्के तौर पर नहीं कही जा सकती कि वह सिर्फ खुद को मजबूत करने के लिए अपने सीमाक्षेत्र में नई नीतियों पर काम कर रहा है। समस्या यह है कि वह अपने मकसद के लिए अघोषित रूप से विस्तारवादी रणनीति पर जिस तेजी से काम कर रहा है, वह दुनिया भर में, खासकर भारत के लिए चिंता का कारण बन रहा है।
आधुनिक विश्व में जहां देशों की सीमा से लेकर आर्थिक या राजनीतिक स्तर पर खड़े होने वाले किसी भी विवाद के संदर्भ में बातचीत या संवाद के जरिए समाधान निकालने पर जोर दिया जा रहा है, वहीं चीन खुद से संबंधित किसी मसले पर अपनी सुविधा के मुताबिक कदम उठाता है। भले इसके लिए उसे किसी पड़ोसी देश की सीमाओं का नाहक अतिक्रमण तक क्यों न करना पड़े। इस मामले में चीन के साथ भारत के कड़वे अनुभव किसी से छिपे नहीं हैं।
दरअसल, किसी विचित्र अहं का शिकार होकर चीन को पड़ोसी देशों की संप्रभुता का भी खयाल रखने की जरूरत नहीं लगती और वह उसे घेरने के लिए अलग-अलग स्तर पर कुचक्र रचता रहता है। भारत को मानो उसने केंद्रीय निशाने पर रख लिया है और इसे नाहक दखल या परेशान करने का कोई मौका नहीं चूकना चाहता। आए दिन उसकी ऐसी हरकतें सामने आती रही हैं।
हाल ही में दिल्ली में पुलिस महानिदेशकों और महानिरीक्षकों के अखिल भारतीय सम्मेलन के दौरान प्रस्तुत एक दस्तावेज में यह खुलासा हुआ कि चीन दक्षिण-पूर्व और दक्षिण एशिया में विकास कार्यों के लिए ऋण के नाम पर भारी मात्रा में धन मुहैया करा कर हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के प्रभाव को कम या सीमित करना चाहता है। किसी देश को उसकी जरूरत के मुताबिक मदद देना एक सामान्य बात हो सकती है। लेकिन अगर चीन आर्थिक सहायता के दम पर भारत के पड़ोसी देशों को उसके खिलाफ भड़काने के एजंडे पर काम कर रहा है, तो यह हर तरह से गलत और चिंताजनक है। हालांकि चीन की फितरत को देखते हुए उसकी इस तरह की हरकतें हैरानी करने वाली नहीं हैं।
यह तथ्य है कि पिछले दो-ढाई दशक के दौरान आर्थिक और सैन्य मामलों में चीन ने अप्रत्याशित मजबूती हासिल की है। मगर अपनी इस ताकत का इस्तेमाल वह अपनी विस्तारवाद की भूख को मिटाने में करना चाहता है। यही वजह है कि पिछले कुछ सालों से वह भारत के पड़ोसी देशों में अपनी गतिविधियां पहले के मुकाबले तेजी से बढ़ा रहा है। इसी क्रम में चीन ‘बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव’, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, भारत के पड़ोसी देशों में आसान शर्तों पर ऋण, सीमा पर अवांछित गतिविधियों के माध्यम से अपने प्रभाव को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमा और श्रीलंका में अगर चीन खुले हाथों से ऋण या भारी मात्रा में धन का निवेश कर रहा रहा है, तो इसका मकसद समझना मुश्किल नहीं है। दरअसल, इस रास्ते वह भारत के प्रभाव को कम करके एशिया में मनमानी करने और अनैतिक लक्ष्य प्राप्त करने में हर अड़चन को हटाना चाहता है। अच्छा यह है कि चीन की मंशा पर अब भारत की नजर है और इसी के मद्देनजर अपने सीमा क्षेत्र से लेकर बाकी सभी स्तरों पर कूटनीतिक पहलकदमियों के तहत भारत भी अपना मोर्चा मजबूत कर रहा है।