मगर ऐसी कारगुजारियों का खमियाजा आखिरकार आम जनता को उठाना पड़ता है। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री की उपसचिव सौम्या चौरसिया की गिरफ्तारी से एक बार फिर यह बहस छिड़ गई है कि नौकरशाही में काम करते हुए कोई अधिकारी कैसे सत्ता का केंद्र बन जाता है और अपने कामकाज से लेकर अन्य मामलों में उसे मनमानी करने में कोई हिचक नहीं होती।
ऐसा शायद इसलिए होता है कि आमतौर पर ऐसे अधिकारियों को सत्ता का प्रत्यक्ष या परोक्ष संरक्षण प्राप्त होता है, जिसके चलते वे अपनी मंशा को बिना किसी हिचक के पूरी कर पाते हैं। विडंबना यह है कि जिन नेताओं को जनता इस उम्मीद से सत्ता में भेजती है कि वे अपने पद का उपयोग आम लोगों के हित और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं पर काबू पाने में करेंगे, वही भ्रष्टाचारियों का बचाव करने की कोशिश करते दिखने लगते हैं।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ सरकार में उप सचिव सौम्या चौरसिया को प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने कथित अवैध वसूली और जमीन से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया है। सवाल है कि इतने उच्च स्तर की किसी अधिकारी को अवैध वसूली या भ्रष्टाचार के अन्य मामलों में मनमानी करने की छूट कैसे मिल जाती है। ऐसी सुविधा उसे कौन मुहैया कराता है!
हालांकि इस मामले में जांच प्रक्रिया पूरी और आरोप साबित होने के बाद ही उनकी स्थिति स्पष्ट हो सकेगी, लेकिन फिलहाल उपसचिव की गिरफ्तारी के जो आधार बताए गए हैं, वे निश्चित रूप से भारत में पहले से मौजूद भ्रष्टाचार की व्यापक समस्या की तहों में हर जगह मौजूद रहे हैं। कहा जा सकता है कि जब तक जांच एजंसियां सक्रिय होकर जांच नहीं करतीं, तब तक ऐसे अपराध बेरोकटोक चलते रहते हैं। खासकर नौकरशाही में कुछ लोग राजनीतिक शह की वजह से बेरोकटोक भ्रष्टाचार से कमाई करते रहते हैं।
छत्तीसगढ़ में ईडी की कानूनी कार्रवाई की जद में आई सौम्या चौरसिया के पद-कद का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्हें राज्य में न केवल सबसे ताकतवर अफसर माना जाता था, बल्कि आम धारणा थी कि वे मुख्यमंत्री की बहुत करीबी हैं। अफसोस की बात यह है कि कई मसलों पर सख्त मुख्यमंत्री माने जाने वाले भूपेश बघेल को वक्त पर भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई सख्त कदम उठाना जरूरी नहीं लगा।
हालांकि ऐसा नहीं है कि नौकरशाही में ऊंचे पद पर मौजूद किसी व्यक्ति पर भ्रष्टाचार के आरोपों का यह कोई पहला मामला हो। कुछ समय पहले झारखंड में भी खान सचिव पूजा सिंघल को राज्य के खूंटी जिले में उनके उपायुक्त रहते राष्ट्रीय रोजगार गारंटी से संबंधित काम यानी मनरेगा के तहत किए गए करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार के मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया था।
भ्रष्टाचार के ऐसे मामले कड़ियों में एक-दूसरे से जुड़े होते हैं, जिसमें भ्रष्ट नौकरशाहों से लेकर नेताओं, जनप्रतिनिधियों और मंत्रियों तक के तार जुड़े हो सकते हैं। मगर भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंकने का दावा करने वाले अमूमन सभी राजनीतिक दल भी सत्ता में पहुंचने के बाद या तो उसमें शामिल हो जाते हैं या फिर उसे संरक्षण देने लगते हैं। इसी वजह से भारतीय राजनीति में सबसे मुख्य समस्या के रूप में चिह्नित किए जाने के बावजूद भ्रष्टाचार दीमक की तरह सब कुछ खाता रहता है।