scorecardresearch

संपादकीयः शिक्षक का काम

देश भर में शिक्षा की सूरत पर होने वाली बहसों में यह सवाल सबसे प्रमुख रूप से उठता है कि चूंकि शिक्षकों को कई बार शिक्षकेतर कार्यों में उलझा दिया जाता है, इसलिए कक्षाओं की पढ़ाई-लिखाई प्रभावित होती है।

संपादकीयः शिक्षक का काम
शिक्षकों को जब ऐसे कामों में उलझाया जाता है तो इसका शिक्षण पर नकारात्मक असर पड़ता है। यह बेवजह नहीं है कि स्कूली शिक्षा पर होने वाले अध्ययनों में पिछले कई सालों से यही स्थिति बनी हुई है कि बच्चों के सीखने का स्तर बेहद चिंताजनक है।

देश भर में शिक्षा की सूरत पर होने वाली बहसों में यह सवाल सबसे प्रमुख रूप से उठता है कि चूंकि शिक्षकों को कई बार शिक्षकेतर कार्यों में उलझा दिया जाता है, इसलिए कक्षाओं की पढ़ाई-लिखाई प्रभावित होती है। लेकिन इसके उलट कुछ ऐसे मौके भी होते हैं जब शिक्षकों को शिक्षण से जुड़े कुछ कार्य-दायित्व सौंपे जाते हैं तो उसे जिम्मेदारी से पूरा करने के प्रति बहुत सारे शिक्षक उत्साह नहीं दिखाते हैं। इक्का-दुक्का मामलों को उदाहरण नहीं बनाया जा सकता, लेकिन यह उदासीनता कई बार ड्यूटी पूरा नहीं करने के रूप में सामने आती है। जाहिर है, यह कोई आदर्श तस्वीर नहीं है और इसके समाधान के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। इस तरह की स्थिति सीबीएसई यानी केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के सामने पैदा हुई, जब देश भर में परीक्षा के बाद उत्तर-पुस्तिका के मूल्यांकन के लिए बुलाए गए बहुत सारे शिक्षक ड्यूटी पर नहीं पहुंचे। खबर के मुताबिक सीबीएसई ने देश के अलग-अलग स्कूलों के साढ़े तीन हजार वैसे शिक्षकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं जिन्होंने परीक्षा की उत्तर-पुस्तिका जांचने के लिए समय से मूल्यांकन केंद्र जाना जरूरी नहीं समझा। इनमें अकेले दिल्ली सरकार के स्कूलों के शिक्षकों की संख्या दो सौ से ज्यादा है। इसके अलावा, पंद्रह विद्यालयों को भी संबद्धता समाप्त करने के लिए नोटिस जारी किया गया है।

गौरतलब है कि उत्तर-पुस्तिकाओं का मूल्यांकन कोई ऐसा काम नहीं है जिसे शिक्षकेतर कार्यों के रूप में देखा जा सके। यह शिक्षण और परीक्षा का एक अनिवार्य चरण है। जिस तरह कक्षाओं में पढ़ाना और परीक्षा लेना शैक्षणिक गतिविधियों में शामिल है, उसी तरह उत्तर-पुस्तिका की जांच भी इसी का हिस्सा है। इसलिए इस अहम चरण के लिए अगर किसी शिक्षक को दायित्व सौंपा जाता है तो ईमानदारी से उसका निर्वाह करने की भी उम्मीद की जाती है। लेकिन ऐसा अक्सर देखा जाता है जब कुछ शिक्षक अपनी ड्यूटी के प्रति लापरवाही बरतते हैं। हालांकि यह भी सच है कि ऐसी एक समूची व्यवस्था बन चुकी है जिसमें अपनी ड्यूटी की जिम्मेदारी को पूरा करने के लेकर बहुत सारे लोग गंभीर नहीं होते हैं। लेकिन ऐसे लोग शायद इस तथ्य से अनजान होते हैं कि इनकी उदासीनता या लापरवाही के चलते संबंधित विभाग या फिर उसकी जद में आने वाले लोगों के कार्यों के परिणामों पर कैसा विपरीत असर पड़ता है।

इसके बरक्स हमारे शिक्षा व्यवस्था की एक बड़ी सच्चाई यह है कि बहुतेरे ऐसे मौके आते हैं जब स्कूली शिक्षकों को शिक्षकेतर कार्यों को पूरा करने की ड्यूटी दे दी जाती है। जनगणना, चुनाव से संबंधित कार्य, समाज कल्याण से संबंधित कार्यों का सर्वेक्षण, पशुओं की गिनती या इस तरह के ऐसे कई कार्य हैं, जिनका शिक्षण से कोई वास्ता नहीं है। शिक्षकों को जब ऐसे कामों में उलझाया जाता है तो इसका शिक्षण पर नकारात्मक असर पड़ता है। यह बेवजह नहीं है कि स्कूली शिक्षा पर होने वाले अध्ययनों में पिछले कई सालों से यही स्थिति बनी हुई है कि बच्चों के सीखने का स्तर बेहद चिंताजनक है। यह तथ्य है कि स्कूलों में पहले ही भारी तादाद में शिक्षकों के पद खाली पड़े हुए हैं। शिक्षकों की पर्याप्त संख्या में नियुक्ति करने के बजाय जब सरकार मौजूदा शिक्षकों को ही शिक्षण के सिवा अन्य कार्यों में लगाती है तो शिक्षा की समग्र स्थिति पर इसके असर का अंदाजा लगाया जा सकता है। जरूरत इस बात की है कि शिक्षकों के खाली पदों पर नियुक्ति के साथ-साथ शैक्षणिक गतिविधियों के प्रति उन्हें जवाबदेह बनाने के लिए भी एक सुचिंतित व्यवस्था कायम की जाए, ताकि स्कूली शिक्षण के स्तर में गुणात्मक विकास किया जा सके।

पढें संपादकीय (Editorial News) खबरें, ताजा हिंदी समाचार (Latest Hindi News)के लिए डाउनलोड करें Hindi News App.

First published on: 06-04-2019 at 01:47 IST
अपडेट