यह जगजाहिर तथ्य है कि आतंकवाद ने भारत को कैसे दंश दिए हैं और इसके व्यापक जाल को तोड़ने में देश को कितनी ऊर्जा खर्च करनी पड़ी है। लेकिन यह अकेले भारत की समस्या नहीं है। अलग-अलग देशों में आतंकवाद ने कैसे कहर ढाए हैं और दुनिया में जानमाल की कितनी क्षति हुई है, यह सब तथ्य है। अपवादों को छोड़ दिया जाए तो लगभग सभी देश आतंकवाद के खिलाफ एक बड़ा मोर्चा खड़ा करने को लेकर सहमत दिखाई देते हैं।
इसलिए भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अध्यक्षता करने के मौके को अगर इस अहम समस्या का सामना करने के रूप में देखा है, तो यह केवल अपने पक्ष में एक बेहतरीन कूटनीतिक पहल नहीं, बल्कि इसमें दुनिया के तमाम देशों को इस समस्या से राहत या फिर इससे आगे छुटकारा दिलाने की सदिच्छा भी दिखती है।
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस भूमिका में आने के बाद भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वैश्विक आतंकवाद का मुकाबला करना और बहुपक्षवाद में सुधार करने पर ध्यान केंद्रित करना हमारी प्राथमिकता होगी। यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि पिछले कई दशकों से भारत जैसे विकासशील देश से लेकर अमेरिका जैसे सक्षम देश भी किसी न किसी रूप में आतंकवाद से प्रभावित रहे हैं।
वह अमेरिका में ‘वर्ल्ड ट्रेड टावर’ और अन्य संस्थानों पर हमला हो या फिर भारत में मुंबई से लेकर पुलवामा आदि में हुई आतंकी वारदात, सबमें घटनाओं की प्रकृति भर अलग रही, लेकिन उन सबके पीछे एक मकसद साफ दिखता रहा कि व्यापक हिंसा फैला कर और जानमाल का नुकसान पहुंचा कर दुनिया में आतंक के जरिए भयादोहन से अपने अमानवीय एजंडे को पूरा करना है। लेकिन भारत सहित अन्य देशों ने अपने-अपने स्तर पर आतंकवादी संगठनों और उन्हें संरक्षण देने वाली ताकतों को लगातार मुंहतोड़ जवाब दिया है और यही वजह है कि पिछले कुछ सालों से आतंकवाद का जोर कुछ कम हुआ है। आतंकवादी छिपने पर मजबूर हुए हैं।
हालांकि यहीं यह समझने की जरूरत है कि आइएसआइएस जैसे तमाम छोटे-बड़े संगठनों का आतंकवाद आज ऐसे स्वरूप में जटिल हो चुका है, जिसके निशाने पर कोई एक देश नहीं है और इसीलिए दुनिया के सभी देशों को इससे मोर्चा लेने के लिए एक ठोस पहल करने की जरूरत है। इससे निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक अभियान चलते रहे हैं, लेकिन जरूरत इस बात की है कि अब सभी देश एकजुट हों और एक बेहतर तालमेल के साथ ऐसा ढांचा खड़ा हो, जो हर मोर्चे पर आतंकवाद का सामना कर सके।
इस लिहाज से देखें तो भारत ने आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए काम करने का जो इरादा जताया है, वह वक्त का तकाजा है। कई बार बेहद अहम समस्याओं पर उठने वाली छिटपुट आवाजें दब कर रह जाती हैं, मगर उसी मसले पर संगठित प्रयास दूरगामी असर डालते हैं। भारत अपनी सीमाओं पर और आंतरिक क्षेत्रों में आतंकवादी संगठनों की व्यापक हिंसा का सामना करता रहा है। लेकिन सीमा पार स्थित ठिकानों से संचालित आतंकी गतिविधियों से निपटने में कई बाधा खड़ी हो जाती है। ऐसे में अब यह उम्मीद स्वाभाविक है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मासिक अध्यक्षता करते हुए भारत आतंकवाद के खात्मे के लिए ज्यादा सक्षम और संगठित तरीके से ठोस प्रयास कर सकेगा।