इससे निपटने के लिए अनेक उपाय आजमाए जा चुके हैं, मगर अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल पाई है। सर्दी का मौसम शुरू होते ही हवा में प्रदूषक तत्त्वों की मात्रा इतनी अधिक बढ़ जाती है कि लोगों का सांस लेना दूभर हो जाता है। कई बार स्कूल बंद करने पड़ते हैं, लोगों को सुबह और शाम की सैर के लिए निकलने से मना किया जाता है।
अस्पतालों में सांस के मरीजों की भीड़ बढ़ जाती है। ऐसे में अब दिल्ली के उपराज्यपाल ने बहुउद्देशीय वाहन चलाने की पहल की है। उन्होंने अट्ठाईस ऐसे वाहन खरीदे हैं, जो सड़कों की सफाई करने के अलावा पानी का छिड़काव करने और कोहरा हटाने का काम करेंगे। दावा किया जा रहा है कि इससे वायु प्रदूषण रोकने में काफी मदद मिलेगी। दरअसल, सर्दी के मौसम में हवा संघनित होकर पृथ्वी की सतह के करीब सिमट आती है, जिसके चलते वाहनों और अन्य स्रोतों से निकलने वाला धुआं कोहरे में घुलमिल कर गहरा हो जाता है।
इस तरह तय मानक से कई सौ गुना अधिक प्रदूषक तत्त्व हवा में मौजूद रहते हैं। यही सांस संबंधी परेशानियों और अनेक बीमारियों को पैदा करते हैं। पानी का छिड़काव करने से प्रदूषक तत्त्व जमीन पर बैठ जाते हैं। इस तरह निस्संदेह ये वाहन कारगर साबित हो सकते हैं।
दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के मद्देनजर कुछ साल पहले गाड़ियों के लिए सम-विषम योजना चलाई गई थी, स्माग टावर खड़ा किया गया। बाहर से आने वाले भारी वाहनों का शहर में प्रवेश रोक कर बाहरी मार्गों से उन्हें गुजरने की व्यवस्था की गई। इस साल भी सर्दी शुरू होने से पहले दिल्ली सरकार ने अक्तूबर से ही माल वाहक वाहनों का शहर में प्रवेश बंद कर दिया था।
बिना प्रदूषण जांच के प्रमाणपत्र वाले वाहनों पर भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया। फिर भी इस समय हवा में जहरीले सूक्ष्म कणों की मौजूदगी चार सौ से अधिक बनी हुई है। निस्संदेह यह चिंता का विषय है। हर साल जब सर्दी शुरू होती है, तो दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर राजनीति भी शुरू हो जाती है। दिल्ली सरकार पड़ोसी राज्यों पर पराली जलाने का आरोप लगाती है। इस साल पंजाब में पराली जलाने को लेकर खुद दिल्ली सरकार को भी कठघरे में खड़ा होना पड़ा। फिर केंद्र सरकार इसका सारा दोष दिल्ली सरकार पर मढ़ कर उसे घेरने का प्रयास करती है। जबकि अपेक्षा की जाती है कि इस समस्या से निपटने में सबका बराबर का सहयोग हो।
दिल्ली में वायु प्रदूषण की वजहें छिपी नहीं हैं। करीब पच्चीस साल पहले भी इस समस्या से पार पाने के लिए शहर में चल रहे उद्योगों को सीमावर्ती जगहों पर भेजा गया, फिर वाहनों में सीएनजी लगाया गया, धुएं को पानी में बदलने वाली अत्याधुनिक तकनीक लगे वाहन ही बिक्री के लिए अनुमोदित किए गए। बाहरी वाहनों के शहर में प्रवेश पर कड़ाई रखी गई।
उसके बावजूद वायु प्रदूषण नहीं रुक पाया, तो इसकी बड़ी वजह सड़कों पर बढ़ती वाहनों की संख्या है। तमाम अध्ययनों से उजागर है कि वायु प्रदूषण में सबसे अधिक योगदान दुपहिया वाहनों का है। फिर डीजल चालित गाड़ियों की संख्या लगातार बढ़ती गई है। इस पर रोक लगाने के लिए अनेक सुझाव दिए गए, मगर उन पर अमल कर पाना शायद सरकारों के लिए संभव नहीं है। ऐसे में बहुउद्देशीय वाहनों से वायु प्रदूषण को कम करने में कितनी मदद मिलेगी, देखने की बात है।