अमेरिका में आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं कि किसी सिरफिरे ने अपनी बंदूक से कहीं स्कूल में तो कभी बाजार में अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी और उसमें नाहक ही लोग मारे गए। प्रथम दृष्टया यह कोई आपराधिक या आतंकवादी घटना की तरह लगती है, जिसमें सुनियोजित तरीके से ऐसी वारदात को अंजाम दिया जाता है। कई मामलों में ऐसा संभव भी है। लेकिन इसके पीछे एक बड़ा कारण वहां आम लोगों के लिए हर तरह के बंदूकों की सहज उपलब्धता है।
मामूली बातों और उन्मादग्रस्त होने पर कर रहे अंधाधुंध गोलीबारी
कोई घातक हथियार साथ में होने के बाद मामूली बातों पर होने वाले झगड़े या फिर बेवजह ही किसी के उन्माद से ग्रस्त हो जाने पर कैसे नतीजे सामने आ सकते हैं, अमेरिका ने उसे करीब से देखा है, जहां हर साल सैकड़ों लोग इसकी वजह से मारे जाते हैं। किसी भी संवेदनशील समाज को इस स्थिति को एक गंभीर समस्या के रूप में देखना-समझना चाहिए। यह बेवजह नहीं है कि जिस अमेरिका में ज्यादातर परिवारों के पास अलग-अलग तरह की बंदूकें रही हैं, वहां अब इस हथियार की संस्कृति के खिलाफ आवाजें उठनी शुरू हो गई हैं।
पीड़ितों के मानसिक आघात और अन्य मुश्किलों को समझना कठिन
इसी के मद्देनजर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मंगलवार को बंदूक के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने से संबंधित एक नए कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए। इसके तहत बंदूक की बिक्री के दौरान की जाने वाली ‘पृष्ठभूमि जांच’ को बेहतर बनाया जाएगा। इसके जरिए बाइडेन ने मंत्रिमंडल को बंदूक हिंसा से जूझ रहे समुदायों के समर्थन के लिए एक बेहतर सरकारी तंत्र बनाने का निर्देश दिया है। यह छिपा नहीं है कि बिना किसी वजह के की गई गोलीबारी में किसी प्रियजन को गंवाने वालों को किस तरह के मानसिक आघात और अन्य मुश्किलों से जूझना पड़ता है।
अब नए आदेश के तहत शोक और आघात का सामना करने वाले लोगों को अधिक मानसिक स्वास्थ्य सहायता, पीड़ितों और लंबी पुलिस जांच प्रक्रिया के दौरान बंद होने वाले कारोबारों को वित्तीय मदद भी मुहैया कराने का प्रावधान किया गया है। लेकिन सबसे ज्यादा जरूरत बंदूकों की निर्बाध बिक्री करने वाले और उसके खरीदारों पर अंकुश लगाने की थी। अब संघीय लाइसेंस प्राप्त बंदूक कारोबारियों के लिए नियम बनाने का निर्देश गया है, जिसके तहत डीलरों की पृष्ठभूमि की जांच जरूरी होगी।
हिंसा के स्वरूप में ज्यादा विकृति और क्रूरता हथियारों की सुलभता पर निर्भर
दरअसल, मामूली बातों पर आवेश में आकर बंदूक चला देने के पीछे हाथ में हथियार होने से जुड़ा मनोविज्ञान काम करता है। यों भी हिंसा के स्वरूप में ज्यादा विकृति और क्रूरता हथियारों की सुलभता पर निर्भर है। हत्या की ऐसी घटनाएं आमतौर पर इसलिए होती हैं कि गुस्से या अपनी कुंठाओं पर काबू नहीं रख पाने वाले किसी उन्मादी व्यक्ति के पास गुस्से में होने के वक्त बंदूक उपलब्ध थी। ऐसे मामले आम हैं, जिनमें आपसी वाद-विवाद में आक्रोश और उत्तेजना के चरम पर पहुंच जाने के बाद भी दो लोगों या पक्षों में सुलह हो जाती है, क्योंकि उनके पास तकरार के वक्त हथियार नहीं रहा होता है।
अब अमेरिका में हुई ताजा कवायद की अहमियत यह भी है कि लंबे समय से बंदूकों की सहज उपलब्धता का खमियाजा उठाने के बाद वहां के लोगों ने अपने स्तर पर भी इसके खिलाफ मोर्चा खोलना शुरू कर दिया है और वहां जनता के एक बड़े हिस्से के बीच आक्रोश काफी बढ़ गया है। पिछले साल जून में भारी तादाद में लोगों ने सड़कों पर उतर कर बंदूकों की खरीद-बिक्री से संबंधित कानून को बदलने की मांग की। जरूरत इस बात की है कि इस समस्या के पीड़ितों को राहत देने के साथ-साथ बंदूकों के खरीदार से लेकर इसके निर्माताओं और बेचने वालों पर भी सख्त कानून के दायरे में लाया जाए।