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रंगों के अपने रंग

रंग तब बदरंग हो जाते हैं, जब उनका क्रम बिगड़ जाता है।

Painting art
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर। ( फोटो-इंडियन एक्‍सप्रेस)।

विप्रम

चित्रकला के विद्यार्थी या जलरंगों के चित्रकार भली-भांति जानते हैं कि रंग केवल तीन होते हैं- लाल, पीला और नीला। अच्छे चित्रकार मूल रूप से इन तीन प्रमुख रंगों से अन्य रंग बना लेते हैं। जैसे पीला और नीला रंग मिलाया, तो हरा रंग बन जाता है। इसमें पीला और नीला रंग कम या अधिक अनुपात से मिलाने पर हरे रंग के विभिन्न रंग बन जाते हैं। ऐसे ही लाल और नीले रंग का मिश्रण किया तो भूरा बन जाता है। इसमें भी कम या अधिक मात्रा में मिलाने से भूरे रंग की अलग-अलग छवियां बनती हैं।

रंगरेज यानी अच्छे चित्रकार मानते हैं कि इन रंगों के साथ सफेद और काले रंग के हल्के या कहीं गहरे पुट के तौर पर प्रयोग में लाने से रंगों में निखार लाया जा सकता है। यानी रंगों के अपने उपयुक्त समान मात्रा से आठ रंगों से छटा निखारी जा सकती है। चित्रकार अगर रंगों के रंग से वाकिफ हैं, तो इन रंगों से अपनी कला को निखार सकते हैं।

सब जानते हैं कि हमारे झंडे के तीन रंग होते हैं। इसलिए इसे तिरंगा झंडा कहा जाता है। मगर छोटी कक्षा में पढ़ने वाले एक छात्र से जब पूछा गया कि हमारे तिरंगे झंडे में कितने रंग होते हैं, तो उसने बताया- चार। हरा, सफेद, नीला और केसरिया। झंडे में उद्धृत चक्र के नीले रंग को भी वह चौथा रंग मान रहा था। कुछ दिनों के अंतराल में उसी बच्चे से फिर पूछा गया तो उसने तीन रंग बता दिए। शायद उसने अपने पिता या घर में किसी बड़े से पूछ कर अपनी गलती सुधार ली होगी। यह भी बचपन का एक रंग होता है।

बहरहाल, इंद्रधनुष में सात रंग होते हैं। इसलिए बुनियादी रंग भी सात होते हैं। ऐसा कहा जाता है। जबकि मानने वाले नौ रंग मानते हैं। नौ अद्भुत संख्या है। इसे जोड़ने या आपस में घटाने पर इसका मूलक अंक नौ ही रहता है। ऐसे ही नौ मूल रंग होते हैं। उनकी अपनी महिमा होती है। रंगरेज अपने-अपने हिसाब और तरीके से रंग को अभिव्यक्त करते हैं। उन्हें रंगों की बहुत ही बारीक परख होती है। जबकि एक साधारण व्यक्ति इतना ही जानता है कि जितना रंगों को निखारिए, वह उतना ही अधिक निखर के रंग में आते हैं।

रंग तब बदरंग हो जाते हैं, जब उनका क्रम बिगड़ जाता है। तिरंगे झंडे का हरा हिस्सा जमीन की ओर होना चाहिए। इस तरह झंडा ठीक तरीके से फहराया जाता है। वरना कई बार जलसों और समारोहों में उल्टा यानी हरा भाग ऊपर और केसरिया रंग का भाग जमीन की ओर कर दिया जाता और लोगों का ध्यान भी नहीं जाता। इससे रंग में भंग तो होता ही है, बल्कि अगर ऐसा गलती या धोखे से भी हुआ है तो आयोजकों की मंशा पर सवाल खड़े हो जाते हैं। यों जानबूझ कर इस रंग में हेरफेर शायद ही कोई करता है।

चूंकि रंगों की अपनी एक महिमा होती है, अपनी एक अलग पहचान होती है, इसलिए उनमें मिलनेवाले अन्य रंगों को बड़े ही धैर्य और गहरी लगन से मिश्रण का ध्यान रखना पड़ता है। जैसे काला रंग है। उसमें कुछ लाल रंग मिला दिया जाए। फिर उसमें कुछ सफेद रंग का तड़का दे दिया जाए। इसी रंग में थोड़ा-सा हल्का पीला रंग मिला दें, तो एक बिल्कुल अलग रंग कोकाकोला जैसा कत्थई रंग चमकता हुआ निखर कर आएगा।

कहा जाता है कि रंग बनाने से रंग बनता है। रंगों में रंग घोलने से नए अजब-गजब रंग बन जाते हैं। जरूरत होती है एक सूझ-बूझ की। नपे-तुले रंगों के मिश्रण की। बात घूम फिर कर नहीं आनी चाहिए कि रंग सात होते हैं या नौ। ‘नवरंग’ एक फिल्म हिंदी में आई थीं। इसमें विविध नौ रंगों को दिखाया गया था। ठीक ऐसे ही एक और हिंदी फिल्म आई थी- ‘नौ दिन नौ रात’। इस फिल्म में नौ रूप के अलग-अलग आदमियों के व्यक्तित्वों का बखान किया गया था। शायद जिसे देखकर ही हम जान सके कि दुनिया में नौ रंग-रूपों के लोगों का बोलबाला है!

चूंकि रंगों के रंग होते हैं, वह भी अपने-अपने रंग, इसलिए हम कह सकते हैं कि रंग विस्तारवादी होते हैं। भले ही तीन रंग प्रमुख होते हैं। अपने-अपने चेहरे पर भी तीन ही रंग आते-जाते हैं- खुशी, गम और बीमारी के। यह एक आकलन है। चौराहे की लाल बत्ती को देखा जा सकता है, जो कहती हैं- रुकिए (लाल), तैयार होइए (पीला) और आगे चलिए (नीला)। जिंदगी के भी यही तीन रंग हैं या यही हैं रंगों के अपने रंग।

भले ही लोगों ने रंगों को भी जाति, धर्म और राजनीति में बांट लिया है। खासकर लाल, केसरिया और हरे रंग को अपने ही ढंग से रंग दे दिया है। नीले रंग की अपनी एक अलग महिमा देखी जाती है, तो लाल रंग भी दिख जाता है अपने अंदाज में। हरे रंग की छटा भी खूब दिखती है। रंगों की दास्तान दिलचस्प है, अपने-अपने रंग लिए हुए।

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First published on: 30-03-2023 at 03:39 IST
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