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दिखावे की कीमत

बीते दिनों एक परिचित ने अपने इकलौते बेटे को उसके जन्मदिन पर नई मोटरसाइकिल दिलवाने की बात सबसे सगर्व कही।

Bike rider youth
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर। ( फोटो- इंडियन एक्‍सप्रेस)।

संगीता सहाय

पिछले वर्ष ही कार्यालय से घर जाते वक्त एक युवा बाइक चालक की टक्कर से उनके एक हाथ की हड्डी टूट गई थी। फलस्वरूप उन्हें महीनों घर बैठना पड़ा था। उस समय उन्होंने गाड़ी चलाने वाले कम उम्र के युवाओं और उन्हें ऐसा करने देने वाले माता-पिता और व्यवस्था को खूब कोसा था।

लोगों के जीने के बदलते स्वरूप और आचरण पर लंबी-चौड़ी बातें कही थीं। लेकिन अब उनका कहना था कि अपने इकलौते बेटे का दिल कैसे दुखाऊं… मेरा सब कुछ उसी का तो है… मैंने उससे वादा किया था कि मैट्रिक की परीक्षा में अच्छा परिणाम लाने पर बाइक दिलवाऊंगा। उन्होंने यह भी कहा कि वे एक पहचान वाले से उसे ड्राइविंग लाइसेंस भी बनवा देंगे।

हालांकि ऐसी बातें आम हैं। हमारे आसपास के घरों, परिवारों में होती ही रहती हैं। कहा जा सकता है कि बदलते वक्त के साथ अपने बच्चों को महंगे सामान, गाड़ी, मनचाही जीवनशैली आदि देकर प्यार-दुलार प्रदर्शित करने की परंपरा बढ़ती जा रही है। लोग अपने बच्चों पर प्यार दर्शाने के लिए उनकी हर जायज-नाजायज मांग पूरी करना अपना कर्तव्य समझते हैं।

ऐसे में कानून की धज्जियां तो उड़ती ही हैं, साथ ही इससे कई लोगों की लोगों की जान भी खतरे में पड़ जाती है। इन दिनों सड़कों पर दोपहिया, चारपहिया वाहन चलाने वाले कम उम्र के युवाओं द्वारा किए जा रहे खतरनाक कलाबाजी और उससे होने वाली दुर्घटनाएं आम हैं। आए दिन हम सड़क पर हिंसक गतिविधियों से रूबरू होते हैं। गाड़ियों की टक्कर, पलटना, दुर्घटनाग्रस्त होना, लोगों का चोटिल होना, झगड़े, मारपीट और सबसे बढ़कर असामयिक मौत जैसी अनगिनत घटनाएं घटती ही रहती हैं।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में देश भर में कुल 4,12,432 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिसमें 1,53,972 लोगों की जान गई और 3,84,448 लोग घायल हुए। इन दुर्घटनाओं और उससे हुई मौतों के मुख्य कारण थे- तेज गति से गाड़ी चलाना, हेलमेट, सीट बेल्ट जैसे सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल नहीं करना, नशे में गाड़ी चलाना और अन्य यातायात नियमों का पालन नहीं करना आदि।

सड़क दुर्घटनाओं में शामिल वाहनों में सर्वाधिक दुर्घटना दोपहिया वाहनों से हुई। इसकी हिस्सेदारी करीब पैंतालीस फीसद रही। सत्तर फीसदी मौतों की वजह निर्धारित गति से ज्यादा रफ्तार में वाहन चलाना रही। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने भी हस्तक्षेप करते हुए कहा है कि देश में इतने लोग सीमा पर या आतंकी हमलों में नहीं मरते, जितने सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं।

पिछले एक दशक में करीब चौदह लाख लोग इससे मारे गए। ये मौतें परिवारों को भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक रूप से तोड़ देते हैं। साथ ही देश की प्रगति पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ता है। इसके हल के लिए सड़क सुरक्षा से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण कदम भी उठाए जा रहे हैं, पर आवश्यकता इस बात की है कि आम लोग इस विषय पर गंभीरता से सोचें और हर वह आवश्यक काम करें जो इसके लिए जरूरी है।

वास्तव में कम उम्र के बच्चों को गाड़ी की चाभी थमाना, उनकी और अन्य लोगों की जिंदगी से खेलना ही है। बहुत सारे युवा अपना दबदबा बनाने, झूठी शान और रसूख के चक्कर में स्कूल-कालेज जाने और पढ़ने-लिखने की उम्र में दिखावे की लत पाल लेते हैं। ऐसा कर वे शिक्षा-दीक्षा से तो दूर होते ही हैं, साथ ही अपनी और दूसरों की जान भी जोखिम में डालते हैं।

गौरतलब है कि इसके लिए जितने दोषी ये युवा हैं, उससे ज्यादा दोषी उनके माता-पिता हैं। बच्चों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, उनके और समाज के लिए क्या उचित और क्या अनुचित है, यह सीख देने की जिम्मेदारी उनके माता-पिता और घर के बड़ों की होती है। दादा-दादी, चाचा-चाची और अन्य पारिवारिक सदस्य रहित एकल परिवार के इस दौर में तो अभिभावकों की जिम्मेदारी और बढ़ गई है।

लेकिन आज हालत यह है कि आधुनिकता के नाम पर बाजार में तैयार हुए बच्चों की बेलगाम महत्त्वाकांक्षाओं को देख कर कई अभिभावक ही खुश होते हैं और उसे सगर्व अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों के सामने पेश करते हैं। यह बिना अंदाजा लगाए कि उनकी इस आभासी खुशी का हासिल क्या होने वाला है।

घर-बाहर हर तरफ आधुनिकता के नाम पर दिखावा, झूठी ठाटबाट, आडंबर और तड़क-भड़क का एक संग्राम-सा छिड़ा हुआ है। सुख और संतुष्टि के नाम पर लोग ऐशो-आराम के संसाधनों से घिरे जा रहे हैं। एक अजीब-सा नशे का खुमार हर ओर फैलता जा रहा है। शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य पद और पैसे की प्राप्ति रह गया है। स्वाभाविक रूप से इस दौर के बच्चे और युवा भी इन सबसे उतना ही प्रभावित हैं। जो हर तरफ हो रहा है। उनके लिए वही सत्य है और येन केन प्रकारेण उसकी प्राप्ति उनका लक्ष्य। शहर से लेकर गांव तक यह रोग महामारी की तरह फैल चुका है। इसलिए सबको इस समस्या पर विचारने और अपने जीवन में उतारने की जरूरत है।

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First published on: 27-02-2023 at 03:19 IST
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