भगवती प्रसाद गेहलोत
इसका कारण यह रहा होगा कि घर से कोई दूर रहता है तो वहां अचानक आई किसी मुसीबत के वक्त अपने परिवार के लोगों या रिश्तेदारों का पहुंचना तो बाद में हो पाएगा, आसपास रहने वाले पड़ोसी ही सबसे पहले काम आ सकते हैं।
हालांकि अब आज जो दौर चल रहा है, उसमें यह जरूरी नहीं कि पड़ोसी कभी मुसीबत में काम आ ही जाए, क्योंकि पड़ोसी अच्छा भी हो सकता और बुरा भी। पड़ोसी किसी मुहल्ले में हमारे निवास के आसपास का हो या राष्ट्र के, बात लगभग एक ही है। पुराने जमाने की बात और थी कि पड़ोसी सचमुच पड़ोसी कहने के लायक हुआ करते थे। अब तो हालत यह हो गई है कि पड़ोसी से संभलकर रहना होता है।
अगर किसी ने अपने पड़ोसी को कभी कोई सुविधा दे दी, कुछ वक्त तक देते रहे और अचानक किसी दिन उसे न कह दिया गया तो देख सकते हैं कि पड़ोसी अपने तेवर दिखाना शुरू कर देता है। वह ऐसी शत्रुता ठान लेता है कि कई बार ऐसा लगता है कि उससे बड़ा कोई शत्रु नहीं। एक परिचित के पड़ोसी अति लिप्सा की अप्राप्ति के कारण खुद बेचैन रहता है तो अपने आसपास किसी को भी चैन से नहीं रहने देता। वह कर्म और व्यवहार में अतिक्रमण कर अपने पड़ोसी को परेशान करने में ही अपना वक्त काटता है और उसे ही अपनी उपलब्धि मान कर कल्पना लोक में जीता रहता है।
एक पड़ोसी वे होते हैं जो उत्तम पड़ोसी कहलाते हैं। वे हमसे मानवीय व्यवहार बनाए रखते हुए किसी भी परेशानी या दुख-दर्द के वक्त तुरंत अच्छे दोस्त की तरह सहयोग के लिए तत्पर हो जाते हैं। अगर किसी तरह का सहयोग वे कर पाते हैं तो ऐसा करने के बाद वे भूल जाते हैं। यही नहीं, अगर किसी संदर्भ में उनके सहयोग की याद दिलाई जाए तो वे वैसा करना अपनी जिम्मेदारी बताते हैं।
मध्यम प्रकार के पड़ोसी वे होते हैं जो समय आने पर आपका सहयोग तो करते हैं, लेकिन वे हमेशा याद रखते हैं और जैसे ही अवसर उपस्थित होता है, तो वे उसे भुनाने से नहीं चूकते। सहयोग के बदले सहयोग ले ही लेते हैं। ऐसे पड़ोसी सहयोग को भी कर्ज या उधार देने की तर्ज पर इस्तेमाल करते हैं और अपनी तुला में सहयोग देने-लेने का हिसाब-किताब बराबर रखते हैं।
एक पड़ोसी वे होते हैं, जो जब भी मुखातिब हो, याद दिलाते रहते हैं कि देखो हमने आपकी उस समय मदद की थी। जैसै, ‘देखो, ये शाल जो तुमने ओढ़ रखी है, वह मैंने ही तुम्हें दी थी।’ चाहे आप अकेले खड़े हों या दो-चार मित्रों और परिचितों के बीच, वे अपने एहसान का बखान करते रहते हैं। ऐसी स्थिति में यह सब सुन कर कोई भले ही कसमसाता रहे या तनाव में आ जाए और तनाव उसके सहयोग से भी भारी लगने लगे, लेकिन ऐसे लोगों को सुनना ही पड़ता है।
कुछ पड़ोसी अधमाधम होते हैं। आत्मक्लेशी, जो अपने अच्छे और सहृदय पड़ोसी के साथ भी बस क्लेश करने का बहाना ढूंढ़ते ही रहते हैं। ऐसे लोग कभी किसी के सुख-दुख में सहयोगी नहीं होते, बल्कि दुख और विपत्तियां उपजाने का काम ही करते रहते हैं। इतना ही नहीं, वे आपके स्वत्व को हड़प कर लेने के बाद भी अपने पड़ोसी की ही बुराई हमेशा दूसरों के सामने करते रहते हैं और अपने आपको नीतिवान, धार्मिक अच्छा और ईमानदार साबित करते रहते हैं।
इसके अलावा, एक अन्य प्रकार के पड़ोसी वे होते हैं, जो कभी भी अपने पड़ोस में रहने वालों का सहयोग नहीं करते, लेकिन व्यवहार बनाए रखते हैं। ऐसे लोग चोर से कहते हैं कि चोरी करो और पड़ोसी से कहते हैं कि जागते रहो। इन लोगों से अलग एक पड़ोसी वे होते हैं जिन्हें एक तरह से अज्ञात कहा जा सकता है। ऐसे लोग पड़ोस में रहने के बाद भी पहचानते तक नहीं कि उनके आसपास के घरों में भी कोई रहता है।
आज के जमाने में ज्यों-ज्यों अपार्टमेंट संस्कृति का विस्तार हुआ है और उसमें एक बंद फ्लैट में रहने की व्यवस्था शुरू हुई है, वैसे-वैसे ऐसी जगहों पर रहने वाले लोग एक दूसरे को पहचान भी नहीं पाते कि ये किसी के पड़ोसी भी हैं। अगर किन्हीं हालात में त्योहार आदि के मौके पर औपचारिक जान-पहचान हो भी जाए, तो आपस में व्यवहार बना कर नहीं रखते।
कोई होगा पड़ोसी तो अपनी बला से! हम देख ही सकते हैं कि हाल में पाकिस्तान ने कैसे विदेशी राजनायिकों के सामने भारत पर किस तरह के विचित्र आरोप लगा दिया। इस तरह के पड़ोसी उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की भूमिका निभाने लगते हैं। अब भिन्न-भिन्न प्रकार के पड़ोसियों की जो तस्वीर है, वैसी स्थिति में तो डट कर रहना ही पड़ेगा, पड़ोसी चाहे कैसा भी हो। अच्छा पड़ोसी हुआ तो उसके साथ अच्छा हुआ जाए और बाकी तो हमारे पास अपना विवेक है ही।