राजेंद्र प्रसाद
मनुष्य की जिंदगी बहता नीर है, जो हमारी सांस के जरिए जीवन को चलाता रहता है। सांस चलती रही तो जीवन और सांस बंद तो जीवन का अंत। अपने को जीवंत बनाए रखने के लिए हम बहुत से पड़ाव और मोड़ से गुजरते रहते हैं। जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए हम मन, कर्म और वचन के माध्यम से तरह-तरह की क्रियाएं करते हैं। मन-मस्तिष्क में जैसा सोचते-विचारते हैं, जीवन में हम उसी तरह के कर्म भी करते हैं। सबके कर्म का प्रभाव घूम-फिर कर परिवार, समाज, मोहल्ले, गांव-नगर, देश-प्रदेश सब पर सामूहिक स्तर पर पड़ता है। इसीलिए मन-वचन-कर्म हमारे जीवन की महत्त्वपूर्ण जड़ है और उसी से हम कर्म को अपना आधार बनाते हैं और कर्मफल भी कमोबेश उसी तरह के होते हैं।
मनुष्य पैदाइशी रूप से अनगढ़ पत्थर है। जन्म लेते ही सीखने के क्रम में प्राकृतिक तौर पर अनायास-सायास जुट जाते हैं और बाद में शिक्षा की छैनी और हथौड़ी से हमारे समूचे व्यक्तित्व को नई आकृति देने की नींव पड़ती है। निस्संदेह मनुष्य के भीतर अनेक अदृश्य रहस्य छिपे पड़े हैं, जिनका दर्शन मोटे तौर पर अन्य साधनों के अलावा शिक्षा से भी होता है। मनुष्य की चार शिक्षाएं होती हैं।
प्र्रथम वह जो घर में प्राप्त करता है। दूसरी, वह जो अपने गुरुजनों से प्राप्त करता है। तीसरी, जो संसार से प्राप्त करता है और चौथी, वह जो स्वयं अकेला चलकर अपने अच्छे-बुरे अनुभवों से अर्जित करता है। इनसे हमारे जीवन की एक मौलिक व दूरगामी सोच बनती है। ऐसे में हमारी सोच का अंतर, सामर्थ्य-शक्ति और ज्ञान-अज्ञान के भंडार से काम करने का तरीका जिंदगी के विकास को निश्चित और प्रभावित करता है, जो हमें साधारण-असाधारण और अच्छी-बुरी दिशा की ओर ले जाता है।
जिंदगी के हर पल को बिंदास जीना ही वास्तविक जिंदगी है, जो केवल सकारात्मक सोच से ही संभव है। जिस दिन हमने अपनी सोच बड़ी कर ली और उस पर बिना फल की लालसा से उसे पूरी करने में जुट गए, उस दिन रुतबे के लोग भी हमारे बारे में सोचने लगेंगे। जाहिर है, हम सब लोग वह कर सकते हैं, जो हम सोचते हैं। प्रेरणा मार्ग के रूप में हम वह सब सोच सकते हैं, जो हमने आज तक नहीं सोचा।
बदलते युग में घर-परिवार में हमने बड़े और अनुभवी लोगों के बीच बैठने और उनके विचारों से सीखना और लाभान्वित होना लगभग बंद कर दिया है। बहुत कम युवा और बच्चे होंगे, जो अपने और संपर्क में आने वाले बड़ों के पास समय देते हैं। निश्चित रूप से सबकी अपनी-अपनी सोच है। मगर सोच खूबसूरत हो तो सब कुछ अच्छा नजर आता है। आखिरकार नजरिया भी नजर और नजारे, दोनों बदलता है। मन का प्रभाव तन पर होता है। तन और मन दोनों का प्रभाव हमारे कर्म और जीवन पर होता है।
जीवन बेमकसद नहीं होना चाहिए। ऐसे में हम सोचेंगे कि कुछ अच्छा या बुरा करने यहां आए हैं। दूसरी ओर जीवन की कोई सीमा हमें ज्ञात नहीं है। कटु सत्य है कि छाता और दिमाग तभी सही काम करते हैं जब वे खुले हों। बंद होने पर दोनों बोझिल बन जाते हैं। दोस्त, किताब, रास्ता और सोच- ये चारों जीवन में सही मिलें तो जिंदगी निखर जाती है, अन्यथा बिखर जाती है। चलते रहने में ही सफलता है, रुका हुआ तो पानी भी बेकार हो जाता है। अच्छी सोच, अच्छी भावना और अच्छा विचार मन और तन को हल्का करता है।
कुछ लोग अक्सर यह मंतव्य बिखेरते हैं कि अपने हिसाब से जीयो, लोगों की सोच का क्या! वे परिस्थिति के हिसाब से बदलते हैं। उदाहरण के लिए अगर चाय में मक्खी गिरे तो चाय फेंक देते हैं और अगर देसी घी में वही मक्खी गिरी तो लोग मक्खी को निकाल कर फेंकते हैं। असल में अपने भीतर उठने वाले काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ और अहंकार के तूफान और भंवर को एक सोच से रोकना या नियंत्रण में रखना भी तप साधना है। जो बिना विचारे हर किसी से लड़ाई-झगड़ा करता रहता है, ऐसा मनुष्य जल्दी ही अप्रिय हो जाता है।
लोहे को कोई न२हीं, बल्कि उसका जंग उसे नष्ट करता है। उसे जंग से बचाने का काम हो जाए तो उसकी मजबूती और जीवन बढ़ जाता है। इसी तरह आदमी को और कोई नहीं, बल्कि उसकी सोच ही उसे बढ़ाती या घटाती है। सोच अच्छी रखी जाए तो देर-सबेर जरूर अच्छा होगा, पर उसकी रक्षा के लिए लिए सब्र और सहनशक्ति के हथियार जरूरी हैं।
विडंबना है कि आज के युग में अमूमन सब छोटे प्रयास से गलाकाट सफलता औरों के मुकाबले जल्दी और मन माफिक चाहते हैं। यह सवाल कचोटता है कि हम जीवन में कैसी सोच बनाएं, कौन-से तरीके अपनाएं और किस तरह की जिंदगी के लिए अपने को तैयार करें, ताकि जीवन के सम्मुख वर्तमान और भविष्य की चौखट पर आने वाली चुनौतियों का मुकाबला सही ढंग से कर सकें और जीवन को किसी सफल मोड़ की तरफ कुशलतापूर्वक ले जा सकें। इसी सोच से हमारे कर्म की राह भी बनती है।