भाषा कोई भी हो, सबकी अपनी प्रकृति, व्याकरण और इतिहास होता है। कभी-कभी बिना कुछ कहे भी मनुष्य अपने हाव-भाव और आंखों से बहुत कुछ कह जाता है। ‘भरे भुवन में करत है, नैनों से ही बात’। महाकवि बिहारी का यह दोहा अत्यंत प्रासंगिक है। आंखों की भाषा का अपना प्रभाव होता है जो सीधे मर्म को स्पर्श करती है। आंखों के जरिए विविध भावों की अभिव्यक्ति की जाती है। आवश्यकता है आंखों की भाषा को समझना। आंखें बहुत कुछ कहती हैं।
भावों की विविधता के लिए देखिए कि आंखें कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जिस पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता- ‘एक दिन मैं अपनी बहन के साथ बाजार गई थी। वहीं एक ठेले से हम फल ले रहे थे और उसके पास ही चाट वाले ने अपना ठेला लगा रखा था। एक तरफ कुछ लड़कियों का समूह चटखारे लेकर पानी पताशे का आनंद ले रहा था।
तभी एक फटेहाल बालक वहां आकर बोला- ‘दीदी!’ उसके इस संबोधन के साथ उसकी आंखें भी बोल रही थीं। शायद वह भी पताशे खाना चाहता था। उन लड़कियों ने उसे घूरते हुए देखा था। वह सहम कर एक ओर हमारे पास आ खड़ा हुआ था। मैंने पताशे वाले से कहा- ‘भैया इसे खिला दो और हमें भी। इसके पैसे हम दे देंगे’। यह सुनकर उस बालक की आंखों में आनंद का भाव तैर गया था। वह मग्न होकर पताशे खाने लगा था।
छोटी-सी बात पताशे खाने की थी, पर वहां आंखों की कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी, जो बहुत कुछ कह गई थी। लड़कियों का बालक को अवहेलना की दृष्टि से देखना, बालक का सहमना, फिर उसका पताशे खाते समय आनंद या तृप्ति का भाव। ये सभी स्थितियां आंखों की भाषा को स्पष्ट करती है। भाषा भावों को सहजता से संप्रेषित करती हैं। आंखें तो बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह देती हैं।
आंखें बोलती हैं, बतियाती है, विविध भावों अनुभूतियों को जीवंत कर देती हैं। एक बिंब उन आंखों में उतर आता है, जो उन स्थितियों घटनाओं और अनुभूतियों को महसूस कराने में सहायक होती है। हिंदी में तो आंखों पर विविध मन:स्थिति को दर्शाते मुहावरे हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि आंखों की भाषा कितनी समृद्ध है जो बिना बोले ही बहुत कुछ कह जाती है, संवाद करती है।
संवेदनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान करने में आंखों का कोई जवाब नहीं। किसी के प्रति दया या फिर कृतज्ञता का भाव, किसी से सहायता की उम्मीद करती निरीह आंखें, किसी के प्रति असीम स्नेह और प्यार उड़ेलती आंखें, प्रेम भाव से शिकायत करती आंखें, बेबसी में बहुत कुछ बयां करतीं, कनखियों से प्रेमिल भावों को विस्तार देतीं, घूरती आंखें, तो किसी बात पर सहमत न होने पर विरोध दर्ज कराती आंखें..!
बिना कुछ बोले भाव संप्रेषण का सामर्थ्य आंखों का वैशिष्ट्य कहा जा सकता है। आंखों पर अनेक गीत, गजल कहानी आदि के साथ बहुत कुछ लिखा गया है। आंखों का भाव सामर्थ्य अत्यधिक विस्तार लिए हुए है, जहां विविध अनुभूतियां अभिव्यक्त होती हैं। बस आंखों की भाव-भंगिमाएं समझ आनी चाहिए।
चित्रकार जब अपनी तूलिका से आंखों को उकेरता है तो चित्र जिस संदर्भ या उद्देश्य से बनाया गया है, वह भाव जीवंत हो उठता है। जैसे मृगनयनी नायिका के फैले विस्तृत नेत्र, किसी के दुख के भाव को प्रकट करने के लिए ये नयनों की अलग भंगिमा प्रस्तुत होती है। उदास आंखें अलग भाव से मन के भीतर की पीड़ा वेदना को प्रकट कर देती हैं। गोपनीयता के लिए यानी सबके बीच में कुछ ऐसी बात जो सबको नहीं बतानी हो तो आंखें अपनी कलाकारी दिखाती हुई उस उद्देश्य की पूर्ति भी चुपचाप करती जाती हैं और किसी को पता भी नहीं चलता।
ऊपर बिहारी के जिक्र किए गए दोहे में एक साथ देखिए कि कितने भाव आंखों के द्वारा प्रकट हुए हैं। नायक-नायिका समस्त परिजनों के बीच बैठे हुए हैं, लेकिन मुख से एक शब्द बोले बिना ही कितना कुछ और कितने भाव आंखों से प्रकट होते हैं। कहना, मना करना, रीझना खीझना, प्रसन्न होना, लजाना आदि सारे मनोभाव दोनों की आंखों से अभिव्यक्ति पाते हैं, पर किसी को पता भी नहीं चलता। आंखों के माध्यम से भावों का आदान-प्रदान एक क्षण में हो जाता है।
फिल्मों में तो आंखों पर गीतों की भरमार है जो आंखों के जादुई स्पर्श को दर्शाते हैं, जो सीधे श्रोताओं के हृदय के भीतर उतरते चले जाते हैं। आंखें और संगीत मिलकर गीत की मूल संवेदना को प्रकट कर देते हैं। कई बार बातचीत के दौरान हम आंखों से संबंधित अनेक भाव की चर्चा करते हैं, जैसे नीरस आंखें, चंचल नयन बोलती आंखें, विस्फारित नेत्र, स्नेहिल भाव से पूरित आंखें आग उगलती आंखें, झुके नयन। इन सबके साथ आंखें संवाद करती हैं। महसूस करने की बात है।