इस बीच एक साहित्यिक मित्र मंच पर हाथों में दो पुस्तकों का उपहार लेकर गए। बाद में सहजता और आत्मीयता भरे स्वर में उन्होंने बेहिचक बताया कि वे ऐसे समारोह में वर-वधू को पुस्तक ही भेंट करते हैं। उनकी यह बात हृदय में गहरे उतर गई।
पुस्तकों के इतिहास और इसके महत्त्व आज भले डिजिटल प्रकल्प के चकाचौंध में धूमिल होते दिख रहे हों, लेकिन कालचक्र ने फिर पुस्तकों की जीवंतता को मानव संसाधन के सबसे प्रमुख हथियार के रूप में स्वीकार किया है। एक समय विद्यार्थी जीवन में पुस्तकों के पढ़ने का प्रमुख प्रयोजन परीक्षा में उत्तीर्ण होना था, लेकिन पाठ्यक्रम से उन्मुक्त पलों में महापुरुषों की जीवनी या मनोरंजन की कुछ पुस्तकों से मस्तिष्क चेतना तरल हो जाती थी। किसी साहित्य चिंतक की धारणा सही है कि उन्होंने पुस्तक को सच्चे मित्र की संज्ञा दी है, क्योंकि इसकी महत्ता मानव जीवन के जन्म से मृत्यु तक एक सबल सारथी की भूमिका में रहता है। संसार में शिक्षा अर्जन का अगर कोई प्रभावकारी स्रोत है तो उसे पुस्तक ही कहा जाना चाहिए।
समाजशास्त्रियों ने यह भी सिद्ध किया है कि जब शिशु अपने मां के गर्भ में पल रहा होता है तो मां जिस स्तर की पुस्तक का अध्ययन करती है, उसका प्रभाव कालांतर में उस बच्चे के मानस पटल पर भी पड़ता है।पुस्तक के मर्म हमें अवगत कराते हैं कि जन्म से ही हर व्यक्ति अपने जीवन में कुछ नया जानने और नया करने की अभिलाषा रखता है। इसी उत्सुकता का परिणाम है कि वह अपने माता-पिता, गुरु, परिवार और समीपस्थ चीजों से सीखता है।
इस क्रिया की विधा का मापदंड पुस्तक ही है जो हमारे जीवन जीने की कला के समस्त सूत्रों का सूत्रपात करता है। यह हमारे जीवन को रोमांचित करती है, मुस्कान भरती है, रुलाती है और हमारी समस्त द्वंद्वों को दूर भी करती है। इतिहास और साहित्य के पन्ने साक्षी हैं कि हर कोई जीवन में एक लक्ष्य की प्राप्ति का उद्देश्य लेकर आगे बढ़ता है, जिसकी पूर्ति में पुस्तकें बहुत सहायक होती हैं। जीवन की समस्त गतिविधियों से सैर कराता हुआ पुस्तक कभी हमसे नाराज नहीं होता, भले ही हम उसे सालों साल घर के आलमारी में कैद कर दें।
आपाधापी और भागदौड़ की जिंदगी ने हमें यंत्रवत बना दिया है और उबाऊ दैनंदिनी क्षणिक राहत के लिए मनोरंजन की तलाश करती है। चलचित्र गृहों के दो से तीन घंटे के परदे की करिश्मे से हम कुछ देर के लिए तरोताजा महसूस कर लिया करते हैं, लेकिन फिर से उसी व्यस्तता के क्षण जब हमें अपने आगोश में ले लेते हैं तो उससे उबरने में हमारी पुस्तकें संजीवनी का काम करती हैं। जब हम कोई फिल्म देखते हैं तो हमारे दिमाग में वैसी ही एक कल्पना जन्म लेती है, जो फिल्म के खत्म होने के साथ धूमिल हो जाती है।
लेकिन जब हम किताब पढ़ते हैं तो उसे घंटों के बजाय कई दिनों तक पढ़ते हैं, जब तक कि उसके अंतिम अध्याय पूरे न हो जाएं। इससे हमारे भीतर खयाल, उत्साह और नूतन विचारों का जन्म होता है। जैसे-जैसे हम उस किताब की कहानी की ओर बढ़ते हैं, हमारी उत्सुकता बढ़ने लगती है और मानसिक संवेदनशीलता की तरंगे घनीभूत होने लगती हैं। कभी-कभी तो पुस्तक की उस कहानी की परिणति की काल्पनिक समांतर रेखा भी खींच जाती है जो वास्तविक पन्ने के अंत से तादात्म्य स्थापित कर लिया करती है। किताबों के करतब में हम साक्षात रूप से खूबसूरत एहसास भी करते हैं जो लफ्जों से खेलने की कला भी सिखा देती है।
एक शोध संस्थान ने रेखांकित किया है कि नियमित रूप से पुस्तक प्रेमी की औसत आयु में दो वर्ष की वृद्धि दर देखी गई है, बनिस्बत उनके जो पुस्तक से बिल्कुल वानप्रस्थ हो चुके हैं। जमाने से यह भी महसूस किया जा रहा है कि पुस्तक नींद की एक शीतल औषधि है, जिससे हम तरोताजा होते हैं। महापुरुषों की आत्मकथाएं, ऐतिहासिक घटनाएं जब पुस्तकों के पन्नों में हम पाते हैं तो उसके उतार-चढ़ाव से युक्त विवरण मानव मस्तिष्क की संज्ञानात्मक प्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। किसी पुस्तक के अध्ययन से जो अनुभव, ज्ञान और खुशी हमें प्राप्त होता है, वह किस स्तर तक स्थायी है, वह इस बात पर निर्भर है कि हमने इस पुस्तक को कितना समय दिया है। अगर हम अध्ययन में सराबोर हो ज्यादा आनंदित हो रहे हैं तो यह कालक्रम कई सप्ताह तक बना रहता है।
निश्चय ही यह स्थिति हमारे शब्द कोष में वृद्धि करते हुए इसे समृद्ध भी करता है और मस्तिष्क की मांसपेशियों का सुखद व्यायाम भी है। स्मार्टफोन, टैबलेट, कंप्यूटर और टेलीविजन में डूबते जीवन पल से थोड़ा समय निकालकर हमें मानसिक तृप्ति के लिए पुस्तकों के पर्वत को स्पर्श करने की आज नितांत आवश्यकता है। उपहारों के बाजारवाद से थोड़ी मुक्ति लेकर अगर हम किसी स्वजन को उनके जन्म दिवस या अन्य मौके पर कोई प्रेरक पुस्तक भेंट करने के सिलसिले में वृद्धि करें तो शायद यह भावी पीढ़ी के लिए सृजनात्मक सूर्योदय का दर्शन करा सकेगा।