बुलाकी शर्मा
हमारा निजी और सार्वजनिक सच एक-सा होना कई बार परतों में बंटा होता है। आधुनिक तकनीकी दौर में देखें तो हम सोशल मीडिया पर खुद को जिस रूप में प्रस्तुत करते हैं, जरूरी नहीं कि निजी जिंदगी में भी हम वैसे हों। सार्वजनिक मंच के रूप में सोशल मीडिया को आमतौर पर अपनी छवि चमकाने का साधन माना जाने लगा है। वास्तव में हम सामाजिक चेतना संपन्न हों या नहीं, लेकिन ऐसे मंचों पर खुद को सेवाभावी, परोपकारी, विनम्र, करुणामय, भावुक और न जाने क्या-कुछ बताकर हम खरे सामाजिक की छवि गढ़ने में लगे रहते हैं, ताकि आभासी दुनिया हमें पसंद करे, हमारी प्रशंसा करे।
आभासी दुनिया में छवि चमकाने की कोशिश के चलते हम अपने व्यावहारिक जीवन की छवि के आकलन के लिए अवकाश नहीं निकाल पाते। सचमुच हम कितने सामाजिक हैं, समाज के प्रति हमारा व्यवहार कैसा है, हमारे व्यवहार से अन्य व्यक्ति पर कैसा प्रभाव पड़ रहा है, इस पर आत्म आलोचना हम शायद ही करते होंगे, जबकि समाजशास्त्रियों का मानना है कि समाज मात्र व्यक्तियों का समूह नहीं है, बल्कि उनके बीच सामाजिक संबंधों का आधार रहना आवश्यक है।
सामाजिक संबंध से अभिप्राय एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के साथ संबंध से है, जिसमें एक दूसरे के अस्तित्व को ध्यान में रखते हुए आचरण किया जाता है। पशु और व्यक्ति के बीच विभेद का मूलाधार भी उसका आचरण ही है। व्यक्ति और पशु के दैनिक जीवन में अनेक समानताएं लक्षित होती हैं। भोजन, शयन आदि दोनों करते हैं। मनुष्य की तरह पशु अपना हित-अहित अच्छी तरह समझता है। जाहिर है कि पशु और मनुष्य के बीच विभेद-रेखा है आचरण। मनुष्य ज्ञान प्राप्त करके अपने को संस्कारित करता है और उसका आचरण समाज के हित और कल्याण में सन्निहित होता है। तभी समाज को ऐसा संगठन माना गया है जो व्यक्ति के आचरण का नियमन और पथ प्रदर्शन करता है।
सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य समाज से पूरी तरह जुड़ा हुआ है। उसका हित, कल्याण, उन्नति समाज पर निर्भर है। इसलिए जहां मानवीय जीवन है, वहां सामाजिक संबंध है और जहां सामाजिक संबंध है, वहां समाज का अस्तित्व है। व्यक्ति समाज की केंद्रीय इकाई है, इसलिए समाज में रहकर वह जैसी क्रियाएं करेगा, उसके संबंध वैसे ही स्थापित होंगे। ऐसे में समाज को मानवीय जीवन और सामाजिक संबंध का समुच्चय कहा जा सकता है।
जिस व्यक्ति में सामाजिक चेतना है, सामाजिक कार्यों के प्रति अभिरुचि है, सही मायने में वही सामाजिक प्राणी और समाज की केंद्रीय इकाई है। चेतना, चेतन मानस की वह शक्ति है जो आंतरिक और बाह्य तत्त्वों, वस्तुओं, विषयों, व्यवहारों का ज्ञान अनुभव कराती है। चेतना को उस ज्ञानात्मक मनोवृत्ति, ज्ञानात्मक दृष्टिकोण या विवेक शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया है जो मनुष्य को आंतरिक और बाह्य तत्त्वों को देखने-समझने, सुनने या उनके प्रति जागरूक होने की क्षमता प्रदान करती है। ‘चेतना’ मनुष्य को उचित और अनुचित का अभिज्ञान कराती है, जिससे उसकी निर्णय शक्ति निर्मित और विकसित होती है।
सामाजिक चेतना मानवीय चेतना का सामाजिक रूप है। समाज ऐसी नियामक संस्था है जो सभी के हित और संपूर्ण विकास के लिए निर्मित हुई है और चेतना वह ज्ञानात्मक दृष्टिकोण या मनोवृत्ति है जो मनुष्य को आंतरिक और बाह्य तत्त्वों के प्रति जागरूकता प्रदान करती है। कह सकते हैं कि सामाजिक चेतना से तात्पर्य सामाजिक जागरूकता से है।
जब समाज मनुष्य के प्रति अपने भौतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक, राजनीतिक आदि कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर पाता, तब समाज में अज्ञानता, शोषण, अंधविश्वास, बाह्य आडंबर, रूढ़ियां, आर्थिक विषमता, छुआछूत, वर्ण-वर्ग भेद, राजनीतिक-सांस्कृतिक-नैतिक हनन, मानवता का ह्रास आदि राग-द्वेष उत्पन्न होते हैं। इनकी क्रिया-प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न भावात्मक, ज्ञानात्मक और क्रियात्मक परिवर्तनों की संपूर्ण चेतना ही सामाजिक चेतना है।
विचार, विवेक, विज्ञान मनुष्य को समाज की विसंगतियों के प्रति चेतना संपन्न बनाते हैं। मनुष्य अपने भौतिक धरातल पर अच्छे और बुरे के प्रति अपनी क्रिया-प्रतिक्रिया व्यक्त करता है, वही व्यक्ति-चेतना है। वैयक्तिक स्तर पर उत्पन्न चेतना का विस्तार सामाजिक स्तर पर हो जाता है, तब वह सामाजिक चेतना कहलाती है।
सामाजिक संदर्भ में सामाजिक चेतना के मानदंड सामाजिक विसंगतियों, वैवाहिक समस्याओं, धार्मिक मिथ्याचारों और रूढ़ियों का विरोध, कलुषित नैतिकता के प्रति आक्रोश आदि हैं। सामाजिक चेतना से युक्त मनुष्य उदात्त भावना के साथ सर्वजन हिताय कार्य करता है। सब के उत्थान, विकास और कल्याण का भाव उसमें सन्निहित रहता है।
परोपकार से हमें आत्मिक सुख, संतोष और शांति का अनुभव होगा। सत्, चित्त और आनंद की भावना से ओतप्रोत होकर कार्य करना ही सही मायने में हमारा सामाजिक चेतना संपन्न होना है। आभासी दुनिया में ही नहीं, वास्तविक दुनिया में भी हमें सामाजिक चेतना संपन्न बनने की ओर अग्रसर होना है।