लोकेंद्रसिंह कोट
कई बार ऐसा होता है कि सिर्फ एक शब्द ही पूरी किताब बुन देता है और धन्यवाद ऐसा ही शब्द है। एक भरा-पूरा शब्द जो किसी भी तरह के सहयोग, सेवा का माल्यार्पण है। हम प्रसन्न होते हैं किसी का सहयोग पाकर और हमारे अंदर भी बहुत कुछ फैलता है, वही कह देता है धन्यवाद। हो सकता है हमारे कहने से पहले हमारा शरीर ही कह देता हो धन्यवाद।
इसलिए शायद ‘बाडी लैंग्वेज’ यानी देहभाषा जैसा शब्द आया होगा, क्योंकि ऐसे अपनेपन, कृतज्ञता को कैसे अभिव्यक्त करें? उसके लिए ही धन्यवाद शब्द बनाया गया होगा। धन्यवाद शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन शब्द ग्रेटिया से हुई है जो कृतज्ञता, शालीनता और कृपा शब्दावली से संबंधित है। इस लैटिन मूल शब्द का तात्पर्य ‘दया, उदारता और उपहार देने और प्राप्त करने की सुंदरता’ से है। यह शब्द धन्य और वाद के समासीकरण से बना है।
इसका समास विग्रह किया जाए, तो सामने आएगा- धन्य, ऐसा वाद। धन्य का मतलब कृत या कृतार्थ। धन्य और वाद यानी धन्यवाद। यह संस्कृत का समस्त पद है। इस शब्द को ऐसे समझा जा सकता है- धनी, धन प्रदान करने वाला, महाभाग, ऐश्वर्यशाली, सौभाग्यशाली, श्रेष्ठ। वैसे ‘थैंक्स’ शब्द के बारे में देखें तो पाते हैं कि इसका उद्गम बारहवीं शताब्दी में हुआ। इसका वृहद सदर्भ में अर्थ है- ‘आपने जो मेरे लिए किया वह मैं याद रखूंगा।’
किसी भी कार्य के बदले भावनाओं को त्वरित अभिव्यक्त करने का सबसे श्रेष्ठ माध्यम है आभार या धन्यवाद ज्ञापित करना। संबंधों की प्रगाढ़ता को यही धन्यवाद चार चांद लगा देता है। धन्यवाद की अनुपस्थिति संबंधों को रूखा कर सकती है और सेवा या किसी कार्य को भविष्य में उसी भाव से करने में व्यवधान पैदा कर सकती है। धन्यवाद का भाव कभी एहसान या उससे उत्पन्न होने वाले घमंड से परे है।
एक छोटे से लेकर कोई भी बड़ा सहयोग, जिसमें स्वार्थ की मात्रा न के बराबर हो, उसके बाद उत्पन्न भाव ही धन्यवाद का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जितने धन्यवाद हम कमाते हैं वही हमारी असली कमाई है, क्योंकि यह सीधे-सीधे तत्काल किसी की मदद और किसी को किसी भी परिस्थिति में मदद से जुड़ा है। यहां कोई दूसरे के लिए कुछ ऐसा कर रहा है कि सामने वाले का मन हमारे लिए एक अलग प्रकार की श्रद्धा से भर रहा है। यह श्रद्धा किसी के विश्वास को भी मजबूत करती है।
एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग में एक दुकानदार ने सिर्फ धन्यवाद कहने के लिए सालाना जलसा रखा और अपने ग्राहकों को भोज भी करवाया। इसी से उसकी ग्राहकी में सत्तर फीसद बढ़ोतरी देखी गई। धन्यवाद जब अनपेक्षित मिलता है तो उसमें खुशी का एहसास ज्यादा होता है। अनजानी जगह, अनजाने लोगों के बीच कोई अनजानी सहायता करने के बाद मिले धन्यवाद का एहसास अलग ही सीमा का होता है।
यह हमारे अंदर जोश आत्मविश्वास अपनापन भर देता है। ऐसे समय लगता है इस दुनिया में कोई पराया है ही नहीं, सब अपने हैं। सूक्ष्म स्तर पर देखा जाए तो ऐसा है भी। हम सब एक दूसरे के लिए और एक दूसरे से ही बने हैं। इसलिए सारे धर्मों में भी धन्यभागी बन जाने पर जोर दिया गया है। यहूदी धर्म में दो उक्तियां हैं जिनमें कहा गया है, ‘हे परमेश्वर, मैं तुम्हें हमेशा धन्यवाद दूंगा’।
ईसाई धर्म में धन्यवाद को नैतिक गुण माना गया है जो केवल भावनाओं और विचारों का ही नहीं, बल्कि कर्म और कार्यों का भी विकास करता है। इसी तरह पैगम्बर मोहम्मद कहते हैं, जीवन में प्रचुरता के लिए आप धन्यवाद करते हैं तो यह आश्वासन है कि यह प्रचुरता जारी रहेगी। सनातन धर्म कहता है कि जो लोग अधिक धन्यभागी होते हैं, उनका कल्याण का स्तर उच्च होता है। आभारी लोग ज्यादा खुश, कम उदास, कम थके हुए और अपने जीवन और सामाजिक रिश्तों से अधिक संतुष्ट होते हैं।
धन्यभागी लोगों में अपने वातावरण, व्यक्तिगत विकास, जीवन के उद्देश्य और आत्मस्वीकृति के लिए भी नियंत्रण स्तर उच्च होता है। धन्यभागी लोगों के पास जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने के लिए अधिक सकारात्मक तरीके होते हैं, उन्हें अन्य लोगों से समर्थन मिलने की संभावना अधिक होती है। वे अनुभव की पुन: व्याख्या करते हैं और उससे आगे बढ़ते हैं और समस्या के समाधान के लिए योजना बनाने में अधिक समय लगते हैं।
कई ऐसे अध्ययन बताते हैं कि धन्यवाद देने का भाव जिन लोगों में प्रबल होता है, उनका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा और चारित्रिक विशेषता ज्यादा होती है। ऐसे लोगों में गुणात्मक विकास बहुत ज्यादा होता है। धन्यवाद भी संक्रामक की श्रेणी में आता है। अगर कोई किसी को धन्यवाद ज्ञापित कर रहा है तो सच मानिए तीसरा व्यक्ति भी इसके लिए अपने आप ही प्रेरित होता है।
वास्तव में देखा जाए तो एक छोटा-सा शब्द हमारे मन पर सकारात्मक गहरी छाप छोड़ता है। इसलिए आवश्यक है कि हमारे हिस्से में भी बहुत सारे धन्यवाद आएं और हम भी बहुत सारे धन्यवाद कर सकें। धन्यवाद पाना और देना दोनों ही हमारे सच्चे बैंक बचत हैं जो हमारे साथ जाने वाले हैं।