सदाशिव श्रोत्रिय
लेकिन उसके कारणों को देखते हुए कहा जा सकता है कि ऐसा तो होना ही था। पुराना पुल जब फिर नया बन कर तैयार हो गया, तब लोगों के भीतर कुछ नया अनुभव करने की चाह उभरी। यह स्वाभाविक था, लेकिन बहुत सारे लोग भ्रष्टाचारियों की भूख के शिकार हो गए। लोगों की बेचैनी का फायदा उठा कर तो आजकल अनेक फिल्म निर्माता फिल्म रिलीज होने से पहले ही उसके संभावित दर्शकों से इतना पैसा बटोर चुके होते हैं कि बाद में उस फिल्म के बढ़िया या घटिया साबित होने से उसके निर्माताओं का आर्थिक स्वास्थ्य पूरी तरह अप्रभावित रहता है।
अपनी इंद्रियों को लगातार नए और चटपटे अनुभवों से गुदगुदाते रहना हमारी आज की भोगवादी सभ्यता का प्रमुख गुण है। कितनी बार सड़क किनारे चाट-पकौड़ी, पानी-पताशे, भेल-पूरी, दाबेली खाने की इच्छा जोर मारती है हमारे नौजवानों में! नए चटखारे की तलाश निरंतर भटकाती रहती है लोगों को आजकल। कुरकुरे-मैगी-पास्ता। वैश्वीकरण ने आज लोगों को दूरदराज के भी बहुत से स्वादों से परिचित करवा दिया है।
अब खाद्य-वैविध्य की तलाश खोजियों को न सिर्फ पिज्जा, बर्गर, मंचूरियन, दोसा, खमण, इमरती आदि तक ही सीमित रखती है, बल्कि वह उन्हें मैक्सिकन टकीटो-केसाडीयास या आस्ट्रियन क्रासां तक ले जाती है। ग्राहकों के लिए बाजार एक से एक नई मिठाइयां, एक से एक नए नमकीन और आइसक्रीम के प्रकार पेश करता है।
दरअसल, किसी एक चीज से जब जी भर जाता है तो तुरंत किसी नई चीज की तलाश शुरू हो जाती है। देश के तमाम दर्शनीय स्थानों को देख चुकने के बाद लोगों को विदेश यात्राओं की इच्छा होने लगती है। लोग जान जोखिम में डाल कर भी कई खतरनाक जगहों की हवाई यात्रा करते हैं। कुछ समय पहले केदारनाथ में एक हेलिकाप्टर के चकनाचूर हो जाने का प्रभाव हफ्ते भर भी कायम नहीं रहा।
पिछले हेलोवीन के अवसर पर इसी तरह दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में डेढ़ सौ लोगों की जान महज इस वजह से चली गई, क्योंकि वहां एक संकरी गली में बहुत सारे लोग जश्न मनाने के लिए एकत्रित हो गए थे। हमारे यहां आए दिन कितने मंदिरों में भगदड़ के कारण दर्शनार्थियों की मृत्यु हो जाती है!
पर्यटन-व्यवसाय की प्रगति के परिणामस्वरूप अब जहां भी संभव हो, इस व्यवसाय से जुड़े लोग नाव, क्रूज की सवारी, पर्वतारोहण, रोप-वे, रोलर-कोस्टर, बेबी-ट्रेन, बलून-सवारी, वाटर पार्क आदि की संभावनाएं ढूंढ़ लेते हैं। अभी नाथद्वारा में विश्वास-स्वरूपम नाम की तीन सौ इक्यावन फुट ऊंची जो प्रतिमा बनाई गई है, उसका सबसे बड़ा आकर्षण इस बहुत ऊंचे शिवाकार स्तंभ पर चढ़ कर दूर-दूर तक के विस्तार को देख सकना और बंजी जंपिंग कर सकना साबित हो रहा है। इस विराट और भव्य उपभोक्ता आयोजन का भला शिवभक्ति से क्या लेना-देना हो सकता था?
इस पूंजीवादी व्यवस्था में आज जिन लोगों के पास खर्च करने के लिए बहुत अधिक पैसा है, वे आए दिन एक से एक महंगे किस्म की शराब और कार खोजने में अपना बहुत-सा समय गंवाते हैं। दुर्लभ अनुभवों की खोज आज आला दर्जे के अमीरों को करोड़ों डालर के बदले में अंतरिक्ष यात्राओं के लिए आकर्षित करने लगी है, जहां पहुंच कर वे भारहीनता की स्थिति का अनुभव ले सकते हैं।
मुझे लगता है कि जो लोग हेरोइन, चरस या ऐसे ही किसी मादक पदार्थ के आदी हो जाते हैं, वे भी शुरू-शुरू में एक नए किस्म के उत्तेजक अनुभव से गुजरने के लिए ही वैसा करते हैं। आल्डस हक्सले जैसे बड़े लेखक तक किन्हीं अलौकिक अनुभवों की इस तरह की खोज में एक बार एलएसडी जैसे नशीले पदार्थों की गिरफ्त में आकर जीवन भर उससे छूट नहीं पाए थे।
नए अनुभवों की तलाश की यह कामना ही आजकल युवाओं को तेजी से अश्लील फिल्मों की ओर ले जा रही है। जिस स्त्री-पुरुष संबंधों को छिप कर देखना पहले किसी व्यक्ति की मानसिक विकृति का लक्षण समझा जाता था, उसके अनेकानेक लोमहर्षक दृश्य आज हर उम्र के दर्शक के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। इन दृश्यों को किसी नए किस्म का उत्तेजक अनुभव बनाने के लिए एक से एक अकल्पनीय यौनिक विकृतियां, अनैतिकताएं और पाशविक क्रूरताएं इंटरनेट पर प्रतिदिन दर्शकों के सामने परोसी जाती हैं।
इन दृश्यों के निर्माण में जिन अभिनेताओं-अभिनेत्रियों, छायाकारों, निर्देशकों, निर्माताओं आदि की सक्रिय भूमिका रहती होगी, उनकी नैतिकता के पर्यावसान का अनुमान कोई भी बड़ी आसानी से लगा सकता है। मुनाफाखोरी के अभियान ने आज मनुष्यता का सब कुछ दांव पर लगा दिया है। क्या सत्य और क्या अहिंसा, क्या प्रेम और क्या सेवा, क्या नैतिकता और क्या ईमानदारी, क्या शांति और क्या सहअस्तित्व- वे सब अब तेजी से गुजरे वक्त की बातें होती जा रही हैं।