आज बात दिल्ली में साल 1985 में हुए ललित माकन-गीतांजली शर्मा हत्याकांड की जिसने पूरे देश को सन्न कर दिया था। जहां ललित माकन कांग्रेस के तेज-तर्रार नेता थे तो वहीं गीतांजली शर्मा, दिग्गज नेता शंकर दयाल शर्मा की बेटी थी। यह वही शंकर दयाल शर्मा थे, जो देश के महामहिम यानी राष्ट्रपति बने थे। लेकिन इसे देश के सर्वोच्च पद पर बैठे एक पिता का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि उसके पास अपने ही बेटी-दामाद के हत्यारों की दया याचिका पहुंची थी, जिसे उन्होंने खारिज कर दिया था।
ललित पर लगा भीड़ को उकसाने का आरोप: दिल्ली में ललित माकन कांग्रेस के तेज-तर्रार नेता माने जाते थे। वह दक्षिणी दिल्ली से लोकसभा सांसद भी थे। उनकी शादी शंकर दयाल शर्मा की बेटी गीतांजली शर्मा से हुई थी। लेकिन उनका नाम तब ज्यादा चर्चा में रहा जब उन पर सिख दंगों के दौरान भीड़ को भड़काने का आरोप लगा था। इसी घटना के बाद 31 जुलाई 1985 को ललित माकन-गीतांजली शर्मा को उनके घर के बाहर ही सिख आतंकवादियों ने गोलियों से छलनी कर दिया गया था। इन आतंकियों के नाम हरजिंदर सिंह जिंदा, सुखदेव सिंह सुक्खा और रंजीत सिंह गिल उर्फ कुक्की थे।
जब घर के बाहर बरपा कहर: 31 जुलाई 1985 को घटना के दौरान ललित माकन पश्चिमी दिल्ली के कीर्ति नगर वाले घर से निकले। उनकी कार सड़क की दूसरी ओर खड़ी थी। तभी कुछ हमलावरों ने ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार शुरू कर दी। ललित माकन हमले से बचने के लिए वापस लौटे लेकिन तब तक वह गोलियों का शिकार हो चुके थे। इसी गोलीबारी के बीच गीतांजली और माकन के एक सहयोगी बाल किशन भी उनकी ओर दौड़े। लेकिन गोलियों की बौछार ने तीनों को ही अपने चपेट में ले लिया। इसके बाद हत्यारे स्कूटर से फरार हो गए थे।
आर्मी जनरल की हत्या में शामिल थे आतंकी: घटना के बाद जांच शुरू हुई तो पता चला कि यह आतंकवादी खालिस्तान कमांडो फोर्स से थे। इनमें से दो यानी हरजिंदर सिंह जिंदा, सुखदेव सिंह सुक्खा का नाम ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान आर्मी के जनरल रहे अरुण वैद्य की हत्या में भी आया था। बता दें कि, अरुण वैद्य की हत्या पुणे में की गई थी। बाद में ललित माकन हत्याकांड में सुखदेव सिंह सुक्खा को 1986 में जबकि हरजिंदर सिंह जिंदा को 1987 में पकड़ लिया गया था।
फिर राष्ट्रपति ने खारिज कर दी दया याचिका: दोनों आतंकियों को हत्याओं के आरोप में फांसी की सजा मिली, लेकिन उन्होंने इसके बदले राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजी। दया याचिका का अर्थ था कि उन पर रहम किया जाए। लेकिन कोई पिता अपनी ही बेटी-दामाद और सेना के जनरल के हत्यारों माफ कैसे करता। अदालत और राष्ट्रपति की नजर में आतंकियों का अपराध अक्षम्य था, ऐसे में राष्ट्रपति ने दया याचिका खारिज कर दी और सुखदेव सिंह सुक्खा, हरजिंदर सिंह जिंदा को 9 अक्टूबर 1992 को पुणे के यरवदा जेल में फांसी दे दी गई।
ललित की बेटी ने हत्यारे को कर दिया था माफ: इस घटना में शामिल तीसरे आरोपी रंजीत सिंह गिल उर्फ कुक्की अमेरिका भाग गया था। जिसे साल 1987 में इंटरपोल ने अरेस्ट किया था और फिर उसे भारत लाने में तीन साल का समय लग गया था। कुक्की को हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी, लेकिन साल 2009 में रंजीत सिंह गिल उर्फ कुक्की को रिहा कर दिया था। बाद में खबरें आईं थी कि ललित-गीतांजली की बेटी अवंतिका ने उसे माफ कर दिया था।