आज बात देश के प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी से जुड़े के एक किस्से की, जिसमें उन पर 2 अक्टूबर, 1986 को गोलियां चलाई गई थी। हालांकि, यह हमला असफल रहा था और हमलावर भी पकड़ लिया गया था। वह दिन गांधी जयंती का था और राजघाट में राजीव गांधी के अलावा तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और केंद्रीय गृह मंत्री सरदार बूटा सिंह भी मौजूद थे।
2 अक्टूबर, 1986 के दिन देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, राजघाट में गांधी जी के समाधि स्थल पर पुष्पा अर्पित करने पहुंचे थे। इसी दिन राजीव पर चंद मिनटों में दो बार गोली चलाई गई थी, जिसे अधिकारी शुरुआत में टायर फटने की आवाज बता रहे थे। इस हमले को जिस जगह अंजाम दिया गया था, उसे सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से ग्रीन सिग्नल दिया गया था। जिसके बाद हुई इस घटना ने सभी को हैरान करके रख दिया था।
राजीव गांधी पर इस जानलेवा हमले के बाद सुरक्षा अधिकारियों की सांसे हलक में अटक गई थी, क्योंकि करीब दो साल पहले ही उनकी मां और प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी को गोली मार दी गई थी। इसी के बाद देश भर में सिखों के खिलाफ दंगे भड़का गए थे। उस घटना के बाद खुद राजीव गांधी भी अपनी सुरक्षा को लेकर सचेत रहते थे। हालांकि, उस दिन राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री राजघाट दिल्ली पुलिस के सुरक्षा अधिकारियों से मिले ग्रीन सिग्नल के बाद ही पहुंचे थे।
इस हमले के बाद दिल्ली पुलिस के एडिश्नल पुलिस कमिश्नर सिक्योरिटी एंड ट्रैफिक गौतम कौल को सस्पेंड कर दिया गया था। तमाम सुरक्षा इंतजामों के बावजूद भी पीएम पर दो बार गोलियां दागी गई थी, जो सवालिया निशान खड़ी कर रही थी। हालांकि, इस घटना के बाद वारदात को अंजाम देने वाले करमजीत सिंह नाम के शख्स को एक पेड़ से गिरफ्तार कर लिया गया था। उसने पेड़ और झाड़ियों के बीच से राजीव गांधी पर गोली दागने की कोशिश की थी।
हमलावर करमजीत सिंह पंजाब का रहने वाला था और अपने दोस्त की मौत का बदला लेने दिल्ली पहुंचा था। जिसे सिख दंगों में मार डाला गया था। करमजीत ने निशाना लगाने के लिए अपने गांव में एक व्यक्ति को पैर में गोली मारकर घायल कर दिया था। उसने राजघाट में पीएम पर हमला करने से पहले कई दिनों तक आसपास के इलाकों में रेकी की थी और एक पेड़ में शरण में ले रखी थी। सीबीआई की पूछताछ में करमजीत ने कबूला था कि राजीव गांधी को मारने के नियत से आया था।