गैंगस्टर से राजनेता बने मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) को एक बड़ा झटका देते हुए पुलिस ने उसके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया है। मुख़्तार के खिलाफ 2001 के ‘उसरी चट्टी’ गैंगवार की घटना के सिलसिले में हत्या का मामला दर्ज किया है। अधिकारियों ने रविवार को बताया कि मुख़्तार अंसारी के खिलाफ गाजीपुर के पुलिस स्टेशन मोहम्मदाबाद (Mohammadabad in Ghazipur) में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एमपी/एमएलए कोर्ट के आदेश को ख़ारिज किया
इससे पहले 18 जनवरी को इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने गाजीपुर एमपी/एमएलए कोर्ट (Ghazipur MP/MLA Court) के 15 मार्च के उस आदेश को खारिज कर दिया था, जिसमें अंसारी को बांदा में उच्च श्रेणी की जेल में रखने की अनुमति दी गई थी। यह आदेश जस्टिस डीके सिंह (Justice DK Singh) ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए दिया।
अदालत ने आदेश देते हुए कहा था कि विशेष अदालत का आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर है और गैंगस्टर बाहुबली मुख़्तार अंसारी कानूनी तौर पर जेल में उच्च श्रेणी पाने का हकदार नहीं है। याचिका में गाजीपुर की विशेष अदालत एमपी/एमएलए कोर्ट (MP/MLA Court of Ghazipur) के उस आदेश की वैधता को चुनौती दी गई थी, जिसमें मुख़्तार अंसारी को सुपीरियर जेल में रखने की अनुमति दी गई थी। राज्य सरकार (state government) ने कहा था कि यूपी जेल मैनुअल 2022 के मुताबिक कोर्ट को सिर्फ सुपीरियर क्लास की सिफारिश करने का अधिकार है, लेकिन इसे स्वीकार या खारिज करने का अंतिम अधिकार सिर्फ सरकार के पास है।
उच्च न्यायालय (High Court) को यह अधिकार है कि वह राज्य सरकार और जिला न्यायालय के जिलाधिकारी (District Court District Magistrate) को अपनी सिफारिश भेज सकता है। जेल मैनुअल (Jail Manual) के तहत यह सुविधा देते समय विचाराधीन बंदी की शिक्षा, आचरण, आपराधिक घटना की प्रकृति और आपराधिक मंशा को देखा जाएगा। (यह भी पढ़ें: मुख्तार अंसारी को 2 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है।)
राज्य सरकार ने अदालत में कहा, “मुख़्तार अंसारी का लंबा आपराधिक इतिहास है। उसके ऊपर 58 आपराधिक मामले दर्ज हैं। वह गिरोह का सरगना है। अपराध गंभीर प्रकृति का है। खूंखार अपराधी को उच्च श्रेणी नहीं दी जा सकती। अधीनस्थ अदालत अधिकार क्षेत्र से बाहर चली गई है और उच्च श्रेणी देने का निर्देश दिया। अदालत को इस तरह का आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है।”