हालांकि मामले की सुनवाई के दौरान पीड़िता अपने बयान से मुकर गई थी। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पाक्सो) अधिनियम के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई के लिए नामित विशेष न्यायाधीश अनीस खान ने मंगलवार को जारी फैसले में कहा कि ऐसी अजीबोगरीब परिस्थितियों में डीएनए टेस्ट मामले की जांच के साथ-साथ अभियुक्तों का आरोप साबित करने का एक प्रभावी जरिया होता है। फैसले की प्रति बुधवार को उपलब्ध कराई गई।
अदालत ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि पीड़िता और उसकी मां बयान से मुकर गई हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि अभियोजन का मामला खारिज हो जाएगा। अभियोजन पक्ष के मुताबिक, आरोपी अक्तूबर 2019 से पीड़ित लड़की के साथ बलात्कार कर रहा था। जून 2020 में पीड़िता ने अपनी मां को इस बारे में बताया था, जिसके बाद पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराई गई थी।
चिकित्सा जांच के दौरान पता चला था कि पीड़िता 16 हफ्ते की गर्भवती है। बाद में गर्भपात करा दिया गया था। मामले की सुनवाई के दौरान पीड़िता और उसकी मां अपने बयान से मुकर गई थीं। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि न्यायालय के समक्ष दिए बयान में पीड़िता और उसकी मां ने दावा किया था कि आरोपी उनके परिवार का एकमात्र कमाऊ सदस्य है, इसलिए वे उसे माफ कर जेल से बाहर निकलवाना चाहती हैं। अदालत ने कहा, पीड़िता का बयान इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त है कि वह अपनी मां के भावनात्मक दबाव का सामना कर रही है और इसलिए उसने अपराध होने से इनकार किया है।
अदालत ने कहा, ऐसी परिस्थितियों में डीएनए टेस्ट (मामले के) अन्वेषण के साथ-साथ अभियुक्तों के खिलाफ आरोप साबित करने का एक प्रभावी जरिया होता है। मौजूदा मामले में डीएनए जांच से साबित हुआ है कि पीड़िता और आरोपी भ्रूण के जैविक माता-पिता थे।अदालत ने कहा कि खून के नमूने लेने, प्रयोगशाला में जमा करने और उसकी जांच करने की प्रक्रिया को ठीक तरह से अंजाम दिया गया था, लिहाजा अंतिम डीएनए रिपोर्ट को स्वीकार करना होगा।