चौपालः जनता की चेतना
पिछले दिनों फ्रांस में वहां के राष्ट्रपति ने वहां के रेलवे का निजीकरण करने की ओर कदम उठाया था। लेकिन तभी से उस देश में पिछले तीन महीने से वहां की मजदूर यूनियनें, वहां की आम जनता उसके विरोध में चट्टान की तरह अड़ी हुई है।

हमारा देश दुखद रूप से कई मायनों में बहुत ही विचित्र स्थिति में है। मसलन हमारे देश में अनाज के भरपूर भंडार सरकारी गोदामों मे भरे रहने और सड़ते रहने के बावजूद तमाम लोग लोग भुखमरी का सामना करते हैं। यहां हर साल बारिश के मौसम में जलभराव और बाढ़ से डूब कर, गरमी में लू से, ठंड में ठिठुर कर हजारों गरीब लोगों की मौत हो जाती है। हर साल यहां की सरकार की तरफ से बड़ी-बड़ी घोषणाएं, वादे और राहत कार्य के दावे किए जाते हैं। असम, बंगाल, बिहार, केरल आदि की तो बात छोड़िए, देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में किसी का अतिवृष्टि में डूब कर मरना बेहद अफसोसनाक है!
यह सब इसलिए संभव हो पाता है कि यहां की जनता में अपने अधिकारों को लेकर अपेक्षित जागरूकता का विकास नहीं हुआ है। यही वजह है कि यहां का सत्ताधारी वर्ग इस देश की जनता पर चाहे कितना भी जुल्म, अत्याचार कर लें, यहां की जनता की कुंभकर्णी नींद और जड़ता समाप्त नहीं होती। सभी चाहते हैं कि हमारे देश में भी सुधार हो, लेकिन हम और हमारा परिवार बिल्कुल सुरक्षित रहे! यही ‘मानसिक दुचित्तापन’ इस समस्या को ज्यों का त्यों बनाए हुए है।
पिछले दिनों फ्रांस में वहां के राष्ट्रपति ने वहां के रेलवे का निजीकरण करने की ओर कदम उठाया था। लेकिन तभी से उस देश में पिछले तीन महीने से वहां की मजदूर यूनियनें, वहां की आम जनता उसके विरोध में चट्टान की तरह अड़ी हुई है। आपको याद होगा कि आज से लगभग चालीस-पैंतालीस साल पहले पोलैंड में वहां की तत्कालीन सरकार ने ब्रेड की कीमत बढ़ा दी थी। इसी एक बात को लेकर वहां इतना जबर्दस्त विरोध उठ खड़ा हुआ कि वहां की तत्कालीन सत्ता को जनता ने उखाड़ फेंका और उस विरोध के नायक और मजदूर नेता लेक वालेंसा को सत्ता सौंप दी गई!
आज अपने देश में सत्ता के चेहरे को हम सब मूक होकर देख रहे हैं। लेकिन जनता मानो तंद्रा की अवस्था में है। देश के सभी संसाधनों को कुछ चंद पूंजीपतियों को कौड़ी के भाव बेच देने का कृत्य ही क्या इस देश के सभी लोगों को साथ लेकर सबका विकास करने और कथित अच्छे दिन आ जाने का सूचक है? अमेरिका में एक अश्वेत आदमी की एक गोरे पुलिस वाले द्वारा गलत हत्या के विरोध में पूरी अमेरिकी अवाम सड़कों पर उतर आई! प्रश्न है कि आज हम भारतीय लोग अपने अधिकारों के बारे में कितना समझते हैं और उसके प्रति कितने जागरूक हैं!
’निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद
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