समूचा भारत इस समय भीषण गर्मी का भयंकर ताप झेल रहा है। तापमान के बढ़ते आंकड़े रोज नया कीर्तिमान रच रहे हैं। आसमान से बरसता सूरज का प्रकोप धरती के आंचल को भी खाली कर देता है। इस समय देश की आधी से ज्यादा आबादी भयंकर जल-संकट से गुजर रही है। पानी की समस्या बीते वर्षों में विकराल हो चली है। बहुत कम संख्या में बची झीलें, तालाब और नदियां अपने अस्तित्व को जूझ रही हैं।
2020 में जारी इकोलॉजिकल थ्रेट रजिस्टर की रिपोर्ट के अनुसार आज भारत की लगभग साठ करोड़ जनता पानी की जबर्दस्त किल्लत से जूझ रही है। पर नागरिक समाज की इस दिशा में उदासीनता और नीतिगत सुधारों का अभाव जैसे धरती की कोख को पानी से भरने नहीं दे रहे हैं। विडंबना यह है कि देश और दुनिया गंभीर जल संकट की ओर तेजी से बढ़ रही है, फिर भी शहर जंगल, तालाब और पानी के परंपरागत स्रोतों को मार कर अपना विस्तार करते जा रहे हैं। हमें अब यह सोचने-समझने की जरूरत है कि प्यासी धरती में कभी खुशहाली के अंकुर नहीं फूटते।
अमन गुर्जर, ग्वालियर
शोर के खिलाफ
किसी भी सरकार का यह फर्ज है कि समाज को शांति और समृद्धि का वातावरण प्रदान करे। इस परिप्रेक्ष्य में योगी सरकार की सख्ती के चलते मंदिर हो या मस्जिद सभी जगह से ध्वनि प्रदूषण के लिए जिम्मेदार लाउडस्पीकरों की या तो आवाज निर्धारित डेसीबल पर की गई या उन्हें उतरवाए जाने की प्रक्रिया चल रही है। बुजुर्ग, बीमार व्यक्तियों, विद्यालयों और विद्यार्थियों के लिए शांत वातावरण जरूरी है।
पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि क्या शोरगुल के लिए केवल लाउडस्पीकर जिम्मेदार है? क्या कल-कारखानों के शोरगुल पर कभी ऐसी तत्परता दिखाई गई? क्या शादी-विवाह में बजने वाले डीजे निर्धारित डेसीबल का उल्लंघन नहीं करते? क्या यातायात वाहनों की तेज ध्वनियों के प्रति कभी ऐसी सक्रियता दिखाई गई? क्या कभी ऐसा जमीनी निरीक्षण किया गया कि कितने निजी विद्यालय हाईवे और रेलवे के व्यस्त मार्ग के बीच स्थित हैं।
ऐसे संस्थानों को मान्यता ही नहीं दी जानी चाहिए।अगर सरकार सही मायने में शोरगुल मुक्त वातावरण स्थापित करना चाहती है तो वाहन कंपनियों को निर्देश दे कि हार्न की आवाज मानक के अनुसार सेट करें। ऐसे फैसलों से ही सबका विश्वास जीता जा सकता है।
पवन कुमार मधुकर, रायबरेली