एक अनुमान के मुताबिक आने वाले समय में सैंतालीस फीसद नौकरी कृत्रिम बुद्धिमत्ता के कारण समाप्त हो जाएगी। सूचना तकनीक के क्षेत्र में युवाओं का उत्साह जगजाहिर है। भारत में आइआइटी जैसी परीक्षा में बारह लाख विद्यार्थियों का बैठना इसका एक प्रमाण है।
दरअसल, इस क्षेत्र में जिंदगी आसान और सुविधासंपन्न होने के साथ पैसे से भी भरपूर है। पर वर्तमान वैश्विक माहौल में तकनीकी कंपनियों द्वारा कर्मचारियों की छंटनी नाक का नासूर बन गई हैं। गौरतलब है कि हाल में ट्विटर द्वारा लगभग पचास फीसद कर्मचारियों की छंटनी की गई। इसके अलावा फेसबुक, माइक्रोसाफ्ट जैसी बड़ी कंपनिया भी छंटनी कर रही हैं।
कंपनियों के इस प्रकार के कदम न सिर्फ रोजगार कम करने वाले साबित होंगे, बल्कि युवाओं को हतोत्साहित भी करेंगे। चिंताजनक बात यह है कि इसका सबसे ज्यादा प्रभाव भारत के युवाओं पर पड़ेगा। एक सर्वे के अनुसार हर चार में से तीन वेतनभोगी भारतीय छंटनी के डर से प्रभावित है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि इस सबका नतीजा क्या सामने आएगा। इससे बचने का एक बेहतर उपाय युवाओं में नवाचार संस्कृति उत्पन करके किया जा सकता है। हाल में जारी वैश्विक नवाचार सूचकांक में भारत अब चीन और अमेरिका के बाद तीसरा सबसे बड़ा नवाचार यानी स्टार्टअप वाला देश बन गया है। ऐसा कहा जाता है कि तकनीक जितनी अच्छी है, उतनी बुरी भी। उसका इस्तेमाल ही निर्धारण करता है कि उसे कैसा माना जाए।
ऐसे में भारत सरकार को भी समय के मिजाज को देखते हुए युवाओं को कौशल प्रशिक्षण और स्टार्टअप संस्कृति से लैस करना चहिए, ताकि आने वाले समय में सबसे बडी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला देश रोजगार सृजन में आत्मनिर्भर बन सके। वरना आधुनिक तकनीकी के दौर में जो आबादी बेरोजगार और बेकाम होगी, वह कौन-सी दिशा पकड़ेगी, कहना मुश्किल है।
कन्हैया सिंह, भरतपुर, राजस्थान।
अहंकार की मार
अहंकार एक ऐसा दानव हैं जो व्यक्ति के सामाजिक और वास्तविक जीवन दोनों को प्रभावित करता हैं। अहंकार के कारण ही मानवता नष्ट होती जा रही है। अहंकार से ग्रसित व्यक्ति अपना तो बुरा करता ही है, साथ ही दूसरों का भी बुरा करता है। अहंकार में डूबा व्यक्ति किसी कमजोर व्यक्ति की मदद नहीं करना चाहता। अगर सभी ऐसी ही सोचने लगें तो मानवता खत्म सी होती जाएगी।
हमें इसका पता होना चाहिए कि इसका प्रभाव चुपचाप हमारे व्यक्तिगत जीवन पर भी हो रहा है। इस कारण लोगों के बीच आपस में काफी दूरियां बढ़ती जा रही हैं। अहंकार ही वह पक्ष है, जिसके कारण मानवता के लिए जगह कम होती जा रही है। लोगों में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव कम होता जा रहा है।
दरअसल, हम अपने आपको बिना वजह भी श्रेष्ठ समझने लगे हैं, जिससे दूसरों के गुणों को नहीं देख पाते हैं। हमारी संस्कृति में मानव धर्म को अधिक महत्त्व दिया जाता है और हम अपने अहंकार के कारण ही अपना मानव धर्म अच्छे से नहीं निभा पा रहे हैं। हमें खुद पर गौर करना चाहिए और अगर यह भाव हमारे भीतर कहीं किसी भी रूप में मौजूद है तो उसे नष्ट करने का प्रयास करना चाहिए।
यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अहंकारी व्यक्ति धीरे-धीरे सबसे दूर होता जाता है। वह अपना और दूसरों का अहित करने लगता है। आज के समय में मानवता को बढ़ावा देने की सबसे ज्यादा जरूरत है, ताकि हम अपना और दूसरों का भला कर सके। इसी से खुद को और समूची मनुष्यता को नई ऊंचाइयों पर ले जाया जा सकता है।
अंजली गौड़, कानपुर।
जिंदगी के लिए
आज कल की नई पीढ़ी अपना अधिकतर वक्त सोशल मीडिया पर गुजार रही है। इसमें सबसे ज्यादा लोग इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब के छोटी रील पर अपना समय खर्च रहे हैं। इसकी वजह से वे डोपामीन हारमोन का शिकार हो रहे हैं, जिसमें पल भर का सुख तो मिलता है, पर स्थिरता का सुकून नहीं मिल पाता। इससे युवा अस्थिर चित्त के और चिड़चिड़े हो जाते हैं। कई किशोर अपने आपको को कमजोर मान लेते हैं।
दूसरों से तुलना करने पर उनकी मानसिकता पर असर करता है। कायदे से किशोरों और युवाओं को जितना काम के लिए उपयोग कर सकते हैं, करना चाहिए, लेकिन इसके बाद खुद को वक्त देना चाहिए। वक्त अपने परिवार को देना चाहिए और अपने माता-पिता की सुननी चाहिए। उनसे बात करना, दोस्तों से मिलना भी जरूरी है, बजाय इसके कि मोबाइल के बेमतलब उपयोग में लगे रहें।
लोगों को चाहिए कि वे घर में बंद रहने के बजाय बाहर घूमें, लोगों से बात करें, मैदानी खेल जो अच्छा लगता है, वह खेलें, अच्छी किताबें पढ़ें। अपना एक लक्ष्य बना कर उसे पूरा करने पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। व्यायाम करके अपनी सेहत को दुरुस्त रखना प्राथमिक होना चाहिए, ताकि रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर और मजबूत रहे और लोग रोगों से लड़ सकें। युवा पीढ़ी इन सब पर ध्यान देकर अपनी जिंदगी को बेहतर और अच्छा बना सकते हैं। मोबाइल का उपयोग जितना काम हो, उतना कर देना चाहिए। निश्चित ही कोई भी एक अच्छी जिंदगी को जी सकता है।
राजा बाल्मीकि, दमोह, मप्र।
कम होती मोहब्बत
आज के भौतिकवादी युग में समाज में चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है। सामाजिक समरसता दम तोड़ती नजर आ रही है। दिमाग से सोचना तेज होता जा रहा है, लेकिन दिलों की मोहब्बतें कमजोर होती जा रही हैं। जिस समाज और इंसान के दिल में मोहब्बत कम होगी या नहीं होगी, उसे किस पैमाने पर इंसान माना जा सकेगा!
सज्जाद अहमद कुरेशी, शाजापुर, मप्र।